Ranchi : झारखंड में वामदलों के एकमात्र विधायक हैं भाकपा माले के विनोद सिंह. सोमवार को लगातार डॉट इन के लोकप्रिय कार्यक्रम न्यूजरूम में न्यूज मेकर में विनोद सिंह बतौर अतिथि शामिल हुए. कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ पत्रकार संतोष मानव ने किया. कार्यक्रम में विनोद सिंह ने झारखंड की राजनीति, झारखंडी मुद्दों, भाजपा की राजनीति, सरकार की नीतियों, ईडी-आईटी की भूमिका सहित वामपंथी राजनीति पर विस्तार से अपनी बेबाक राय रखी. इन तमाम मुद्दों को लेकर हुए सवालों का विधानसभा की तरह ही अपने अंदाज में जवाब दिया. विनोद सिंह ने न केवल वर्तमान राज्य सरकार को कसौटी पर कसने का काम किया, बल्कि केंद्र की भाजपा सरकार पर भी प्रहार किये.
सवाल : आपके पिता स्व. महेंद्र सिंह गरीबों की आवाज थे, उनका पूरा जीवन गरीबों के लिए संघर्ष करते हुए बीता. आप अपने पिता को किस रूप में देखते हैं.
जवाब : मैं बचपन से परिवार को करीब से देखा. मेरे पिता चाहे गांव हो, सोसाइटी हो, जहां समस्याएं दिखती थीं, उसके निदान के लिए निरंतर प्रयासरत रहते थे. इसके लिए उन्हें किसी से टकराने की जरूरत पड़ती तो टकरा जाते थे, यहां तक कि परिवार से भी.
सवाल : आपके पिता हमेशा गरीबों के लिए लड़ते रहे, आर्थिक संपन्नता भी नहीं थी तो आपको लगा कि आपके पिता परिवार के साथ न्याय नहीं कर पाये.
जवाब : बचपन के रूप में मुझे पिता का अधिक समय नहीं मिला. कई-कई साल तक जेल में रहे. लेकिन तमाम बातों के बावजूद उनके तमाम मित्रों दोस्तों ने इस चीज की कभी कमी खलने नहीं दी.
सवाल : क्या आपके पिता ने आपको कोई राजनीतिक सीख दी?
जवाब : हम जिस सोसाइटी या माहौल में रहते हैं, वहां तो सीखते ही हैं. सबसे अधिक धैर्य की शक्ति मेरे पिता में थी. विपरीत से विपरीत परिस्थितियों में लड़ने की शक्ति कैसे आती है, यह मैंने देखा है. यह सब झेलते हुए अपने पिता को कभी मैंने परेशान नहीं देखा.
सवाल : आप महेंद्र सिंह के पुत्र हैं, मगर राज्य को दूसरा महेंद्र सिंह कब मिलेगा.
जवाब : मैं तो यह मानता हूं कि किसी भी व्यक्ति के लिए अलग-अलग दौर में अहम रोल होता है. उसकी तुलना नहीं की जा सकती है. अलग-अलग दौर और परिस्थितियां लोगों को जन्म देती है. महेंद्र सिंह से बेहतर भी लोग आयेंगे वह समय अलग था.
सवाल : 1932 का खतियान का मुद्दा झारखंड में छाया हुआ है. इसे रोजगार से भी जोड़ा गया है. कुछ लोग कह रहे हैं कि यह कोर्ट में लटक जायेगा और महज राजनीतिक तमाशा रह जायेगा. आपको क्या लगता है.
जवाब : प्रक्रिया क्या हो नहीं हो यह अलग बात है. मगर एक लंबे समय से माइनिंग इलाके, आदिवासी इलाके, जंगल और बिहड़ों में रहने वाले लोग यहां के उपेक्षित रहे, जिसमें रोजगार अहम मुद्दा है. पहले दौर में लोग पहचान के लिए लड़ाई लड़े. मगर अब अधिकार और रोजगार के लिए लड़ाई चल रही है. दूसरे राज्य सरकारें भी निजी क्षेत्र में आरक्षण देने के लिए बिल लाती है. जहां तक झारखंड की बात है तो इरादों को देखना होगा जो शासन या सत्ता मैं रहते हैं. अगर इरादे अटल है तो वे अपने राज्य के निवासियों के लिए रास्ते और विकल्प खोज निकालेंगे. लेकिन अगर इरादे मजबूत ना हो तो कानून और नियम बनते रहते हैं. जहां तक स्थानीय नीति की बात है तो इसको लेकर पहले भी विवाद उठता रहा है. दूसरे राज्य में भी यह होता रहा है. यहां की सरकार इसे नौवीं अनुसूची में डालना चाहती है सरकार को महज औपचारिकता नहीं निभानी चाहिए, इसके लिए रूपरेखा भी सामने रखनी चाहिए. केंद्र अगर तत्परता दिखाती है तो राज्य सरकार को अपनी सीमा के अंदर इसे लागू करने की रूपरेखा बनानी चाहिए.
सवाल : महाराष्ट्र में अगर आप 10 साल भी रहते हैं तो वहां का आपको स्थानीय मान लिया जाता है. झारखंड के संदर्भ में 1932 क्यों. जब आपको पता है कि यह कोर्ट में अटक जायेगा.
जवाब : यह अलग राज्य की अलग परिस्थिति है. कुछ राज्यों का विकास ही प्रवासी मजदूरों के कारण हुआ है. ना केवल राज्य बल्कि अलग-अलग देशों का विकास भी इसके कारण हुआ है. झारखंड सहित विभिन्न राज्यों के लोग विदेशों में काम करते हैं, जो यहां से अधिक फायदेमंद है. इसलिए महाराष्ट्र और झारखंड की आर्थिक और सामाजिक परिस्थिति बिल्कुल अलग है. बिहार में भी खतियान आधारित स्थानीय नीति है.
सवाल : सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला है कि 1977 के बाद जिसे भी नौवीं अनुसूची में डाला गया है, उसकी समीक्षा हो सकती है.
जवाब : निश्चित रूप से समीक्षा होनी चाहिए. पहले भी सरना धर्म का प्रस्ताव भेजा गया है. विधानसभा सीट बढ़ाने का प्रस्ताव भी भेजा जा चुका है. इसलिए इसकी क्या गारंटी है कि इसे नौवीं अनुसूची में डाल ही देगी.
सवाल : इन दिनों ईडी और आईटी को लेकर माहौल गर्म है. सत्ता व विपक्ष दोनों एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं. विपक्ष कह रहा है कि आप गलत नहीं है तो डर कैसा.
जवाब : करप्शन का सवाल रहता है तो कोई बात नहीं है. ईडी और इनकम टैक्स जैसी एजेंसियों के राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने को लेकर हाल में ही सुप्रीम कोर्ट ने भी टिप्पणी की है. बात झामुमो-कांग्रेस सरकार या एनडीए सरकार की नहीं है. यह बहुत स्पष्ट है कि आम जनता भी जान रही है. जहां पर भाजपा की सरकार है, वहां यह दरवाजे बंद हो जाती हैं. मगर जहां विपक्षी दलों की सरकारे हैं, वहां दरवाजे खुल जाते हैं. वहां सारी चीजें लागू होने लगती है. इसका इस्तेमाल राजनीतिक मंच के रूप में हो रहा है. पूजा सिंघल के रूप में मैंने देखा. जब जांच का केंद्र भाजपा की ओर जाने लगती है तो दरवाजे बंद हो जाते हैं. ऐसा नहीं होना चाहिए.
सवाल : अगले 10 सालों में आप वामदल को कहां खड़ा पाते हैं.
जवाब : निश्चित रूप से आकलन होना चाहिए. मगर इसे चुनाव के नजरिए से देखा जा रहा है. मगर अगले 10 सालों में कोई सुखद भविष्य नहीं है. वामदलों का मतलब है जनता के संघर्ष व उनके आवाज का साथ देना.
सवाल : एक से दो आप कब होंगे.
जवाब : हम एक से दो तो हमेशा होते रहे हैं. चुनाव के नजरिए से देखें तो यह संख्या बढ़ेगी. झारखंड आंदोलन में वाम दलों की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता है. इस बार कई सीटों पर कम मार्जिन से हारे हैं.
सवाल : राज्यसभा चुनाव में आप वोट नहीं करते हैं, उपहार नहीं लेते हैं, ऐसा क्यों.
जवाब : जहां वोट खरीदने और बेचने का माहौल बन जाये तो वहां से मैंने बायकॉट किया है. मगर कई बार हम हारते हुए कैंडिडेट को वोट दिये. हम राज्यसभा को दूसरे नजरिए से देखते हैं. जो हमारी आवाज सदन में उठा सके, उसे वोट करेंगे. मगर जहां खरीद-फरोख्त करके चुनाव होगा वहां हम दूर ही रहेंगे.
सवाल : क्या यहां के लोगों को यहां रोजगार और काम मिल रहा है.
जवाब : भाजपा की गलत नीतियों के कारण झामुमोनीत सरकार यहां बनी. इसके पीछे बड़ा आंदोलन झारखंडी मुद्दों का रहा. इन आंदोलन को एक धार देने का काम हुआ. यह सरकार सरकार कई मोर्चों पर काम कर रही है. मगर रोजगार के मामले में 3 सालों में निराशा हाथ लगी, जो अपेक्षित काम नहीं हुए. मैट्रिक व इंटर नियुक्ति की नियमावली बने.
सवाल : आज बाल दिवस है, क्या विनोद सिंह हमेशा गंभीर रहते हैंं.
जवाब : आज बाल दिवस है. ऐसे लोगों ने विधानसभा या सभाओं में देखा है. यह एकांगी पहलू हो सकता है. ऐसा नहीं है. हां हम बड़े हो जाते हैं तो भूमिकाएं बदल जाती है. आज बच्चों के लिए पढ़ना काम बना दिया गया है. पढ़ना एक मनोरंजन बनाया जाना चाहिए.
सवाल : भाजपा नेताओं के खिलाफ जो सबूत हैं, इसे जुटाकर आप जनता के बीच क्यों नहीं जाते हैं.
जवाब : भाजपा के शासनकाल में कई गड़बड़ियां हुई हैं. आपको जनता ने जिन मुद्दों का पर चुनाव जीताया है, उस पर काम करें. अभी भी झारखंड में शोषण जारी है. हमें भाजपा के खिलाफ न्यायालय भी जाना चाहिए. सरकार को भी ठोस कार्रवाई करनी चाहिए. रघुवर काल के घोटाले पर कार्रवाई नहीं हुई है.
सवाल : 2014 में आप चुनाव हार गये. क्या आपके मन में आया कि आपको अपना क्षेत्र चेंज कर लेना चाहिए.
जवाब : अगर मेरे लिए यह पेशा होता तो बिल्कुल चेंज कर लेता. हारने के बाद भी जनता के बीच रहे और उनकी सेवा की.
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