Arun Kumar
Garhwa : गढ़वा जिले के मनरेगा मजदूर माणकचंद कोरवा सहित कई लोग देश की राजधानी दिल्ली के जंतर मंतर पर 100 दिन के धरने पर बैठ गए हैं. मानिकचंद कोरवा ने कहा कि 2023-24 के लिए मनरेगा बजट को 60 हजार करोड़ रुपये में सीमित कर दिया गया है. इसमें यदि वित्तीय वर्ष 2022-23 के बकाया मजदूरी को घटा दें तो वास्तविक बजट आवंटन 50 हजार करोड़ रुपये से भी कम होगा. केंद्र सरकार ने बजट आवंटन को आने वाले समय में न्यायसंगत बनाने के लिए जनवरी महीने से नई तकनीक का सहारा लेना शुरू कर दिया है. जिसके तहत नेशनल मोबाइल मॉनिटरिंग सिस्टम को नरेगा कार्यों के लिए अनिवार्य कर दिया गया है. इसके कारण करोड़ों मजदूर मनरेगा के कामों से खुद को अलग करने लगे हैं. मनरेगा के बजट में बड़े पैमाने पर कटौती, मजदूरों की हर दिन 2 दफा मोबाइल आधारित हाजिरी प्रणाली अनिवार्य किये जाने एवं आधार कार्ड नंबर आधारित भुगतान प्रणाली के विरोध में झारखंड के सैकड़ों मजदूर, मेट, सामाजिक कार्यकर्ता दिल्ली के जंतर-मंतर पर विगत 15 मार्च से आंदोलनरत हैं.
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मजदूरी भुगतान को सरल बनाने की मांग
नरेगा वाच के झारखण्ड राज्य संयोजक जेम्स हेरेंज ने बताया कि यह आंदोलन वैसे तो अगले 100 दिनों तक तय है, लेकिन उस वक्त तक चलेगा जब तक केंद्र सरकार मनरेगा में लाए गए नई तकनीकों को खारिज करते हुए मजदूरों के मजदूरी भुगतान को सरल नहीं बनाती है. मनरेगा के बजट को नहीं बढ़ाती है.
केन्द्रीय रोजगार गारन्टी परिषद के पूर्व सदस्य संदीप दीक्षित भी धरना स्थल पर पहुंचे. उन्होंने भी आन्दोलन का समर्थन किया. पश्चिम बंगाल की सामाजिक कार्यकर्ता अनुराधा तलवार ने बताया कि राज्य और केंद्र की राजनीतिक लड़ाई में राज्य के मनरेगा कर्मी और मजदूर पिस रहे हैं. वहां पिछले 16 महीनों से केंद्र सरकार ने मनरेगा का फंड रोक रखा है. केंद्र सरकार दावा करती है कि राज्य में मनरेगा में भ्रष्टाचार बहुत है इसलिए फंड रोका गया है. यदि यह दावा सही है तो फिर सरकार ये बताये कि अब तक कितने अधिकारियों को सजा दी गई है. इस देशव्यापी आन्दोलन में झारखण्ड के गढ़वा, गोड्डा, खूंटी, पश्चिम सिंहभूम, लोहरदगा, लातेहार, गिरीडीह, कोडरमा आदि जिलों से दर्जनों लोग शामिल हुए हैं.
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