Kumar Krishnan
महिला पहलवानों का जो आंदोलन दिल्ली के जंतर मंतर के समक्ष आरंभ हुआ विभिन्न हिस्सों में असरदार था, अब वह विवादों का शिकार बनाया जा रहा है. भारतीय कुश्ती महासंघ के निवर्तमान अध्यक्ष और भाजपा के सांसद, बृजभूषण शरण सिंह को बचाने के लिए सरकार ने पूरी ताकत लगा दी है. अंग्रेजों ने जो कानून बनाए थे. वे कानून अंग्रेजों को पूरी तरीके से सुरक्षित कवच उपलब्ध कराने का काम करते थे. वे कानून और वह मानसिकता आज भी वर्तमान शासकों में बनी हुई है.उस सोच में कोई बदलाव नहीं आया है, यह स्पष्ट है.किसी भी महिला को यौन उत्पीड़न की शिकायत करना उसके जीवन की सबसे ज्यादा कष्टप्रद स्थिति होती है. सामाजिक व्यवस्था में महिला के यौन संबंधों के आधार पर उसका पूरा जीवन टिका होता है. सीता मैया जैसी सती को अग्निपरीक्षा से गुजरना पड़ा था, यह सत्य है.पिछले कई वर्षों से भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष बृजभूषण सिंह महिला खिलाड़ियों का यौन शोषण कर रहे थे. जो लड़कियां कुश्ती जैसे खेल में अपना प्रदर्शन कर रही थीं. उन्होंने अपने परिवार को किस तरह कुश्ती के खेल और घर से बाहर निकलने के लिए मनाया होगा. उन्हें किस तरह से माता-पिता की अनुमति मिली होगी.यह भारतीय सामाजिक व्यवस्था में आसानी से समझा जा सकता है.
खेल के मैदान में जब कुश्ती संघ के अध्यक्ष ही उनके भविष्य को बनाने और बिगाड़ने के लिए यौन उत्पीड़न के हथियार का उपयोग करें. ऐसी स्थिति में उसके लिए या तो एक और कैरियर होता है. कैरियर के लिए यौन उत्पीड़न से समझौता कर आगे बढ़ जाती हैं. दूसरे विकल्प के रूप में यदि वह विरोध करती हैं तो बदनामी का डर होता है. दूसरे विकल्प में उसके हाथ में कुछ नहीं आता है. विरोध करने पर सारे लोग वैसे ही आक्षेप महिला पर लगाते हैं, जैसे आज लग रहे हैं. इन महिला खिलाड़ियों को वैश्विक पदक जीतने के बाद यह भरोसा हो गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन्हें अपनी बेटी मानते हैं. सारा देश उन्हें विश्व विजेता के रूप में देख रहा है. ऐसी स्थिति में उन्हें अब न्याय मिल सकता है. महिला खिलाड़ियों के साथ जो अन्याय हो रहा है. इसके खिलाफ उनमें आवाज उठाने की हिम्मत आई. लेकिन महिला खिलाड़ी भूल गई थीं कि उनसे भी ताकतवर शख्स जो भारतीय जनता पार्टी को 5 लोकसभा सीटें जिता सकता है. कई बार का सांसद है. उसके सामने उनकी और उनके मेडल की कोई हैसियत सरकार के लिए नहीं है.
भारतीय दंड संहिता में जिस तरह से जांच एजेंसियां जांच करती हैं, अपने हिसाब से मुकदमा तैयार करना उनके लिए आसान होता है. जांच एजेंसी ने गलत तरीके से जांच की है. तथ्यों को अनदेखा किया है. उसकी कोई जिम्मेदारी उसके विवेक पर आधारित होती है. जांच एजेंसी ने किसी को फंसाया है, जांच में तथ्यों को अनदेखा किया है, किसी को बचाने का प्रयास किया है. यह प्रमाणित हो जाता है, तो भी उसको बचाने की पूरी कोशिश सरकार और न्यायालय द्वारा की जाती है. जिसके कारण शासक जैसा चाहते हैं. कानून का उपयोग वैसा कर पाते हैं. सरकार और जांच एजेंसी जिसे बचाना चाहती हो, जिसे फंसाना चाहती है, वह उसके हाथ में होता है. ईडी, सीबीआई और जांच एजेंसियों के बारे में यही शिकायतें बड़ी आम हो चली है. पाक्सो एक्ट में दिल्ली पुलिस ने मामला दर्ज किया था. सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार यौन अपराध में पुलिस को तुरंत एफआइआर करनी चाहिए. यदि नाबालिग बच्ची के साथ यौन अपराध हुआ है. तो पाक्सो एक्ट में मुकदमा दर्ज होना चाहिए. आरोपी की तुरंत गिरफ्तारी होनी चाहिए. जांच कर मामले को न्यायालय के सामने पेश करना चाहिए.
पुलिस आरोपी को बचाने के लिए हर संभव प्रयास जांच के नाम पर कर रही है. उसे गिरफ्तारी के बाद जांच करनी थी. सांसद बृजभूषण सिंह कितने ताकतवर हैं. इसका अंदाजा देश भर में सभी को हो गया है. वह खुलेआम अपने आप को बचाने के लिए जिस तरह का दबाव, खिलाड़ियों के माता-पिता और उन्हें समर्थन देने वाले लोगों के विरुद्ध खुलेआम कर रहे हैं. लड़की के चाचा को लाकर मीडिया में उससे बयान दिलवा रहे हैं. जाट और खाप पंचायतों को खुलेआम धमकाने का काम सांसद कर रहा है. अपने आपको बचाने के लिए संतों की रैली और लाखों लोगों की भीड़ जुटाने की तैयारी कर रहा था. मीडिया ने खिलाड़ियों के आंदोलन और उनकी बातों को कवर नहीं किया. आरोपी को बचाने का काम मीडिया करता रहा, जो उसके सामर्थ्य का प्रतीक है. पुलिस ने सब कुछ देखते हुए भी, कार्रवाई करने के स्थान पर आरोपी को खुला छोड़ रखा है.
अब जांच के नाम पर पुलिस कह रही है कि पहलवानों ने ब्रजभूषण की हरकतों से तंग आकर नहीं, बल्कि बृजभूषण सिंह को महासंघ के अध्यक्ष पद से हटवाने के मकसद से यौन शोषण के आरोप लगाए हैं, जो झूठे हैं. दिल्ली पुलिस, आरोपी बृजभूषण सिंह को गिरफ्तार करने के स्थान पर महिला खिलाड़ियों पर ही फर्जीवाड़ा और अपराधिक साजिश रचने का मुकदमा तैयार कर रही है. हो सकता है, जल्द ही महिला खिलाड़ी पुलिस की गिरफ्त में हों. अथवा गिरफ्तारी से बचने के लिए आरोपी से समझौता करने के लिए विवश हों. जो सामर्थ्य में दोष देखते हैं.वह गलती करते हैं, वे मूर्ख होते हैं. समर्थ जो भी करना चाहता है, उसे करने दें, विरोध न करें, क्योंकि वह समर्थ है. उससे लड़ने की क्षमता नहीं है तो कमजोरी को अपना भाग्य मानकर उसे स्वीकार करने में ही भलाई है. यही संदेश दिल्ली पुलिस और केंद्र सरकार ने महिला खिलाड़ियों को देने का प्रयास किया है. इसका असर सारे देश की जनता पर पड़ना तय है. महिला खिलाड़ियों का हश्र देखकर शायद ही कोई भविष्य में बगावत करे. सत्ता और सामर्थ्य को बगावत पसंद नहीं होती है.
डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं.