- 74 फीसदी सीटें खाली रहने के बाद भी 89 फीसदी आवेदनों को बिना कारण बताये कर दिया गया खारिज
- रांची शहर की 54 झुग्गी-बस्तियों में रहने वाले वैसे परिवारों का भी सर्वे अगस्त 2021 में किया गया
- अभिभावकों ने स्कूलों में आर्थिक व जाति आधारित भेदभाव का होते हैं शिकार
Ranchi : आर्थिक रूप से कमजोर और वंचित बच्चे रांची के निजी स्कूलों में निजी स्कूलों में 25 प्रतिशत सीटों के आरक्षण के प्रावधान का लाभ नहीं ले पा रहे हैं. रांची शहर की 54 झुग्गी बस्तियों में रहने वाले वैसे परिवारों का भी सर्वे अगस्त 2021 में किया गया, जिन परिवारों ने विगत वर्ष एडमिशन के लिए आवेदन किया था, जिनके बच्चों को निजी स्कूलों में दाखिल नहीं मिल सका. एसोसिएशन फॉर परिवर्तन ऑफ नेशन (APNA) की रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रवेश की पूरी प्रक्रिया अस्पष्टता, भेदभावपूर्ण व्यवहार और कई अन्य अनियमितताओं से भरी हुई है. प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान संगठन के अध्यक्ष हसन अल बन्ना, शोधकर्ता पल्लवी प्रतिभा और पीड़ित परिवार मौजूद थे. रिपोर्ट जारी करते हुए सदस्यों ने नीति के कार्यान्वयन में आने वाली समस्याओं और स्कूलों द्वारा अभिभावकों से किये गये अच्छे-बुरे बर्ताव को भी बारीकी से रखा.
एसोसिएशन फॉर परिवर्तन ऑफ नेशन (APNA) ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम – 2009 की धारा 12 (1) (सी) के कार्यान्वयन की स्थिति और झारखंड में लाभार्थियों द्वारा की गयी चुनौतियों का सामना पर जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम- 2009 की धारा 12 (1) (सी) में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) और वंचित समूहों (डीजी) के बच्चों के लिए प्रवेश स्तर की कक्षाओं में सभी निजी स्कूलों में 25 प्रतिशत सीटों के आरक्षण का प्रावधान है. लेकिन स्कूलों में अपने बच्चों के दाखिले के लिए अभिभावकों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है.
इसे भी पढ़ें- केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा का खरसावां-कुचाई का दौरा 25 को, कई कार्यक्रमों में लेंगे हिस्सा
जानें, स्कलों में दाखिले के लिए आवेदन प्रक्रिया किस तरह की समस्या होती है
जागरुकता कार्यक्रमों का अभाव: कमजोर वर्ग के बीच उनके बच्चों के निजी स्कूलों में दखिला के लिए सरकार के स्तर पर न ही स्कूलों द्वारा किसी तरह का जागरुकता अभियान नहीं चलाया जाता. 54 उत्तरदाताओं में से केवल 1 ने कहा कि उन्होंने अपने स्थानीय प्राधिकरण से प्रक्रिया के बारे में जानकारी प्राप्त की, जबकि उनमें से अधिकतर लोगों को आरटीई के बारे में मालूम ही नहीं है.
स्कूल स्तर पर समस्याएं: अभिभावकों ने स्कूलों में आर्थिक व जाति आधारित भेदभाव की शिकायत होती है. सर्वे रिपोर्ट के अनुसार वंचित समाज के माता-पिता को स्कूलों के अंदर जाने नहीं दिया जाता और उनके आवेदन पत्र को गार्ड को सौंप दिया जाता. उसके बदले उन्हें कोई रिसीविंग भी नही दी जाती. लगभग 59 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि स्कूल के कर्मचारियों ने उनके साथ दुर्व्यवहार किया. कुछ मामलों में, स्कूलों ने माता-पिता से सरकार द्वारा सूचीबद्ध किए गए दस्तावेजों की तुलना में अतिरिक्त दस्तावेज मांगे. मुरमा की लक्ष्मी देवी और रविदास मुहल्ला के राजेश राम को रांची के दिल्ली पब्लिक स्कूल में प्रवेश से वंचित कर दिया गया. प्रवेश प्रक्रिया और दस्तावेजों से संबंधित किसी भी प्रश्न की जानकारी के लिए परिवारों को शायद ही किसी प्रशासनिक कर्मचारी से मिलने का मौका मिलता है.
आवेदन ट्रैकिंग प्रणाली की अनुपस्थिति: एक बार जब माता-पिता स्कूल में आवेदन पत्र जमा कर देते हैं, तो वे पूरी प्रवेश प्रक्रिया से पूरी तरह कट जाते हैं. माता-पिता या अभिभावकों को आवेदन की स्थिति पर कोई जानकारी नहीं मिलती. इसके अतिरिक्त स्कूल आवेदकों को परिणाम की तारीख के बारे में भी सूचित नहीं करते हैं और माता-पिता को अक्सर परिणाम देखने के लिए स्कूलों में कई बार जाना पड़ता है. अक्सर अभिभावकों के सभी दस्तावेज और सीटों की उपलब्धता के बावजूद उनके आवेदनों को बिना कोई कारण बताए खारिज कर दिया जाता हैं.
आरटीआई जवाब के मुताबिक 2019-20 रांची में 74 फीसदी सीटें खाली रहने के बावजूद 89 फीसदी आवेदनों को बिना कोई वजह बताये खारिज कर दिए गया था. रविदास मोहल्ला के सर्वेश वर्धन ने तीन स्कूलों- फिरायालाल पब्लिक स्कूल, सच्चिदानंद ज्ञान भारती मॉडल स्कूल और जवाहर विद्या मंदिर में आवेदन पत्र जमा किया, लेकिन तीनों स्कूलों ने उनके आवेदन को खारिज कर दिया, अस्वीकृति का कारण आज तक अज्ञात है.
इसे भी पढ़ें- हाईकोर्ट का निर्देश: त्योहारों के दौरान सख्ती से कोरोना गाइडलाइंस का हो पालन, सरकार ने दी तैयारियों की जानकारी
परिवार पर वित्तीय बोझ
80 प्रतिशत से अधिक उत्तरदाताओं ने कहा कि उन्हें दो या दो से अधिक बार स्कूल जाना पड़ा, जिससे उनकी दैनिक मजदूरी पर प्रभाव पड़ा. इसके अलावा, आवेदन पत्र की छोटी अवधि होने के कारण, माता-पिता को अक्सर दस्तावेज़ों में रिश्वत देनी पड़ी. जगन्नाथपुर की सुभद्रा देवी लोगों के घरों में घरेलू काम करती हैं. उन्होंने बताया, सरकार को हमारी झुग्गी का दौरा करना चाहिए और यहां की स्थिति को देखना चाहिए. यहां के लोग नौकरानी, ड्राइवर या कुली का काम करते हैं. जब हम दो दिन की मजदूरी से चूक जाते हैं, तो हमारे पास अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए भोजन नहीं होता है.