Nitesh Ojha
Ranchi: झाऱखंड प्रदेश कांग्रेस प्रभारी अविनाश पांडे एक बार झाऱखंड दौरे पर हैं. चार जिलों में होने वाले गौरव यात्रा में भाग लेने के लिए वे शुक्रवार को देवघर पहुंचे. झारखंड प्रभारी बनने के बाद से वे राज्य दौरा कर कार्यक्रम पर कार्यक्रम कर रहे हैं, ताकि प्रदेश में कांग्रेस मजबूत हो सके. देखा जाए, तो अविनाश पांडे जी, आप अच्छे संगठनकर्ता हैं. लेकिन प्रभारी बनने के करीब सात माह बाद भी आप प्रदेश कांग्रेस संगठन के अंदर की अंदरूनी कलह और प्रदेश की राजनीतिक हालतों को भांप नहीं पा रहे हैं. विधायक गठबंधन के मुखिया (मुख्यमंत्री) पर सवाल उठाते रहे हैं. पार्टी लाइन से अलग राष्ट्रपति चुनाव में क्रॉस वोटिंग कर रहे हैं. कई विधायक सरकार के खिलाफ ही बागी हो गए. आज पार्टी के तीन विधायक बंगाल सीआईडी के कस्टडी में हैं.
संगठन और सरकार में बढ़ रही दूरियां
जनवरी 2022 में अविनाश पांडे झारखंड कांग्रेस के प्रभारी बनें. प्रभारी बनते ही उन्होंने कांग्रेस को मजबूत करना शुरू किया. झारखंड कांग्रेस को-ऑर्डिनेशन कमेटी का गठन हुआ. अविनाश पांडे के नेतृत्व में लंबे समय के बाद कांग्रेस का चिंतन शिविर गिरिडीह के पारसनाथ में आयोजित हुआ. राहुल गांधी, जयराम रमेश जैसे नेताओं ने कार्यक्रमों को संबोधित कर कार्यकर्ताओं में जान फूंकने की कोशि की, लेकिन आप यह नहीं समझ पाए कि चिंतन शिविर में महागठबंधन के मुखिया (मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन) पर ही कांग्रेस विधायक सवाल उठाएंगे. मंत्री बन्ना गुप्ता ने कहा, “जब माझी ही नाव डुबोये तो उसे कौन बचाये.” हालांकि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि बन्ना ने सवाल उठाए हों. इससे पहले भी बन्ना गुप्ता ने ट्रांसफर पोस्टिंग को लेकर राज्य सरकार की नीतियों पर सवाल खड़ा कर चुके थे.
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न्यूनतम साझा कार्यक्रम अधर में
विधानसभा चुनाव के पहले कांग्रेस का चुनावी वादा न्यूनतम साझा कार्यक्रम के बारे में था, लेकिन कांग्रेस प्रभारी अब इस पर बात ही नहीं करते. अप्रैल माह में मीडिया को दिये बयान में अविनाश पांडे ने कहा था कि उन्होंने 7 मार्च को ही मुख्यमंत्री को कॉमन मिनिमम प्रोग्राम और चार्टर्ड ऑफ कोलिएशन (गठबंधन के कुछ नियम) की लिस्ट सौंपी थी. लेकिन आज तक यह न्यूनतम साझा कार्यक्रम लागू नहीं हुआ. यह स्थिति तब की है, जब सरकार के करीब ढाई साल पूरे हो चुके हैं. अब तो अविनाश पांडेय ने इसे लेकर चुप्पी ही साध ली है. इस बारे में दोबारा उनका कोई बयान नहीं आ रहा.
9 जिलों में बीस सूत्री का गठन नहीं
पूर्व प्रभारी आरपीएन सिंह के रहते 15 जिलों और इसके प्रखंडों में बीस सूत्री क्रियान्वयन समिति का गठन हुआ था. लेकिन अविनाश पांडे के प्रभारी बनने के बाद से अभी तक बाकी जिलों में बीस सूत्री का गठन ही नहीं हो पाया है. इस बीच एक पहल जरूर हुई. कांग्रेस-झामुमो-राजद के बीच गठबंधन में बेहतर तालमेल के लिए समन्वय समिति का गठन हुआ. मांडर उपचुनाव के ठीक पहले एक बार बैठक भी हुई. लेकिन उसके बाद से समिति की कोई चर्चा नहीं.
राष्ट्रपति चुनाव में क्रॉस वोटिंग से किरकिरी
प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे तो अपने विधायकों की अंदरूनी नाराजगी तक को भांप नहीं पाए. नाराजगी भी इतनी कि राष्ट्रपति चुनाव में पार्टी लाइन से अलग विधायकों ने खुलकर क्रॉस वोटिंग की. वोटिंग भी ऐसा कि इतिहास ही बन गया. प्रभारी फिर भी दावा करते रहे कि पार्टी के अंदर सबकुछ ठीक-ठाक है. लेकिन विधायक किस तरह अपनी ही सरकार गिराने की लॉबिंग कर रहे थे, उसकी उन्हें भनक तक नहीं लगी. जिसका हश्र है कि आज कांग्रेस के तीन विधायक इरफान अंसारी, राजेश कच्छप और नमन विक्सल कोंगाड़ी कैश कांड मामले में बंगाल सीआईडी के कस्टडी में हैं.
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राजस्थान में प्रभारी रहते नहीं संभाल पाये स्थिति
झारखंड कांग्रेस प्रभारी भले एक अच्छे संगठनकर्ता हैं, लेकिन पिछले कई सालों से उन्हें अन्य प्रदेशों में विफलता ही हाथ लगी है. मई 2017 को उन्हें राजस्थान कांग्रेस का प्रभारी बनाया गया. प्रभारी रहते ही वहां के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और दिग्गज नेता सचिन पायलट के बीच विवाद की जो स्थिति बनी, वह जगजाहिर है. पार्टी दो खेमों में बंटकर काम करने लगी, सरकार गिरने तक की नौबत आ गई.
बिहार-उत्तराखंड में भी नहीं दिला पाये सफलता
अविनाश पांडे को फिर बिहार और उसके बाद उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के लिए स्क्रीनिंग कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया. उनके नेतृत्व में चुनाव में उम्मीदवारों के चयन की पहल हुई. दोनों ही राज्यों में हुए चुनाव में पार्टी मात्र 19 सीटों पर सिमट कर रह गयी.