Seraikela (Bhagya Sagar Singh) : इस वर्ष सही समय पर बारिश नहीं होने से सुखाड़ का असर विशेष पूजा एवं त्योहारों पर भी नजर आने लगा है. धान की नई फसल को घर लाने से पूर्व क्षेत्र में “नुआखाई” या “नया खाई” पूजा करने की प्राचीन परंपरा रही है. इसका आज भी अधिसंख्य निवासी निर्वहन करते हैं. नए अन्न को ग्रहण करने के पूर्व अपने ईष्ट देवी सहित अन्य देवी-देवता एवं पितरों को भी अनिवार्य रूप से भोग लगाया जाता है.
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जिले में कहीं भी इस वर्ष सुखाड़ के कारण नया धान नहीं हुआ उत्पन्न
इस व्यवसाय में लगे लोग अगल-बगल टांड गोडा जमीन में उपजाई जाने वाली धान को लाकर बाजार में चावल बना कर बेचते हैं. औसतन इस चावल की कीमत 100 रुपये के अंदर रहा करती है. लेकिन इस वर्ष मार्केट में नया धान 100 रुपये किलो एवं चावल 300 रुपये किलो बिक रहा है. ऐसा होने का मुख्य कारण बताया जा रहा है कि जिले में कहीं भी इस वर्ष सुखाड़ के कारण नया धान उत्पन्न नहीं हुआ है. बंगाल सीमा के सुइसा से धान लाकर चावल बना कर व्यवसायी बेच रहे हैं.
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नुआखाई में धान से बने चूड़ा व चावल से बने खीर का लगाया जाता है भोग
नुआखाई में ऐसे तो क्षेत्रवार कुछ-कुछ परिवर्तन के साथ पूजा परंपरा का निर्वहन होता है. लेकिन मुख्य रूप से इस रश्म के बाद ही नए अन्न को घर लाने की परंपरा है. धान से बने चूड़ा एवं चावल से बने खीर का भोग लगाया जाता है. भोग लगाने की प्राचीन परंपरा को यह मुख्यतः कृषि से संबंधित एक आध्यात्मिक त्योहार है. इसे राजा एवं जमींदारों के साथ ही एक श्रमिक वर्गीय किसान भी मनाते आ रहे हैं. यह अलग बात है कि सिंचाई की सुविधा नहीं मिलने एवं आधुनिकता की दौड़ में अधिसंख्य निवासी खेती किसानी से दूरी बनाते रहे हैं. लेकिन आध्यात्म के साथ जुड़े नुआखाई रश्म को मनाना कोई नहीं भूले हैं.
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