Manoharpur/ Goylkera (Ajay Singh) : कोरोना संक्रमण काल के कारण दो वर्ष के बाद महादेवसाल बाबा धाम में रौनक़ लौट आई है. श्रावण माह की पहली सोमवरी पर बाबा भोलेनाथ की पूजा अर्चना व जलाभिषेक के लिए श्रद्धालु शिवभक्त कांवड़ियों का आज सुबह से तांता लगा रहा. शिवभक्तों में भारी उत्सास देखने को मिला. वहीं दो वर्षों से बंद श्रावणी मेले में भी लगे विभिन्न प्रकार के दुकानो में भी रौनक़ देखने को मिला. इससे उन दुकानदारो और ख़रीदारों में भी ख़ुशी की लहर है. पश्चिमी सिंहभूम जिले के चक्रधरपुर-पोड़ाहाट अनुमंडल के गोइलकेरा प्रखंड से महज़ तीन किलोमीटर दूर महादेव साल धाम कोल्हान प्रमंडल का बाबा धाम के रूप में चर्चित और सुविख्यात है. यहां भगवान भोलेनाथ की आधी शिवलिंग है. जिसकी लाखों श्रद्धालु पूजा अर्चना करते हैं. इनपर लाखों श्रद्धालुओं को अटूट विश्वास है. ऐसे तो बाबा भोलेनाथ की पूजा सालों भर चलती है, लेकिन सावन के महीने में यहां भोले बाबा के भक्तों का जनसैलाब उमड़ पड़ता है. सात सौ पहाड़ों से घिरे सारंडा वन क्षेत्र की हरी-भरी वादियों के बीच महादेव साल धाम में सावन के महीने में केसरिया वस्त्र धारण किये कांवरियों और श्रद्धालुओं की भीड़ देखते बनती है. बोल बम और बाबा भोलेनाथ की जय-जयकार से पूरा इलाका एक महीने तक गूंजता रहता है. लोगों की आस्था इतनी गहरी है कि हर वर्ष महादेव साल में श्रद्धालुओं का भीड़ बढ़ती जा रही है.
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महादेव साल की कहानी अद्भुत है
महादेव साल की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है. बात करीब डेढ़ सौ साल पुरानी है, लेकिन इसकी चर्चा आज भी लोगों के जुबान पर है. देश में जब अंग्रेजों का शासन था. बंगाल-नागपुर रेलवे के अंतर्गत बंगाल से झारखंड होते हुए हावड़ा मुंबई तक के लिए रेल लाइन बिछाने का काम चल रहा था. पटरी बिछाने के लिए जमीन की खुदाई की जा रही थी. इस खुदाई के दौरान एक शिवलिंग निकल आया. शिवलिंग को देखते ही मजदूर चौंक गये और काम रोक दिया. इसपर वहां मौजूद ब्रिटिश इंजीनियर रॉबर्ट हेनरी ने मजदूरों को वहां फिर से खुदाई करने को कहा. मजदूरों ने जब रॉबर्ट को शिवलिंग के बारे में बताया और वहां खुदाई करने से इनकार कर दिया, तो अंग्रेज इंजीनियर भड़क गया. उसने खुद ही फावड़ा लेकर शिवलिंग पर दे मारा. शिवलिंग खंडित हो गया और उससे रक्त की धार फूट निकली. कहा जाता है कि थोड़ी देर बाद उस अंग्रेज इंजीनियर की भी उसी जगह पर तड़प-तड़प कर मौत हो गयी. कहते हैं कि वहां मौजूद मशीनों ने भी काम करना बंद कर दिया.
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रॉबर्ट हेनरी की कब्र इस घटना की गवाही देती है
आज भी गोईलकेरा रेलवे साइडिंग के पास उस अंग्रेज इंजीनियर रॉबर्ट हेनरी की कब्र इस घटना की गवाही देती है. इस वाकये के बाद बंगाल-नागपुर रेलवे को मजबूरन उस रेलवे लाइन को वहां से घुमा कर ले जाना पड़ा और रेलवे लाइन का मार्ग बदलने के कारण दो बड़ी सुरंगों का भी निर्माण करना पड़ा. जहां शिवलिंग निकला था, वहां आज भी रेलवे लाइन घुमावदार है. इस घटना के बाद से लोगों में उस खंडित शिवलिंग के प्रति अपार श्रद्धा जाग उठी और वहां पूजा-अर्चना शुरू हो गयी. आगे चलकर वहां मंदिर का निर्माण किया गया, जहां आज भी देवाधिदेव महादेव की आराधना की जाती है. भक्तों पर अटूट विश्वास है कि सच्चे मन से पूजा-अर्चना करने पर भोलेनाथ उनकी हर मनोकामना पूर्ण करते हैं. यह स्थान आज महादेव साल धाम के नाम से विख्यात है.
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मंदिर की देखरेख प्रशासन और समिति करती है
महादेवसाल मंदिर की देखरेख प्रशासन और मंदिर समिति के जिम्मे पर मंदिर का संचालन होता है. खासकर श्रावण माह में पोड़ाहाट अनुमंडल प्रशासन की देखरेख में बैठक कर सावन मेला का संचालन की रूपरेखा तैयार की जाती है. मेला समिति के अध्यक्ष गोइलकेरा के प्रखंड विकास पदाधिकारी होते हैं. सावन में कई ट्रेनें यहां रुकती है. महादेव साल में हावड़ा-मुंबई मुख्य रेलमार्ग पर गोइलकेरा स्टेशन से तीन किलोमीटर दूर महादेव साल मंदिर रेलवे लाइन के बगल में ही बना है. महादेव साल मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ के मद्देनजर रेलवे ने यहां यात्रियों के लिए हर-संभव सुविधा मुहैया कराई है. वहीं रेलवे ने महादेवसाल स्टेशन का सौंदर्यीकरण करते हुए भवन का निर्माण महादेवसाल मंदिर की आकृति की तर्ज पर की है. साथ ही फूट ओवर ब्रिज के अलावा महादेवसाल स्टेशन पर यात्री गाड़ियों का ठहराव शुरू कर दिया है. सावन माह में पूरे एक महीने तक कई एक्सप्रेस ट्रेन का ठहराव भी यहां होता है. श्रद्धालु झारखंड के अलावा ओड़िसा, बिहार, बंगाल एवं छतीसगड़ राज्य से भी आते है. वहीं हावड़ा मुंबई मुख्य रेल मार्ग पर स्थित होने पर महादेवसाल बाबा धाम में श्रद्धालु रेलमार्ग के अलावा सड़क मार्ग से भी यहां आसानी से पहुंच सकते है.