NewDelhi : रेवड़ी कल्चर बहुत ही गंभीर मुद्दा है. केंद्र सरकार इस पर अंकुश लगाने के लिए कदम उठाये. चुनाव के दौरान जनता के बीच रेवड़ियां बांटे जाने का मामला सुप्रीम कोर्ट की चौखट पर है. सीजेआई ने आज सुनवाई के क्रम में इसे गंभीर समस्या माना. आज मंगलवार को भारत के मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि यह एक बहुत ही गंभीर मुद्दा है. इस क्रम में सीजेआई ने केंद्र सरकार से स्थिति पर अंकुश लगाने के लिए कदम उठाने को कहा.
आज चुनाव आयोग की ओर से पेश वकील ने SC को बताया कि मुफ्त उपहार और चुनावी वादों से संबंधित नियमों को आदर्श आचार संहिता में शामिल किया गया है, लेकिन इस प्रथा को दंडित करने, प्रतिबंध लगाने के लिए कानून सरकार को बनाना होगा. साथ ही चुनाव आयोग ने याद दिलाया कि सुप्रीम कोर्ट के ऐसे फैसले हैं जो कहते हैं कि चुनावी घोषणा पत्र कोई वादा नहीं है.
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आप इसे लिखित में क्यों नहीं देते कि हमारे पास कोई अधिकार नहीं है
साथ ही अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने भी कहा कि इस मुद्दे पर ईसीआई को विचार करना होगा. सीजेआई ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल से कहा कि आप इसे लिखित में क्यों नहीं देते कि हमारे पास कोई अधिकार नहीं है, चुनाव आयोग को एक कॉल लेने दें. मैं पूछ रहा हूं कि क्या भारत सरकार का मानना है कि यह एक गंभीर मुद्दा है. आप एक स्टैंड लेते हैं तो हम तय करेंगे कि क्या इसे जारी रखा जा सकता है या नहीं.
सुप्रीम कोर्ट ने कपिल सिब्बल से उनकी राय मांगी
इस क्रम में अधिवक्ता उपाध्याय ने कहा कि भारत का नागरिक होने के नाते मुझे यह जानने का अधिकार है कि हम पर कितना कर्ज है? ईसीआई को एक शर्त तय करने दें. CJI एनवी रमना ने एक अलग मामले के लिए कोर्ट में मौजूद वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल से उनकी राय मांगी. उन्होंने सिब्बल से कहा कि वे एक वरिष्ठ अधिवक्ता होने के साथ साथ एक सांसद भी हैं. पूछा कि आप इसे किस तरह देखते हैं?
SC द्वारा पूछे जाने पर इसे सिब्बल ने स्वीकारते हुए कहा कि यह बहुत गंभीर मामला है. कहा कि राजनीतिक मुद्दों के कारण भारत सरकार से कोई फैसला लेने की उम्मीद मैं नहीं कर सकता. हालांकि इस पर विचार करने के लिए वित्त आयोग को आमंत्रित किया जा सकता है.
प्रत्येक राज्य के कर्ज को देखने के लिए वित्त आयोग को शामिल किया जा सकता है
इस क्रम में कपिल सिब्बल ने सीजेआई को सुझाव दिया कि बजट आवंटन और राज्य की स्थिरता बनाते समय प्रत्येक राज्य के कर्ज को देखने के लिए वित्त आयोग को शामिल किया जा सकता है. इस पर सीजेआई ने कहा कि मिस्टर एएसजी (अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल) कृपया इस पर गौर करें, अगर वित्त आयोग इस पर गौर कर सकता है. CJI ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल से सवाल किया है कि क्या वित्त आयोग राज्यों के कर्ज और वादा किये गये फ्रीबीज के संबंध में किसी भी कदम पर विचार कर सकता है?
CJI एनवी रमना, जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने अब अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल से केंद्र सरकार से निर्देश लेने को कहा है कि क्या वित्त आयोग इस मामले पर कोई कदम सुझा सकता है. अधिवक्ता उपाध्याय द्वारा यह कहे जाने पर कि हमने सुझाव दिये हैं. यह एक गंभीर मुद्दा है. इस पर CJI एनवी रमना ने पूछा कि आपने क्या सुझाव दिये हैं कि कैसे मुफ्तखोरी को नियंत्रित किया जाये?
पार्टियों की मान्यता के लिए चुनाव आयोग अतिरिक्त शर्त लगा सकता है
उपाध्याय ने कहा कि लॉ कमीशन की लगभग तीस रिपोर्ट्स जमा कराई गयी हैं. चुनाव आयोग ने चुनाव चिन्ह का आदेश जारी किया है. पार्टियों की मान्यता के लिए शर्तें हैं. चुनाव आयोग अतिरिक्त शर्त लगा सकता है कि राजनीतिक दल ऐसे वादे नहीं करें.
साथ ही उपाध्याय ने अदालत को सूचित किया कि भारतीय राज्यों पर संयुक्त रूप से 70 लाख करोड़ से अधिक का कर्ज है. उन्होंने कहा कि जब मैंने यह याचिका दायर की तो पंजाब राज्य 3 लाख करोड़ के कर्ज में था. पंजाब की पूरी आबादी 3 करोड़ है. इसका मतलब है कि हर नागरिक पर करोड़ों का कर्ज है! कुल मिलाकर सभी राज्य 70 लाख करोड़ से अधिक कर्ज में हैं. कर्नाटक में 6 लाख करोड़ से अधिक हैं.
हम श्रीलंका होने के रास्ते पर हैं!
उपाध्याय का तर्क था कि हम श्रीलंका होने के रास्ते पर हैं. कहा कि यदि हम उसी तरह के मुफ्त वादे करते रहे तो हमारी अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो जायेगी. इस पर सीजेआई ने कहा कि यह एक बहुत ही गंभीर मुद्दा है इसलिए हम इसे सुन रहे हैं. अगर कर्ज है तो केंद्र सरकार इसे नियंत्रित करेगी. आरबीआई वहां है. कहा कि राज्य एक सीमा से अधिक ऋण कैसे ले सकते हैं? जानकारी के अनुसार इस मामले में सुनवाई अब 3 अगस्त को हो सकती है.