- एनटीपीसी कोल माइंस के 30 मीटर की दूरी पर चल रहा है सरकारी स्कूल
- बिरहोर बच्चे बताते हैं: हर दिन कई बार हिलती है जमीन
- लुप्तप्राय जनजाति है बिरहोर, सरकार को करना है संरक्षित
- झारखंड में महज 10, 726 बिरहोर ही बचे हैं
- तीन साल से चल रही माइंस, स्थानीय विधायक और सांसद ने नहीं ली सुध
केरेडारी से लौटकर प्रवीण कुमार
Hazaribagh/Ranchi : केरेडारी के चट्टी बारियातू में बिरहोर टोला (पगाड़ गांव) में करीब 45 बिरहोर परिवार रहते हैं. जिसमें बिरहोरों की कुल संख्या करीब 250 है. बिरहोर टोला से माइंस की दूरी महज 38 कदम (करीब 75 फीट) है, जो खतरनाक है.
यह स्थिति है रांची से करीब 70-75 किमी दूर स्थित नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (एनटीपीसी) की कोल माइंस चट्टी बारियातू की. हजारीबाग जिला मुख्यालय से करीब 50 किमी दूरी पर यह कोल माइंस है. बिरहोर परिवार के टोला को पुनर्वासित किए बिना ही एनटीपीसी ने 25 अप्रैल 2022 से कोयला खनन का काम शुरू कर दिया. इस बात का ख्याल ही नहीं रखा गया कि 30 मीटर की दूरी पर सरकारी स्कूल है और 75 फीट की दूरी पर बिरहोरों की बस्ती. बस्ती और स्कूल कोल माइंस की उत्तरी सीमा पर है. माइंस में जब ब्लास्ट होता है, तो घर व स्कूल हिलने लगते हैं. हेवी ब्लास्टिंग की वजह से उड़ने वाले धूल-गर्दा पूरे गांव में फैल जाता है. कहने को तो धूल से बचाने के उपाय किये गए हैं. वह यह कि एनटीपीसी के एमडीओ ऋतिक कंपनी ने हरे रंग की करीब 25 फीट उंची और 200 मीटर लंबी जालीदार तिरपाल लगा दी है. बिरहोर मरें या बचें, इसकी चिंता न तो खनन करने वाली कंपनी को है और न ही जिला प्रशासन को. जबकि पांच किमी की दूरी पर अंचलाधिकारी बैठते हैं और करीब 45 किमी की दूरी पर जिला के डीसी-एसपी और अनुमंडल के एसडीओ. किसी स्तर पर रोक-टोक नहीं. कंपनी को सिर्फ कोयला चाहिए, किसी भी कीमत पर. सबकी जुबान बंद कराके भी. कंपनी ने अब तक वहां सीएसआर के तहत भी कोई काम नहीं कराया है.
माइंस से होकर ही आते–जाते हैं
28 फरवरी को एक बिरहोर बच्ची की मौत के बाद हमने जब चट्टी बरियातू माइंस से सटे पगार गांव के बिरहोर टोला का जायजा लिया, तो पाया कि बिरहोर परिवार के लोग माइंस से होकर ही गांव से बाहर निकलते हैं. माइंस से करीब 50 मीटर की दूरी पर सरकारी स्कूल है. स्कूल में बिरहोर बच्चे पढ़ते दिखे. हमने उनसे बात की. बच्चों ने बताया कि खदान में जब धमाके होते हैं, तो पूरा गांव हिलने लग जाता है. स्कूल भी हिलने लगता है. दिन रात बड़ी-बड़ी गाड़ियां चलती हैं. शोर इतना होता है कि एक-दूसरे की आवाज भी नहीं सुन पाते. विस्फोट से उनका घर भी टूट गया है.
जिस नदी में नहाते-धोते थे, उसमें डंप कर दिया खदान का मलवा
खनन शुरू होने से पहले तक बिरहोर टोला में रहने वाले नहाने-धोने के लिए पास से बहने वाले नदी का इस्तेमाल करते थे. जब से माइंस खुली है, उस नदी में पानी बहना बंद हो गया, क्योंकि नदी में खदान का मलवा डंप कर दिया गया. पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए खदान से निकलने वाले गंदा पानी का इस्तेमाल करने को मजबूर हैं. बिरहोर टोला की वार्ड सदस्य ममता ने बताया कि माइंस से रात-दिन कोयले की धूल उड़ती है, पूरा गांव प्रदूषण का शिकार हो रहा है. सरकारी अधिकारी को हमारी फिक्र ही नहीं है. न ही किसी नेता को. हमारी जान की कीमत पर सबको फायदा मिल रहा है. उन्होंने आगे बताया कि, पंचायत के मुखिया 28 फरवरी को गांव में आये थे. वह भी तब, जब टोला के एक 10 वर्षीय बच्ची की मौत खून की उल्टियां करते- करते हो गई थी. अब यहां जीना दूभर हो गया है. कंपनी के लोग हमें शहर में बसाना चाहता है, लेकिन हमलोग वहां जाकर क्या काम करेंगे, अपना जीवन कैसे चलायेंगे.
बिरहोरों ने कहा– प्रशासन भी कंपनी के लिए ही काम कर रहा
बिरहोर परिवारों का कहना है कि उनलोगों की कोई सुध नहीं लेता. हमारी समस्या की जानकारी बीडीओ-सीओ सभी को है. लेकिन कोई कुछ कर नहीं रहा है. किसी को भी हमारी कोई चिंता ही नहीं. बीडीओ-सीओ भी कंपनी के कर्मचारी बन कर ही काम कर रहे हैं, तो हमें न्याय कैसे मिलेगा.
बिरहोरों को बसाने का प्रस्ताव भेजा है : सीओ
केरेडारी के अंचलाधिकारी (सीओ) रामरतन वर्णवाल ने जलस्रोतों को मलवा से भरे जाने के सवाल पर चुप्पी साध ली. जान-माल को हो रही क्षति पर भी उन्होंने कुछ भी बोलने से इनकार किया. कहा कि मैं कुछ नहीं कर सकता. हमारे अधिकार क्षेत्र में बस इतना ही है कि बिरहोरों को दूसरी जगह बसाने की पहल की है. प्रस्ताव बनाकर मैंने वरीय अधिकारियों को भेज दिया है.
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