इंजीनयरिंग की डिग्री लेने के बाद भी नहीं नौकरी नहीं मिली
Sahibganj : साहिबगंज जिला मुख्यालय से करीब 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है बरहेट प्रखंड का भोगनाडीह. कई दिनों से यहां 30 जून को आयोजित हूल दिवस की तैयारी को लेकर खूब चहल पहल है. प्रशासनिक अधिकारियों की टीम निरीक्षण में जुटी है. विभिन्न राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता भी अपने-अपने तरीके से समारोह की तैयारी में जुटे हैं. स्टेडियम में विशाल पंडाल बनाया गया है. सिदो-कान्हू पार्क की सफाई कराई गई है. चहल-पहल से हटकर भोगनाडीह की सच्चाई कुछ और है. झारखंड बनने के बाद यहां कई दलों की सरकारें बनीं, लेकिन जिन अमर शहीद सिदो-कान्हू के सम्मान में हर वर्ष 30 जून को यह समारोह आयोजित किया जाता है, उनके वंशज उपेक्षित हैं. उन्हें रोजगार नहीं मिला और न ही यथोचित सम्मान मिला. 29 जून को सिदो-कान्हू के वंशज मंडल मुर्मू भोगनाडीह में दो दिवसीय फुटबाल टूर्नामेंट का उद्घाटन करने पहुंचे. मंडल मुर्मू उनके वंशज में इकलौते हैं, जिन्होंने इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की है. अच्छी पढ़ाई करने के बाद भी वे बेरोजगार हैं. उनका कहना है कि झारखंड की पूर्व सरकारों को कई बार नौकरी के लिए आवेदन दिया, लेकिन परिणाम कुछ नहीं निकला. उन्होंने बताया कि अंग्रेजी हुकूमत व महाजनी प्रथा के खिलाफ 1855 के 30 जून को आंदोलन का बिगुल फूंकने वाले सिदो-कान्हू, चांद-भैरव व फूलो-झानो की जन्मस्थली भोगनाडीह का आज तक समुचित विकास नहीं हुआ. सिदो-कान्हू पार्क में अन्य बलिदानियों फूलो मुर्मू व झानो मुर्मू की प्रतिमा नहीं लगी. हर वर्ष अप्रैल में सिदो-कान्हू की जयंती और हूल दिवस पर ही पार्क खुलता है. इसकी साफ-सफाई करवाई जाती है. कार्यक्रम की समाप्ति के बाद ताला लटका दिया जाता है. फिर साल भर यहां झांकने कोई नहीं आते.
भोगनाडीह में नागरिक सुविधाओं की भी कमी है. ग्रामीणों ने पूछने पर एक-एक कर असुविधाओं को गिनाया. भोगनाडीह निवासी रामू मरांडी का कहना है कि गांव में लोग कृषि पर ही निर्भर हैं, लेकिन खेती करने के लिए सुविधा उपलब्ध नहीं है. गांव में डीप बोरिंग तक नहीं है. यहां शिक्षा की भी बदहाल स्थिति है. सिदो-कान्हू के नाम पर बड़े-बड़े शिक्षण संस्थान खोले गए हैं, लेकिन ग्रामीणों को इसका लाभ नहीं मिल रहा है. गांव में बिजली आपूर्ति की भी बदहाल स्थिति है. हल्की आंधी पानी होने पर बिजली गायब हो जाती है, जो दो तीन दिनों तक गायब रहती है. व्यवस्था देखकर लगता है कि सरकार को इस बलिदानियों की धरती की चिंता नहीं है.
सिदो-कान्हू, चांद-भैरव व फूलो-झानो छह भाई बहन थे. उनका जन्म बरहेट प्रखंड में स्थित भोगनाडीह गांव में हुआ था. अंग्रेजों के शोषण व महाजनों के अत्याचार से तंग आकर सिदो-कान्हू के नेतृत्व में 30 जून 1855 को ग्रामीणों ने तत्कालीन ब्रिटश हुकूमत के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंक दिया, जिसे हूल दिवस के नाम से जाना जाता है. इस आंदोलन ने अंग्रेजी शासन की नींव हिला दी थी. इसके बाद अंग्रेजों ने आंदोलनकारियों का दमन शुरू किया. अंग्रेजी सत्ता ने 20 हजार आदिवासियों को मौत के घाट उतार दिए. सिदो-कान्हू को बरहेट प्रखंड के ही पचकठिया में फांसी दी गई. अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की याद में हूल दिवस मनाया जाता है. कोरोना काल में तीन साल हूल दिवस फीका रहा. इस वर्ष जोरदार तैयारी की गई है.
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