Ranchi : राज्यसभा चुनाव को लेकर मंगलवार को अधिसूचना जारी होने के साथ ही नामांकन की प्रक्रिया शुरू हो गई है. इसके साथ ही गठबंधन उम्मीदवार पर मंथन जारी है. सूत्रों के अनुसार, इसमें सुबोधकांत सहाय का नाम सबसे आगे चल रहा है. कयास लगाए जा रहे हैं कि सुबोधकांत सहाय जेएमएम-कांग्रेस के साझा उम्मीदवार हो सकते हैं. एक कयास और लगाया जा रहा है कि जेएमएम और कांग्रेस अलग-अलग उम्मीदवार उतारेंगे. बता दें कि दो सीटों पर होने वाले चुनाव को लेकर 31 मई तक नामांकन पत्र दाखिल करना है. रांची की लेटेस्ट खबरों के लिए यहां क्लिक करें…
चर्चा थी कि कांग्रेस के दिग्गज नेता कपिल सिब्बल झारखंड से गठबंधन की ओर से साझा उम्मीदवार हो सकते हैं. लेकिन बुधवार को ही उन्होंने समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार तौर पर नामांकन दाखिल कर दिया है.
वहीं, प्रदेश कांग्रेस के कई नेता अभी भी टिकट को लेकर दिल्ली दरबार में हाजिरी लगा रहे हैं. पुख्ता सूत्रों के मुताबिक, पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत रेस में सबसे आगे हैं. वे गठबंधन के साझा उम्मीदवार के रूप में राज्यसभा उम्मीदवार बनाये जा सकते हैं.
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दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं सुबोधकांत
पूर्व केंद्रीय मंत्री और रांची से दो बार लोकसभा सांसद रहे सुबोधकांत इन दिनों दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं. वे लगातार कांग्रेस के शीर्ष नेताओं और राष्ट्रीय अध्यक्षा सोनिया गांधी के संपर्क में हैं. कांग्रेस के उदयपुर चिंतन शिविर के पहले ही सुबोधकांत ने सोनिया गांधी से मुलाकात की थी. उसके बाद से ही उनका राज्यसभा उम्मीदवार बनने के कयास तेज हो गए थे.
चर्चा यह भी है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन राज्यसभा उम्मीदवार को लेकर जल्द ही सोनिया गांधी से मिल सकते हैं. ऐसे में सुधोधकांत का दिल्ली में डेरा जमाना और सोनिया से मुलाकात काफी कुछ इशारा करता है.
जेएमएम विधायकों से भी हैं नजदीकियां
सुबोधकांत सहाय प्रदेश कांग्रेस के काफी सक्रिय और तेजतर्रार नेता माने जाते हैं. दिल्ली के नेताओं से लेकर कांग्रेस और जेएमएम विधायकों के भी करीबी माने जाते हैं. वहीं जेएमएम सुप्रीमो शिबू सोरेन और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के साथ भी उनकी नजदीकियां हैं.
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सोरेन परिवार से सुबोधकांत की नजदीकियां भी इतनी है कि कुछ दिन पहले जब शिबू सोरेन की पत्नी और हेमंत सोरेन की मां रूपी सोरेन हैदराबाद के एक हॉस्पिटल में इलाजरत थीं, तो सुबोधकांत ही प्रदेश के ऐसे नेता थे, जो हालचाल लेने पहुंचे थे. इसके अलावा उनके अल्पसंख्यक विधायकों के साथ भी बेहतर संबंध हैं. ऐसे में अगर वे गठबंधन की ओर से साझा उम्मीदवार होते हैं, तो उन्हें समर्थन मिलने में ज्यादा परेशानी नहीं होगी.