Pirtand (Giridih) : पारसनाथ पर्वत के जंगल में आदिवासी समुदाय के पर्व सेंदरा की हर्षोल्लास के साथ 6 मई से शुरुआत हो गई. आदिवासी समुदाय में इस पर्व को पुरुषार्थ की अग्नि परीक्षा कहा जाता है. परंपरा के अनुसार मरांग बुरु पर्वत यानी पारसनाथ पर्वत का एक-एक सप्ताह के अंतराल पर 8 बार सेंदरा किया जाता है. इस पर्व को लेकर आदिवासी समुदाय में कई तरह की धार्मिक मान्यताएं प्रचलित हैं. कुछ मान्यताएं निम्न हैं- आदिवासी समुदाय के पुरुष जो कर्म करते हैं उसका फल सेंदरा में मिलता है. पाप करने वाले पुरुष को सेंदरा के समय जंगली जानवर नोच कर खा जाते हैं. सेंदरा के क्रम में किसी की मौत होने पर उन्हें शहीद का दर्जा दिया जाता है. प्रत्येक वर्ष उस व्यक्ति की याद में सेंदरा पर्व के दिन पूजा की जाती है.
तीन दिनों के लिए जब पुरुष सेंदरा पर्व मनाने जंगल में जाते हैं तो उनकी पत्नी श्रृंगार नहीं करती. अपनी कलाई से चूड़ियां उतार देती है. मांग में सिंदूर नहीं लगाती. महिलाओ को विश्वास है कि पुरुष के जंगल जाने पर सेंदरा के दौरान पाप कर्म की उसे कठोर सजा मिलेगी. हो सकता है उस पुरुष की मौत भी हो जाए. ऐसी स्थिति में वह महिला सुहागन नहीं रहेगी. सेंदरा के दौरान मौत होने पर उसे घर नहीं लाया जाता. सीधे नदी घाट पर ले जाकर अंतिम संस्कार कर दिया जाता है. उस व्यक्ति को शहीद का दर्जा दिया जाता है. इस अनुष्ठान को संपन्न कराने वाले को डिहरी कहा जाता है. आदिवासी समुदाय इस पर्व को हर साल धूमधाम से मनाते हैं.
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