– मासूम बच्चे गिरकर हो जाते थे चोटिल
– प्रसव के लिए वक्त पर नहीं पहुंच पाती एंबुलेंस
– वन भूमि के कारण नहीं बन सकती पक्की सड़क
बेड़म (हजारीबाग) से लौटकर विस्मय अलंकार और गौरव प्रकाश की विशेष रिपोर्ट
Hazaribagh: जिले से करीब 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है टाटीझरिया प्रखंड. यहां की बेड़म पंचायत के अंतर्गत पड़ता है गांव चोचो. यह गांव वन भूमि के दायरे में आता है. यही वजह है कि आज तक यहां एक पक्की सड़क नहीं बन सकी है. नियमों के पेंच ने गांव की राह मुश्किल बना दी. मासूम बच्चे स्कूल जाते वक्त अक्सर चोटिल हो जाया करते थे. कुछ मासूम दुनिया में आने से पहले ही दम तोड़ देते थे. कारण, प्रसव को ले जाने के लिए एंबुलेंस समय पर गांव तक नहीं पहुंच पाती थी. आखिरकार मां की ममता ने बेबसी के सारे बंधन तोड़ दिए और खुद श्रमदान कर सड़क निर्माण का बीड़ा उठाया. श्रमदान से सड़क निर्माण कार्य में लगीं लगभग एक दर्जन से भी अधिक महिलाएं गर्भवती हैं. ये सभी महिलाएं संथाली आदिवासी समुदाय से आती हैं. सड़क निर्माण कार्य पिछले लगभग 10 दिनों से किया जा रहा है. लगभग दो किलोमीटर कच्ची सड़क का निर्माण हो चुका है. हजारीबाग जिला उपायुक्त कहती हैं कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं थी. अब मनरेगा से पक्की सड़क बनाई जाएगी.
बच्चों का भविष्य संवारने को सड़क बना रहीं महिलाएं
दैनिक शुभम संदेश की टीम जब गांव पहुंची तो महिलाओं ने खुलकर अपना दर्द बयां किया. महिलाएं चाहती हैं कि उनके बच्चे स्कूल जाएं और उनका भविष्य संवरे. इस कारण पिछले 10 दिनों से वे खुद ही हाथों में कुदाल और सिर पर कढ़ाह लेकर सड़क बना रही हैं.
जंगल से होकर आना पड़ता है गांव
महिलाएं बताती हैं कि गांव पहुंचने के लिए जंगल से होकर ही आना पड़ता है, क्योंकि जंगल में पक्की सड़क नहीं है. सड़क बनाने के लिए मोरम का उपयोग करना पड़ता है. वे लोग जंगल से ही मिट्टी काटकर जहां सड़क खराब है, वहां भर रही हैं.
हर दिन 25 से 30 महिलाएं पहुंचती हैं सड़क बनाने
गांव की पार्वती देवी बताती हैं कि उनके गांव में वर्तमान में लगभग 12- 13 महिलाएं गर्भवती हैं. उन्हें अस्पताल ले जाने के लिए डोली का सहारा लेना पड़ता है. उन लोगों ने समिति बनाई है. उस समिति ने सर्वसम्मति से यह फैसला लिया कि वे श्रमदान कर सड़क बनाएंगी. ऐसे में इस गांव की लगभग 25 से 30 महिलाएं हर दिन सड़क बनाने के लिए पहुंच जाती हैं.
आधी सड़क बनी, आधी बना रहे हैं
महिलाएं एक सप्ताह में लगभग दो किलोमीटर सड़क बना चुकी हैं. अब सड़क से वाहनों की आवाजाही शुरू हो गई है. महिलाओं का यह भी कहना है कि अगर गर्भवती महिलाओं को अस्पताल ले जाना हो, तो एंबुलेंस नहीं आती थी. अब उनके गांव में एंबुलेंस पहुंच सकती है. चूंकि उन लोगों ने आधी सड़क बना ली है. बाकी की आधी बना रही हैं.
घायल जिगर के टुकड़े को देख फट जाता है मां का कलेजा
सूरजधनी कुमारी बताती हैं कि उनकी शादी के 10 वर्ष हो गए हैं. आज भी सड़क का वही हाल है. मुखिया, वार्ड सदस्य से लेकर सभी को आवेदन दिया. कच्ची सड़क ही दुरुस्त करा दी जाती तो गाड़ी का आना-जाना शुरू हो जाता. बच्चों को स्कूल जाने में सबसे अधिक समस्या होती है. साइकिल रहने के बावजूद बच्चे साइकिल नहीं चला सकते. अगर चलाएंगे तो गिरकर चोटिल हो जाते हैं. जब बच्चे के जख्म देखती हैं तो कलेजा फटने लगता है. थक-हार कर खुद ही सड़क बनाने की जिम्मेवारी उठाई है.
काफी कुछ करना चाहती हैं महिलाएं : वार्ड सदस्य
दैनिक शुभम संदेश से बातचीत में गांव की वार्ड सदस्य मोसमोती देवी ने कहा कि यहां की महिलाएं बहुत मेहनती हैं. उन्होंने दो समितियां बनाई हैं. पैसे बचाकर वे लोग व्यवसाय करना चाहती हैं. एक-दूसरे की मदद भी करती हैं. सुदूरवर्ती क्षेत्र होने के कारण यहां सरकारी अफसर भी नहीं पहुंचते हैं. ऐसे में गांव की महिलाओं ने आपस में ही बैठक कर निर्णय लिया कि उन्हें सड़क बनानी है. आज वह लगभग बन चुकी है.
मनरेगा से बनेगी सड़क
दैनिक शुभम संदेश से ही गांव की बदहाल स्थिति के बारे में जानकारी मिली है. इलाके में मनरेगा के जरिए सड़क निर्माण कराया जाएगा. यह बहुत बड़ी समस्या है कि वहां सड़क नहीं है. फॉरेस्ट लैंड होने के कारण पक्की सड़क बनाना संभव नहीं है. साथ ही यह भी जानकारी मिली है कि वहां की महिलाएं गर्भवती हैं. ऐसे में उन्हें सुविधा देना भी जिला प्रशासन की जिम्मेवारी है. प्रशासन बहुत जल्द वहां सड़क निर्माण करा देगा, ताकि गांव के लोगों को सहूलियत हो.
– नैंसी सहाय, उपायुक्त, हजारीबाग