Krishna Kant
राज्यपाल सत्यपाल मलिक को 300 करोड़ रिश्वत की पेशकश किसके इशारे पर की गई थी? वह आरएसएस का बड़ा नेता कौन था, जिसकी तरफ से 150 करोड़ देने की पेशकश हुई? अंबानी कौन वाला, छोटा या बड़ा? उनका कश्मीर के राज्यपाल को रिश्वत देने का मकसद क्या है? वे वहां क्या हासिल करना चाहते हैं? यह पेशकश करने वाला वह अधिकारी कौन था? इन सब सवालों के जवाब तब मिलते हैं, जब किसी मसले की जांच हो. यहां सहारा, बिरला डायरी से लेकर राफेल तक, जहां भी घोटाले का शक हुआ, जांच ही नहीं होने दी गई.
मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक जिस तरह के आरोप लगा रहे हैं, कोई और सरकार होती तो अब तक देश में हाहाकार मच गया होता. अगर भाजपा विपक्ष में होती तो सड़कों पर कोहराम मचा देती. मलिक इसके पहले कश्मीर और गोवा में भी राज्यपाल रह चुके हैं. वे जिस तरह के आरोप लगा रहे हैं, वे बेहद गंभीर हैं और इस बात की ओर इशारा करते हैं कि बीजेपी की सरकारें कश्मीर से लेकर गोवा तक सिर्फ लूट में व्यस्त हैं. लेकिन यहां हर शर्म की बात पर गर्व करने वाली सरकार है, जो सात साल पहले ही घोषणा कर चुकी है कि यहां इस्तीफे नहीं होते.
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सत्यपाल मलिक ने पहले कश्मीर में भ्रष्टाचार का आरोप लगाया. जिसमें सीधा अंबानी और आरएसएस के किसी बड़े नेता के शामिल होने का इशारा किया. उनका कहना था, “जब वे जम्मू-कश्मीर के उप राज्यपाल बने, तब उनके पास दो फाइलें आई थीं. एक फाइल में अंबानी शामिल थे. जबकि दूसरी फाइल में आरएसएस के एक बड़े अफसर और महबूबा सरकार में मंत्री से जुड़ी थी. ये नेता खुद को पीएम मोदी के करीबी बताते थे. राज्यपाल ने कहा था कि जिन विभागों की ये फाइलें थीं, उनके सचिवों ने उन्हें बताया था कि इन फाइलों में घपला है और सचिवों ने उन्हें यह भी बताया कि इन दोनों फाइलों में उन्हें 150-150 करोड़ रुपये मिल सकते हैं. लेकिन, उन्होंने इन दोनों फाइलों से जुड़ी डील को रद्द कर दिया था.”
गोवा के बारे में उनका कहना है कि “गोवा में बहुत भ्रष्टाचार है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस पर ध्यान देना चाहिए. गोवा में बीजेपी सरकार कोविड से ठीक तरह से नहीं निपट पाई और मैं अपने इस बयान पर कायम हूं. गोवा सरकार ने जो कुछ भी किया, उसमें भ्रष्टाचार था. गोवा सरकार पर लगाए भ्रष्टाचार के आरोपों की वजह से मुझे हटा दिया गया. मैं लोहियावादी हूं, मैंने चरण सिंह के साथ वक्त बिताया है. मैं भ्रष्टाचार को बर्दाश्त नहीं कर सकता.”
वे कश्मीर पर सवाल उठा रहे हैं. वे किसानों को कुचलने वाले बेटे के बाप को केंद्रीय मंत्री बनाए रखने पर सवाल उठा रहे हैं. वे कृषि कानूनों पर सवाल उठा रहे हैं. लेकिन सरकार मगन है. क्योंकि सरकार को लगभग गुलाम बन चुकी मेन स्ट्रीम मीडिया पर पूरा यकीन है. मेन स्ट्रीम मीडिया न तो इस पर डिबेट कराएगी, न कोई खबर चलाएगी. चलाएगी भी तो ऐसे कि जनता को पता ही न चले कि हुआ क्या है. मेन स्ट्रीम मीडिया को मालूम है कि किसी खबर को कैसे चलाकर प्रभाव डालना है, किसी खबर को कैसे दबाना है और किसी खबर को दबाने के लिए दूसरी खबर को कैसे उछालना है.
सत्यपाल मलिक के खुलासे पर खबरें देने के बदले टीवी और अखबार की मेन स्ट्रीम मीडिया छह ग्राम गांजे के लिए इस देश में महीनों तक बहस करवा सकती है, लेकिन जरूरी मुद्दों पर मुंह नहीं खोलता. इसी शातिर तरीके से सहारा, बिरला डायरी और लोया से लेकर राफेल तक सारे भ्रष्टाचार के मुद्दे लील गया. और उनके समर्थक वॉट्सएप यूनिवर्सिटी से ज्ञान लेकर आते हैं कि सात साल से भ्रष्टाचार खत्म हो चुका है.
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