Rohtas: नवरात्र में मंदिरों में पूजा का विशेष महत्व होता है. भक्तों को जहां के मंदिर के बारे में पता चलता है वे वहां पहुंचते हैं. बिहार के रोहतास जिले के सासाराम का मां ताराचंडी मंदिर का भी विशेष महत्व है. ताराचंडी का मंदिर सासाराम के कैमूर पहाड़ी की गुफा में है. इस मंदिर के आसपास पहाड़, झरने और अन्य जलस्रोत हैं. यह मंदिर भारत के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक है. यहां सालों भर भक्तों का आना लगा रहता है.
कहा जाता है कि यहां आने वालों की हर मनोकामना माता रानी पूरा करती हैं. इसलिए लोग मनोकामना सिद्धी देवी भी कहते हैं. मान्यता है कि यहां पर माता सती की दाहिनी आंख गिरी थी. पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान शंकर जब अपनी पत्नी सती के मृत शरीर को लेकर तीनों लोकों में घूम रहे थे तब देवता भी भयभीत हो गये थे. देवताओं के अनुरोध पर भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खंडित किया था.
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महर्षि विश्वामित्र ने इस पीठ का नाम तारा रखा था
बताया जाता है कि जहां-जहां सती के शरीर का खंड गिरा उसे शक्तिपीठ माना गया. सासाराम का ताराचंडी मंदिर भी उन्हीं शक्तिपीठों में से एक है. मंदिर की प्राचीनता के बारे में कोई लिखित साक्ष्य उपलब्ध नहीं है. लेकिन मंदिर के शिलालेख से स्पष्ट होता है कि 11वीं सदी में भी यह देश के विख्यात शक्ति स्थलों में से एक था. कहा जाता है कि महर्षि विश्वामित्र ने इस पीठ का नाम तारा रखा था. यहीं पर परशुराम ने सहस्त्रबाहु को पराजित कर मां तारा की उपासना की थी. इस शक्तिपीठ में मां ताराचंडी बालिका के रूप में प्रकट हुई थीं और यहीं पर चंड का वध कर चंडी कहलाई थीं. नवरात्र में लगभग दो लाख श्रद्धालु मां का दर्शन करने पहुंचते हैं. आज भी भक्त अपनी मनोकामना लेकर मंदिर पहुंचते हैं और पूजा करते हैं.
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