NewDelhi : महाराष्ट्र में जारी सियासत के बीच आज सुप्रीम कोर्ट में शिवसेना को एकनाथ शिंदे गुट द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई शुरू हुई. सुनवाई के बाद SC ने डिप्टी स्पीकर के नोटिस पर रोक लगाते हुए सभी पक्षों को नोटिस दे दिया. इस नोटिस का जवाब सभी पक्षों को पांच दिनों के अंदर देना है. खबर है कि डिप्टी स्पीकर सहित विधानसभा के सचिव, केंद्र सरकार, महाराष्ट्र पुलिस, शिवसेना विधायक दल के नेता अजय चौधरी, सुनील प्रभु आदि को नोटिस दिया गया है
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि राज्य सरकार कानून व्यवस्था बनाये रखे और सभी 39 विधायकों के जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए पर्याप्त कदम उठाये. उनकी संपत्ति को कोई नुकसान न पहुंचे. इससे पहले जस्टिस सूर्य कांत ने सभी पक्षों को सुनने के बाद बागी विधायकों को अयोग्य ठहराये जाने के डिप्टी स्पीकर के नोटिस पर 11 जुलाई शाम 5.30 बजे तक रोक लगा दी.
Supreme Court issues notice to Deputy Speaker, Secretary of Maharashtra State Legislative Assembly, Centre and others on pleas filed by rebel MLAs against the disqualification notice issued by the Deputy Speaker Narhari Zirwal against Eknath Shinde and 15 other rebel legislators. pic.twitter.com/oYrAKW9CZ4
— ANI (@ANI) June 27, 2022
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शिंदे गुट से पूछा कि वे पहले हाईकोर्ट क्यों नहीं गये
इससे पहले सुनवाई के क्रम में सुप्रीम कोर्ट ने शिंदे गुट से पूछा कि वे पहले हाईकोर्ट क्यों नहीं गये. इसपर बागी विधायकों के वकील ने SC से कहा कि मामला गंभीर था, इसलिए सीधा यहीं का रुख किया गया. शिंदे के वकील ने कहा कि आर्टिकल 32 में याचिका दाखिल की जा सकती हैं. कहा कि हमारे साथ पार्टी शिवसेना के 39 विधायक है. महाराष्ट्र सरकार अल्पमत में है. हमें जान से मारने की धमकी दी जा रही है. हमारे घरों और दूसरी संपति को नुकसान पहुंचाया जा रहा है.
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डिप्टी स्पीकर को इस मुद्दे से निपटने का कोई अधिकार नहीं है
बागी विधायकों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता नीरज किशन कौल ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि जब तक उन्हें हटाने के सवाल पर फैसला नहीं हो जाता, तब तक डिप्टी स्पीकर को इस मुद्दे से निपटने का कोई अधिकार नहीं है. इस मामले में जो किया जाना है वह अनुचित जल्दबाजी, प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है. 163 पन्नों की इस याचिका में संजय राउत के विभिन्न बयानों का भी जिक्र है.
जबतक स्पीकर कोई फैसला नहीं लेते तबतक कोर्ट कोई एक्शन नहीं लें : अभिषेक मनु सिंघवी
अभिषेक मनु सिंघवी ने महाराष्ट्र सरकार की तरफ से दलील देते हुए कहा कि जान के खतरे की बातें बेबुनियाद हैं. कोर्ट में सिंघवी ने कहा कि 1992 Kihito hollohan केस में भी साफ कहा गया था कि जबतक स्पीकर कोई फैसला नहीं लेते तबतक कोर्ट में कोई एक्शन नहीं होना चाहिए. इसपर सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि क्या 1992 के केस में भी स्पीकर की पोजिशन पर सवाल खड़े हुए थे.इसपर सिंघवी ने कहा कि रेबिया केस बताता है कि चाहे स्पीकर गलत फैसला ले, लेकिन उसके फैसले के बाद ही कोर्ट दखल दे सकता है.
Senior advocate Neeraj Kishan Kaul, appearing for rebel MLAs, tells SC that the Dy Speaker has no authority to deal with the issue till the question of his removal is decided. What is sought to be done in this matter is undue haste, violation of principles of natural justice.
— ANI (@ANI) June 27, 2022
Senior advocate Abhishek Manu Singhvi, appearing for Uddhav Thackeray group, tells Supreme Court that Article 212 of the Constitution bars court’s scrutiny when the Speaker is deciding the issue. All internal management is barred from judicial scrutiny, he says.
— ANI (@ANI) June 27, 2022
SC says 14 days is the time for Speaker to put up notice before the House. Here MLAs have served notice calling upon him to put resolution under Art 179
Senior Adv Rajeev Dhavan appearing for Dy Speaker says Speaker has rejected the notice saying its authenticity is not verified
— ANI (@ANI) June 27, 2022
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शिंदे गुट ने मेल के जरिये डिप्टी स्पीकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया था
सुप्रीम कोर्ट ने सिंघवी से पूछा कि क्या जिस स्पीकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया हो वो किसी सदस्य की अयोग्यता की कार्रवाई शुरू कर सकता है? पूछा कि अपने खिलाफ आये प्रस्ताव में डिप्टी स्पीकर नरहरि जिरवाल खुद कैसे जज बन गये? इस क्रम में कोर्ट ने पूछा कि शिंदे गुट ने मेल के जरिये डिप्टी स्पीकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया था, जिसपर विधायकों के साइन थे. इस पर डिप्टी स्पीकर के वकील ने कहा कि हां नोटिस आया था, लेकिन उसे खारिज कर दिया गया था.
डिप्टी स्पीकर के वकील राजीन धवन ने कहा कि ई-मेल वैरिफाइड नहीं था, इसलिए उसे खारिज कर दिया गया था. इसपर कोर्ट ने सख्ती से कहा कि डिप्टी स्पीकर और विधान सभा दफ्तर को एक एफिडेविट दाखिल करना होगा. बताना होगा कि डिप्टी स्पीकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आया था कि नहीं. और आया था तो उसे क्यों रिजेक्ट किया गया.
महा विकास अघाड़ी (MVA) गठबंधन ने सदन में बहुमत खो दिया है
जान लें कि सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी याचिका में एकनाथ शिंदे ने लिखा है कि महा विकास अघाड़ी (MVA) गठबंधन ने सदन में बहुमत खो दिया है, क्योंकि शिवसेना विधायक दल के 38 सदस्यों ने अपना समर्थन वापस ले लिया है और इस तरह सदन में बहुमत से नीचे आ गया है. याचिका में शिंदे ने डेप्युटी स्पीकर की कार्रवाई को गैर-कानूनी और असंवैधानिक करार देने और इस पर रोक लगाने की मांग की है.
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डिप्टी स्पीकर जल्दबाजी में दिखाई पड़ रहे हैं
सुप्रीम कोर्ट में बागी विधायकों ने दो याचिका डाली हैं. पहली में उन्होंने जान को खतरा बताया है. दूसरी में कहा गया है कि डिप्टी स्पीकर की तरफ से उन्हें कम समय दिया गया है. शिंदे गुट ने कहा कि स्पीकर को उन्हें नोटिस का जवाब देने के लिए 14 दिनों का वक्त देना चाहिए था. लेकिन डिप्टी स्पीकर जल्दबाजी में दिखाई पड़ रहे हैं. विधायकों के वकील नीरज किशन कौल ने जब यह कहा कि डिप्टी स्पीकर जल्दबाजी में दिखाई पड़ रहे हैं, तब कोर्ट ने कहा कि विधायकों ने पहले डिप्टी स्पीकर से ही बात क्यों नहीं की.
महाराष्ट्र विधानसभा सचिवालय ने बागी विधायकों को अयोग्य ठहराये जाने की मांग पर शनिवार को 16 बागी विधायकों को समन जारी किया था. 27 जून की शाम तक उनसे लिखित जवाब देने को कहा गया था. सुप्रीम कोर्ट में दायर दूसरी याचिका में कहा गया है कि बागी विधायकों की जान को शिवसेना कार्यकर्ताओं से खतरा है. कहा गया है कि महाराष्ट्र की कानून व्यवस्था पर अब MVA सरकार का कंट्रोल नहीं है.