Syed Shahroz Quamar
Ranchi: उत्तर प्रदेश के किठौर मेरठ में इसी 14 मार्च को एक शादी समारोह में आतिशबाजी और डीजे बजाने से नाराज क़ाज़ी ने निकाह पढ़ाने से इनकार कर दिया था. जिसकी चर्चा दूसरे राज्यों में भी होने लगी. हमने इस सिलसिले में झारखंड के प्रमुख इस्लामी संगठनों से बातचीत की. जिसमें एदारा-ए-शरीया, इमारत शरीया, ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड और दारुस्सलाम आदि प्रमुख धार्मिक संगठनों ने शरीयत के अनुसार शादी-ब्याह के आयोजन पर ज़ोर दिया है. इसके साथ ही कई आलिमों ने सख्त लहजे में कहा है कि निकाह में यदि फिजूलखर्ची, डीजे और दहेज लेन-देन हुआ तो सूबे के उल्मा ऐसे किसी भी आयोजन में शिरकत नहीं करेंगे. इस खबर में जानिए क्या कहा आलिमों ने और इस्लाम की इसमें क्या राय है.
दहेज वाली शादी में निकाह पढ़ाने न जाएं काजी: मौलाना कुतुबुददीन रिजवी
झारखंड एदारा-ए-शरीया के नाज़िम आला मौलाना कुतुबुददीन रिजवी ने एलान किया है कि जिस भी शादी में दहेज लिया और दिया जाता हो, जहां डीजे बजते हों, फिजूलखर्ची की जा रही हो, उस जगह काजी निकाह पढ़ाने न जाएं. उनकी अपील राज्य के हर काजी और आलिम से है. सादगी से निकाह की रस्म मुकम्मल की जाए. यह सुन्नत तरीका भी है और आज वक्त की मांग भी.
बेजा खर्च करना इस्लाम में सख्त मना मुफ्ती अनवर कासमी
इमारत शरीया रांची के मुफ्ती-काजी मोहम्मद अनवर कासमी ने कहा कि इस्लाम ने किसी भी चीज़ का बेजा इस्तेमाल करना यानी फिजूलखर्ची मना है. शरीयत के मुताबिक ही जिंदगी जीने के अवसर दिए गए हैं. निकाह एक सुन्नत अमल है. इसमें बिल्कुल सादगी होनी चाहिए. जहां भी दहेज, फ़िज़ूलखर्ची की तस्दीक (पुष्टि) हो, वैसी तकरीब (आयोजन) में काजी को निकाह पढ़ाने से परहेज करना चाहिए. आलिमों को इसके लिए वर-वधु पक्ष को समझाना चाहिए.
बेटी के बाप पर बोझ डालना ग़ैर-इस्लामी: मौलाना तल्हा नदवी
इसी 18 मार्च को दारुस्सलाम के निदेशक मौलाना डॉ तल्हा नदवी की बेटी की शादी बेहद सादगी के साथ हुई थी. निकाह रांची की राइन मस्जिद में हुआ था. न दान, ना दहेज. इसे शहर में मिसाल कहा गया. हमने जब उनसे बात की तो वो बोले, इस्लाम में बरात का कॉन्सेप्ट ही नहीं है. बेटी के बाप पर शादी के नाम पर आर्थिक बोझ डालना गैर-इस्लामी है. फ़िज़ूलखर्ची वाली शादी बिल्कुल न हो. आलिमों को ऐसे आयोजनों से खुद को दूर रखना चाहिए.
समाज को आगे बढ़कर ऐसी शादियों पर रोक लगानी चाहिए: मौलाना तहजीबुल हसन
ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के झारखंड सदर (अध्यक्ष) और मस्जिद-ए-जाफ़रिया के इमाम-खतीब हाजी सैयद तहजीबुल हसन रिजवी ने कहा कि शादी जैसे आयोजन में शरीयत का पालन करना हर हाल में ज़रूरी है. दहेज को इस्लाम में लानत कहा गया है. आलिम ऐसी तक़रीब में जाने से बिल्कुल परहेज करें, जिसमें फिजूलखर्ची हो. इसके साथ ही समाज को भी आगे आना चाहिए.
क्या कहता है इस्लाम
इस्लाम में शादी बंधन नहीं दो व्यस्क स्त्री-पुरुष की आपसी सहमति से जीवन गुजारने का नाम है, ताकि सामाजिक ताना-बाना चलता रहे. दोनों के बीच अनुबंध को निकाह कहते हैं. जिसमें गवाह और वकील का होना ज़रूरी होता है. बेहद चंद लोगों की उपस्थिति में यह धार्मिक रस्म अदा करने की परंपरा रही है. लेकिन लड़के वाले की ओर से दावत-वलीमा इसलिए जरूरी माना जाता है कि समाज में इसकी घोषणा हो जाए. बरात के साथ लड़की वाले के घर जाना और निकाह में फ़िज़ूलख़र्ची शरीयत के मुताबिक सरासर गलत है. दहेज और फ़िज़ूलख़र्ची इस्लाम में हराम है और ज़रूरतमन्दों की मदद करना सवाब कहा गया है.
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