Shailesh Singh
Kiriburu : सारंडा के अत्यंत पिछड़े एवं विकास से कोसों दूर गांव चेरवालोर, धर्नादिरी, बालेहातु, कादोडीह, चेरवालोर आदि गांवों के ग्रामीणों को सरकारी राशन लाने के लिए अभी 30 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है. यानी सरकारी राशन लाने के लिए उन्हें 60 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है. इस दूरी को कम करने के लिए और सुगमता से उन्हें राशन मुहैया कराने के लिए उपायुक्त अनन्य मित्तल के निर्देश पर नोवामुंडी के अंचलाधिकारी सह प्रभारी बीडीओ सुनील चन्द्रा ने किरीबुरु थाना प्रभारी अशोक कुमार, मुखिया प्रभु सहाय भेंगरा आदि के साथ उक्त गांवों का दौरा किया. दौरे के क्रम में ग्रामीणों ने कहा कि इन सभी गांवों का सेंटर प्वाइंट जुम्बईबुरु गांव है, जहां से इन सभी गांवों की दूरी लगभग तीन-चार किलोमीटर के आसपास होगी. जुम्बईबुरु में यदि जन वितरण प्रणाली की दुकान खुलती है तो सभी गांवों के ग्रामीणों की पहुंच वहां आसानी से हो सकेगी. गौरतलब है कि उक्त गांवों में वाहन जाने के लिए आज तक कच्ची सड़क भी नहीं बन पाया है. ग्रामीण पहाड़ी व पगडंडी रास्ते से किरीबुरु स्थित बाजार व अस्पताल पैदल आना-जाना करते हैं.
जल्द जनवितरण दुकान खोलने का होगा प्रयास
इस संबंध में अंचलाधिकारी सुनील चन्द्रा ने लगातार न्यूज से बातचीत में कहा की यह सत्य है कि उक्त गांवों तक जाने की कोई सड़क या रास्ता नहीं है, जिस कारण ग्रामीण दर्जनों किलोमीटर पैदल चलकर राशन लेने करमपदा या मेघाहातुबुरु जाते हैं. ग्रामीणों की इस समस्या को देखते हुए गांवों का दौरा कर ग्रामीणों से बात की गई. सभी ग्रामीणों ने कहा कि जुम्बईबुरु हम सभी के गांवों का सेंटर प्वाइंट होगा, जहां किसी महिला समूह या अन्य के नाम जन वितरण प्रणाली की दुकान का लाइसेंस देकर वहां से ग्रामीणों को राशन उपलब्ध कराया जाये. हम ग्रामीणों के इस प्रस्ताव को उपायुक्त के पास भेजेंगे और प्रयास होगा की जल्द इस समस्या का समाधान किया जा सके.
आज भी पांचों गांव की सरकारी पहचान करमपदा ही है
आज भी इन पांचों गांव के ग्रामीणों की पहचान सरकारी पहचान के अनुसार करमपदा के नाम से है, जिसके तहत ये मात्र मताधिकार का प्रयोग करते हैं. वनाधिकार का जो पट्टा पूर्व में दिया गया था वह भी धोखा साबित हुआ एवं वह विवादों में है जिसे सुधार कर नये सिरे से देने की बात तो कही गयी थी लेकिन अब तक नहीं मिल पाया. ग्रामीणों को नये उपायुक्त अनन्य मित्तल एवं अंचलाधिकारी सुनील चन्द्रा से काफी उम्मीदें है. ग्रामीणों ने बताया की वह गांव में स्कूल, वनाधिकार के तहत जमीन का पट्टा, पेयजल, चिकित्सा, सिंचाई, जनवितरण की दुकान, यातायात, रोजगार, नाला पर पुलिया का निर्माण, गांव की अपनी सरकारी पहचान व गांव के नाम पर आधार कार्ड आदि सुविधाएं चाहते हैं.
कोरोना काल में एस्पायर की टीम ने किया सर्वे
हेमंत सोरेन सरकार के निर्देश पर सारंडा के चेरवालोर, धर्नादिरी, जम्बईबुरु, बालेहातु, कादोडीह, करमपदा, नवागांव, भनगाँव, कलैता, बंकर, नुईयागडा़, रांगरिंग, बोड़दाभठ्ठी, काटोगडा़, मर्चीगडा़, होंजोरदिरी, कुमडीह आदि गांवों का सर्वे कार्य गैर सरकारी संगठन एस्पायर की पंद्रह सदस्यीय टीम द्वारा कोरोना काल में प्रशासन की ओर से करवाया गया. एस्पायर टीम के सदस्यों ने तमाम गांवों में जाकर गांव के मानकी-मुंडा, परिवार के मुखिया समेत तमाम सदस्यों के नाम, गांव की आबादी, ग्रामीणों के पास मौजूद आधार कार्ड व अन्य पहचान पत्र, गांव में स्कूल, पेयजल, चिकित्सा की सुविधा, बिजली, सोलर लाईट, जन वितरण की व्यवस्था, मुख्य सड़क से गांव की कितनी दूरी तथा गांव तक पहुंच पथ की व्यवस्था है या नहीं, यातायात की क्या सुविधा है, सामुदायिक भवन, वनाधिकार से जुड़ी परिवारीक पट्टा मिला है या नहीं, बच्चों व ग्रामीणों का शिक्षा की स्थिति, आवासों की स्थिति अर्थात कच्चा मकान या इंदिरा आवास है आदि की विस्तृत सर्वे रिपोर्ट तैयार की और जिला प्रशासन को सौंपा. लेकिन इस दिशा में अब तक सकारात्मक कार्य प्रारम्भ नहीं हो पाया है.