Pravin Kumar
Ranchi: लगभग दो तिहाई झारखड़ के लोगो की रोज़ी रोटी कृषि पर निर्भर करती है. अधिकांश खेती वर्षा पर आधारित होने के कारण कितनी वर्षा कब होती है इसका प्रभाव उन पर पड़ता है. नया साल झारखंड के लिए शायद अच्छी खबर लेकर न आए. 2023 में, राज्य में एरसोल प्रदूषण 5% बढ़ने का अनुमान है और एरसोल प्रदूषण की दृष्टि से राज्य “अत्यधिक असुरक्षित” रेड ज़ोन में बना रहेगा. एक नया अध्ययन बताता है कि राज्य में बढ़ते एरोसोल प्रदूषण से निपटने के लिए ताप विद्युत संयंत्रों के उत्सर्जन में कमी सबसे जरूरी है.
एरोसोल प्रदूषण क्या है ?
एरोसोल की उच्च मात्रा में समुद्री नमक, धूल, ब्लैक और आर्गेनिक कार्बन जैसे प्रदूषकों के साथ-साथ पार्टिकुलेट मैटर (पीएम 2.5 और पीएम 10) भी शामिल रहते हैं. साँस के साथ शरीर में प्रवेश करने से ये लोगों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकते हैं. एरसोल ऑप्टिकल डेप्थ (एओडी) वातावरण में मौजूद एरोसोल का मात्रात्मक अनुमान है और इसे पीएम2.5 के परिमाण के बदले में इस्तेमाल किया जा सकता है.
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गहन अध्ययन के बाद रिपोर्ट तैयार
वर्तमान अध्ययन – “भारत में राज्य स्तरीय एरोसोल प्रदूषण का गहन अध्ययन (अडीप इनसाइट इनटू स्टेट-लेवल एरोसोल पोल्यूशन इन इंडिया)” – बोस इंस्टीट्यूट, कोलकाता के शोधकर्ताओं डॉ. अभिजीत चटर्जी, एसोसिएट प्रोफेसर और उनके पीएचडी स्कॉलर मोनामी दत्ता ने तैयार किया है. यह अध्ययन लंबे अवधि (2005-2019) के रुझान, विभिन्न स्रोतों और अलग-अलग भारतीय राज्यों के लिए भविष्य (2023) के अनुमान के साथ एरोसोल प्रदूषण का राष्ट्रीय परिदृश्य पर आधारित है.
रेड जोन में झारखंड
झारखंड वर्तमान में रेड जोन में है जो 0.5 से अधिक एओडी वाला अत्यधिक असुरक्षित क्षेत्र है. सूबे में एरोसोल प्रदूषण में 5% की वृद्धि का अनुमान है, जिससे 2023 में एओडी परिमाण इस असुरक्षित क्षेत्र में बढ़कर 0.6 से अधिक हो जाएगा. एओडी का परिमाण 0 से 1 की बीच आंका जाता है. 0 अधिकतम दृश्यता के साथ पूरी तरह साफ़ आकाश का संकेतक है जबकि 1 बहुत धुंधले वातावरण को इंगित करता है. 0.3 से कम एओडी परिमाण ग्रीन ज़ोन (सुरक्षित), 0.3 से 0.4 ब्लू ज़ोन (कम असुरक्षित), 0.4 से 0.5 ऑरेंज जोन (असुरक्षित) है जबकि 0.5 से अधिक रेड जोन (अत्यधिक असुरक्षित) के अंतर्गत आता है.
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झारखंड में अत्यधिक जोखिम- अभिजीत चटर्जी
अध्ययन के मुख्य लेखक और बोस इंस्टीट्यूट में पर्यावरण विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ अभिजीत चटर्जी ने कहा, “झारखंड में एओडी में वृद्धि मामूली लग सकती है और ऐसा लग सकता है कि यह चिंता का विषय नहीं है, लेकिन यह राज्य पहले से ही उच्च एओडी परिमाण के साथ अत्यधिक जोखिम वाले रेड जोन में है. थोड़ी सी भी वृद्धि इसे भविष्य में अत्यधिक असुरक्षित की ओर धकेल देगी.”
एरोसोल प्रदूषण के लिए ताप विद्युत संयंत्र जिम्मेदार
झारखंड के प्रमुख एरोसोल प्रदूषण स्रोतों में, ताप विद्युत संयंत्रों (टीपीपी) का उत्सर्जन इस राज्य में वायु प्रदूषण का प्रमुख कारक है. अध्ययन की सह-लेखिका और बोस इंस्टीट्यूट, कोलकाता की सीनियर रिसर्च फेलो मोनामी दत्ता ने विस्तार से बताया, “टीपीपी का उत्सर्जन 2005-2009 के 41% से बढ़कर 2015-2019 के बीच 49% हो गया. इसका संबंध टीपीपी की उत्पादन क्षमता में वृद्धि से है जो 2005-2009 की 3256 गीगावाट से बढ़कर 2015-2019 के बीच 7531 गीगावाट हो गई.” झारखंड में ठोस ईंधन का उपयोग दूसरा सबसे बड़ा स्रोत है, हालांकि अध्ययन में पाया गया कि इसका योगदान 2005-2009 से 2015-2019 के बीच 18% से घटकर 15% हो गया. इसी अवधि के दौरान 16% से 14% की मामूली कमी के साथ वाहन उत्सर्जन तीसरा सबसे बड़ा स्रोत है.
प्रदूषण पर लगाम के लिए अनुशंसाएं
अध्ययन ने झारखंड में बढ़ते एयरोसोल प्रदूषण को रोकने के लिए कुछ अनुशंसाएं प्रस्तुत की गई हैं. लेखकों का कहना है कि अध्ययन के मुताबिक झारखंड में एरोसोल प्रदूषण का स्तर प्रमुख रूप से टीपीपी के उत्सर्जन से प्रभावित है. दत्ता ने कहा, “झारखंड को 0.4 तक के सुरक्षित एओडी परिमाण को हासिल करने के लिए टीपीपी उत्सर्जन में लगभग 70-80% की कमी करने की जरुरत होगी. इसका मतलब यह है कि रेड ज़ोन से ब्लू ज़ोन में जाने के लिए राज्य को अपनी टीपीपी क्षमता में 5 गीगावाट की कमी करनी पड़ेगी.”
एओडी की विभिन्न श्रेणियां
परिमाण (पर्सेंटाइल) के आधार पर 4 अलग-अलग कलर जोन होते हैं:
हरा (सुरक्षित क्षेत्र) – एओडी परिमाण 0.3 से कम
नीला (कम असुरक्षित क्षेत्र) – एओडी परिमाण 0.3 से 0.4 के बीच
नारंगी (असुरक्षित क्षेत्र) – एओडी परिमाण 0.4 से 0.5 के बीच
लाल (अत्यधिक असुरक्षित क्षेत्र) – एओडी परिमाण 0.5 से अधिक
अध्ययन में, 0.4 तक के एओडी परिमाण को एरोसोल प्रदूषण के लिहाज से सुरक्षित माना गया है और इस सीमा से ऊपर के राज्यों को असुरक्षित माना गया है.