Seraikela(Bhagya sagar singh) : सरायकेला जिला मुख्यालय में आज भी एक-दो पानी भरूवा नजर आते हैं जो अपने पुश्तैनी पेशे के माध्यम से अपना जीवन यापन करने के साथ ही जरूरतमंदों की जरूरतें पूरी कर रहे हैं. नगरपंचायत क्षेत्र में हजारों गैलन क्षमता वाले तीन जलमीनारें सक्रिय हैं, दर्जनों चापानल हैं तथा अधिसंख्य समर्थ लोगों ने अपने घर में बोरिंग करवा रखा है. इसके बावजूद एक दो पानी भरूवा अपने पेशे को जीवंत रखे हुए हैं. सरायकेला प्रखंड अंतर्गत बेगनाडीह के मोनो खंडवाल प्रतिदिन सरायकेला बाजार में तीन चार होटलों में अपने कंधे पर पानी से भरे टीनों में पानी भर कर लोगों को देते हैं. जब कभी बिजली गुल रहने से पेयजल विभाग की मोटर नहीं चलती और जलमीनारों के माध्यम से जलापूर्ति ठप्प हो जाती है तो मोनो खंडवाल की खोज अन्य लोग भी करते हैं.
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समाज में इस समुदाय की विशेष पूछ हुआ करती थी
बताया जाता है कि रियासती समय में विभिन्न जलस्रोतों से जरूरतमंदों तक यानि राजभवन से आम जनों के घरों तक पानी उपलब्ध कराने में पानी भरूवा की विशेष महत्ता होती थी. उस वक्त जहां राजभवन सहित धनाढ्य लोगों के लिए धातु निर्मित पात्र (गगरे) से तथा सामान्य लोगों के यहां मिट्टी के घड़ों द्वारा ही माथे पर या भार द्वारा पानी ढ़ोने का काम होता था. ये कार्य करने वाले अधिकतर महाकुड़, खंडवाल एवं गौड़ समुदाय के लोग होते थे. समाज में इस समुदाय की भी विशेष पूछ हुआ करती थी. इनके द्वारा लाये गए जल को पवित्र एवं विश्वसनीय मानते हुए पूजा कार्यों सहित घरेलू खान पान एवं अन्य कार्य मे उपयोग किया जाता था. रियासती समय में अनेक जगहों पर इस समुदाय को बसाया गया था. समाज में इस वर्ग की विशेष पूछ हमेशा रहा करती थी.
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