Faisal Anurag
पांच राज्यों के बीच संसद के बजट सत्र में भारतीय स्वतंत्रता के मूल्यों,संविधान की मूल चेतना,लोकतंत्र,भारतीय संस्कृति की विविधता जैसी पहलुओं पर चर्चा हो रही है. पहले राहुल गांधी के लोकसभा में दिए गए भाषण ने ध्यानाकर्षण किया तो अब राजयसभा में राष्ट्रीय जनता दल के मनोज झा के एक व्याख्यान की खूब चर्चा हो रही है. दोनों ही भाषण राष्ट्रपति के अभिभाषण, धन्यवाद प्रस्ताव पर हुए हैं. सोशल मीडिया पर इन भाषणों की चर्चा से जाहिर होता है कि लोग संजीदा और तर्क संगत संसदीय भाषणों को लेकर लोगों में उत्सुक रहती है.
जागरूक नागरिक संसद को बेहतर बहस के कार्यस्थल के रूप में देखना चाहते हैं जो दो दशकों से कभी कभी ही चमक दिखा पा रहा है. पिछले दो दशकों में यह पहला मौका है, जब भाषाणें की गुणवत्ता और उसमें उठाए गए सवालों को लेकर ससंद के बाहर भी बहस तेज हो गयी है. संस्कृति,आजादी के मूल्यों,सहकारी संघवाद और देश में बढ़ती आर्थिक सामाजिक असमानता जैसे सवालों पर एक नए किस्म के प्रतिकार का नरेटिव उभर रहा है. हालांकि इस तरह के भाषाणें को लेकर भाजपा का आइटी सेल भी सक्रिय हो गया है और ट्रोल भी. बावजूद इसके भारतीय संसद के भाषणों के इतिहास में एक नए दौर का आख्यान तैयार हो रहा है.
डा. मनोज झा ने राज्यसभा में डा. भीम राव अंबेडकर के कथन का उल्लेख कर बहस को नयी दिशा दी है. मनोज झा ने नरेंद्र मोदी सहित भाजपा के नेताओं पर तीखा हमला करते हुए कहा ‘इतिहास की अपनी स्मृति होती है और स्मृतियों का एक इतिहास होता है और विश्व इतिहास गवाह है कि जिस किसी ने भी अतीत की स्मृतियों के साथ छेड़छाड़ की कोशिश की है, वह इतिहास के फुटनोट में चला गया, इतिहास नहीं बन सका.” डा. मनोज झा ने डॉ. बाबा साहेब अंबेडर के प्रसिद्ध कथन का हवाला देकर देश में बढ़ती तनाशाही और व्यक्तिवादी कल्ट की राजनीति पर तीखा प्रहार किया. राष्ट्रीय जनता दल के सांसद मनोज झा ने शुक्रवार को भीमराव अंबेडकर के कथन राजनीति में “नायक पूजा” के खिलाफ चेतावनी को याद दिलाया और कहा कि व्यक्तिवाद यानी अवतार कल्ट को बढ़ावा देना लोकतंत्र के लिये खतरनाक है.
राज्यसभा सदस्य मनोज झा ने राम नाथ कोविंद के भाषण में एक पैराग्राफ का उल्लेख किया. जिसमें स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व पर आधारित आदर्श समाज के अम्बेडकर के दृष्टिकोण का उल्लेख किया था. उन्होंने यह भी कहा ”मैं सोचता हूं राष्ट्रपति के भाषण में अगर इन सबका ज़िक्र ना हो तो वह अभिभाषण नहीं कागज़ का पुलिंदा लगता है. सन 1950 से लेकर अब तक मुझे पता है कि राष्ट्रपति का अभिभाषण लिखा कहां जाता है, लेकिन मैं आग्रह करूंगा कि सत्ता पक्ष और विपक्ष अगर सोच सकें तो राष्ट्रपति के भाषण को दलीय धाराओं से ऊपर रखना चाहिए.”
मनोज झा ने याद दिलाया ”कहां क़द था नेता जी का, नेहरू का, बापू का और पटेल का और समीक्षा कौन लोग कर रहे हैं. बौनी समझ के लोग लंबा इतिहास नहीं लिख सकते, लंबी लकीर नहीं खींच सकते.’हमने 1952 में पहला चुनाव लड़ा, हम विभाजन से निकल कर आए थे, बंटवारे पीड़ा और दर्द था, लाखों लोग दोनों ओर मारे गए, लेकिन 1952 का चुनाव हमने समावेशी विकास और रोज़गार पर लड़ा” . मनोज झा ने कहा कि पाकिस्तान में चुनाव हमारे नाम पर नहीं लड़े जाते, लेकिन हम देख रहे हैं कि भारत के चुनावों में पाकिस्तान का किरदार जरूर इस्तेमाल किया जाता है.राहुल गांधी ने अपने भाषण में संघात्मक भारत में राज्यों के अधिकार और स्वायत्तता का सवाल उठाया था.
मनोज झा ने लोकतंत्र के एक व्यक्ति का पर्याय बनाने की प्रवृति को खतरनाक बताया. लोकसभा में तृणमूल की सदस्या महुआ मोइत्रा के भाषण की भी चर्चा हो रही है.भारत के संसदीय इतिहास में एक ऐसा भी दौर गुजरा है जब विपक्ष की आलोचना,सुझावों और आशंकाओं को गंभीरता से लिया जाता था. इस समय तर्क संगत बातों के निषेध करने की प्रवृति और बोलने वालों के चरित्र पर प्रहार की रणनीति ने लोकतंत्र में संवाद की राह में बाधा खड़ा कर दिया है. एक समय जब विपक्ष संसद में बहुत कमजोर भी होता था, तब एक नारा लगता था ” डा. लोहिया बोल रहा है, दिल्ली का तख्ता डोल रहा है.” जाहिर है तब विपक्ष के संसदों की आवाज कम जरूर थी, लेकिन उसकी मजबूती और उनके तर्क को खारिज नहीं किया जाता था. तो क्या संसद के इतिहास के उस दौर की पुनरावृति संभव है. इसका जबाव तो सत्तापक्ष ही दे सकता है.