Ranchi / Delhi : मंगलवार को विश्व महिला दिवस के अवसर पर सखुआ टीम ने एक फेसबुक लाइव किया जिसका विषय था “क्या भारत में सशक्त आदिवासी महिलाओं को बढ़ने का मिलता है पूरा मौका?” इस कार्यक्रम में मुख्य रुप से लेखिका सुनीता घोगरा राजस्थान से, नार्थ ईस्टर्न यूनिवर्सिटी की शोद्यार्थी डायाफिरा खरसती मेघालय से, कवयित्री सरिता बड़ाईक झारखंड से और सोशल मीडिया एक्टिविस्ट नीलम सम्ब्रुई ने जुड़ी. इस कार्यक्रम में आदिवासी महिलाओं की शिक्षा व्यवस्था, आर्थिक मज़बूती और आदिवासी महिलाओं की राजनीति जैसे मुद्दों पर भी चर्चा हुई.
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क्या है सखुआ टीम
सखुआ आदिवासी महिलाओं द्वारा चलाए जाने वाला एक पोर्टल है. जो आदिवासी महिलाओं के विषयों पर आधारित है. इस पोर्टल में आदिवासी महिलाओं के राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक जैसे विषयों पर प्रकाश डालने का काम करता है. ये आदिवासी महिलाओं का संदेश वाहक है जो उनकी आवाज़ को जन-जन तक पहुंचाने का काम करता है. इस पोर्टल के जरिए आदिवासी महिलाओं की दुनिया को जानने-समझने का मौका मिलता है. साथ ही देश दुनिया तक आदिवासी महिलाओं का परिचय व आदिवासी इतिहास, संघर्ष, विरासत, ज्ञान-परम्परा की जानकारियां भी देती है.
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आदिवासी महिलाओं ने रखी सखुआ की नींव
सखुआ पोर्टल की नींव आदिवासी महिलाओं ने रखी है. ये सभी महिलाएं भारत के अलग अलग आदिवासी समुदाय से संबंध रखती है. फाउंडिग एडिटर मोनिका मरांडी, रिसर्च हेड ज़ोबा हांसदा, टेक्निकल टीम हेड करूणा केरकेट्टा , चीफ प्रोड्यूसर रजनी मुर्मू, रोज़ी कामेई एग्जीक्यूटिव एडिटर, लूसी हेमब्रम मॉडरेटर और प्रियंका सांडिल्य इन्फ्लुएंसर डिपार्टमेंट हैड, एलिन लकड़ा पब्लिक रिलेशन डिपार्टमेंट हैड है.
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झारखंड की कवित्री सरिता बड़ईक ने कहा
फेसबुक लाइव के दौरान झारखंड की कवित्री सरिता बड़ईक जो आदिवासी महिलाओं पर किताबें लिखती रही हैं. उन्होने कहा कि बचपन से लेकर बड़े होने तक एक आदिवासी लड़की सामाजिक और पारिवारिक रूप से बहुत सी प्रताड़नाएं झेलती है. इसके बावजूद वो अपने घर परिवार को संभालती हैं. ऐसी कोई जगह नहीं है जहां उसे अपने आदिवासी होने कि वजह से पीछे धकेला न गया हो पर अब वक्त आ गया है कि आदिवासी महिलायें अपने अधिकारों के लिए लड़े और अपने सम्मान के लिए आवाज़ बुलंद करें.
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देश में आदिवासी महिलाएं आगे नहीं बढ़ पा रही- नीलम सम्ब्रुई
सोशल मीडिया एक्टिविस्ट नीलम सम्ब्रुई ने कहा कि अगर इस देश में आदिवासी महिलाएं आगे नहीं बढ़ पा रही हैं तो इसमें बहुत बड़ा हाथ हमारी शिक्षा व्यवस्था का है. स्कूल में पढ़ाई जाने वाली किताबों से आदिवासी वीरांगनाओं का इतिहास पढ़ाया ही नहीं जाता है जिसकी वजह से न लोग आदिवासी समाज को समझ पाते हैं और न ही आदिवासी समुदाय के लोग अपने इतिहास पर गर्व कर पाते हैं. हमें ज़रूरत है कि आदिवासी समाज का इतिहास स्कूलों में पढ़ाई जाने वाली किताबों का हिस्सा बनें.
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राजस्थानी लेखिका सुनीता घोगरा ने कहा
राजस्थान की लेखिका सुनीता घोगरा ने कहा कि आदिवासी महिलाओं की एकता के लिए हमें एकजुट होने की ज़रूरत है, हमें सखुआ के साथ मिल कर या सखुआ जैसा एक ऐसा प्लेटफार्म बनाने की ज़रूरत है जहां आदिवासी महिलाएं अपनी बात रख सके और सरकार उस पर गौर फरमाएं.
डायाफिरा खरसती ने की तारीफ
मेघालय से जुड़ी नार्थ ईस्टर्न यूनिवर्सिटी की शोद्यार्थी सखुआ की तारिफ की और कहां ऐसा पहली बार हुआ है कि एक ही मंच पर नार्थ इंडिया और नार्थ ईस्ट इंडिया की आदिवासी महिलाएं जुड़ पाई हैं और सखुआ पूरे भारत में सभी आदिवासी महिलाओं को जोड़ने का काम कर रहा है वो काबिले तारीफ है.