Gunjan Ikir Munda
लोकतंत्र को विश्व की सबसे बेहतर शासन प्रणाली माना जाता है. किसी भी देश की प्रगति में लोकतंत्र की अहम भूमिका होती है. यह देश के प्रत्येक नागरिक को वोट देने और उसकी जाति, रंग, पंथ, धर्म या लिंग के बावजूद अपनी इच्छा से अपने नेताओं का चयन करने की अनुमति प्रदान करता है, किन्तु सवाल यह है की क्या सिर्फ वोट देने और अपने पसंदीदा नेताओं को चुनने तक ही सिमित है या लोकतत्र के और भी मायने हैं. अगर सही मायनों में देखा जाये तो लोकतंत्र का अर्थ होता है ऐसा देश, जहां लोगों का राज़ हो और वहां के लोग विकास के पैमाने और कार्यप्रणाली को अपने अनुरूप सुचारित करें. लोकतंत्र में कभी भी ऐसा नहीं होता है कि किसी क्षेत्र या गांव के विकास के लिए निर्णय संसद में अकेले लिया जाए, बल्कि संसद से लेकर सुदूर गांव में बैठे लोगों की आपसी सहमति से लिया जाता है. तभी सही मायने में लोकतंत्र का अर्थ सार्थक होता है. इसी कार्यप्रणाली को सुचारु रूप से कार्यान्वित करने के लिए पेसा कानून के तहत ग्राम सभा को लाया गया था.
झारखण्ड के गुमला जिला स्थित बसिया प्रखंड का आरया पंचायत एक ऐसा ही गांव है, जहां ग्राम सभा की नियमित रूप से समीक्षात्मक बैठक होती है. वहां की मुखिया हैं जसिंता बागे. वे बताती हैं कि किसी भी ग्राम पंचायत की छोटी सी छोटी समस्या का समाधान तभी हो सकता है, जब वह ग्राम सभा तक पहुंचेगी. इसके अलावा ग्राम सभा और ग्राम पंचायत का आपस में तालमेल होना अत्यावश्यक है. मुखिया जसिंता बागे इस बात को अच्छी तरह समझती हैं, इसलिए वे ग्राम सभा को काफी महत्व देती हैं. ग्राम सभा के आयोजन से इन्हें जमीनी स्तर की समस्याओं का पता चलता है, जिसके समाधान के लिए पंचायत स्तर पर कार्य करती हैं. यह बात सत्य है कि ग्राम सभा किसी भी गांव की संसद होती है और ग्राम पंचायत वहां की कार्यपालिका, इन दोनों का आपस में समन्वय होना बहुत महत्वपूर्ण होता है. जसिंता बागे इस बात को अच्छी तरह समझती हैं. यही कारण है कि वे आरया गांव की मुखिया तीसरी बार चुनी गयी हैं.
हालांकि वे उसी गांव की रहने वाली एक साधारण सी महिला हैं. जसिंता बागे 2011 में एक महिला समूह से आगे बढ़कर पहली बार मुखिया बनीं. इनके मुखिया बनने में महिला समूह और ग्राम सभा का बहुत बड़ा योगदान रहा. ग्राम सभा की बैठक में महिलाओं एवं बुजुर्गों की आपसी सहमति की अहम भूमिका होती है. ग्राम सभा द्वारा लिए गए निर्णय को अनदेखा करना ठीक वैसा ही होता है, जैसा कि संसद द्वारा पारित किया गया प्रस्ताव पर अमल न करना. जसिंता बताती हैं कि किसी गांव का विकास तभी होगा, जब आपको ग्राम सभा का सहयोग प्राप्त होगा.
हालांकि पेसा कानून के लागू होने के इतने साल बाद भी ग्राम सभा और ग्राम पंचायत के बीच वह तालमेल नहीं है, जो होना चाहिए. हालांकि आरया गांव में परिस्थिति बिलकुल अनुकूल है. यहां ग्राम सभा की बैठक समय-समय पर होती रहती है. ग्राम सभा की बैठक में ग्राम प्रधान, वार्ड मेंबर के अलावा गांव के सारे लोग मौजूद रहते हैं. बैठक के दौरान पता चलता है कि किन योजनाओं की जरूरत किस क्षेत्र में हैं और क्या क्या समस्याएं हैं, जिनका निवारण कर गांव को विकास की ओर ले जाया जा सकता है. साथ ही आपस में इस विषय पर भी चर्चा की जाती है,कि किस गांव को योजनाओं की जरूरत अधिक है. ये सभी निर्णय ग्राम सभा में आपसी सहमति से सभी के रजामंदी से लिया जाता है. किसी भी योजना पर चर्चा करने के बाद गांव के वार्ड मेंबर योजनाओं की प्राथमिकी की जाती है. उसके बाद ही उन योजनाओं को पंचायत के कार्यकारणी रजिस्टर में अंकित किया जाता है. तत्पश्चात उन योजनाओं को ब्लॉक और फिर जिला अध्यक्ष के पास भेजा जाता है. इस प्रक्रिया से होता यह है कि जो भी अत्यावश्यक एवं विचारणीय समस्या होती है, वह छन कर सामने आती है, जिसके निवारण के लिए प्रभावी तथा सटीक योजनाओं को कार्यान्वित किया जा सकता है. इस प्रकार ग्राम सभा जमीनी स्तर पर मूल रूप से कार्य करती है.
ग्राम सभा इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह निचले स्तर की सबसे छोटी किन्तु महत्वपूर्ण इकाई है, जो जमीनी स्तर पर कार्य करती है. चूंकि हर गांव की समस्या अलग होती है, इसलिए उसी लिहाज से उसका निवारण भी होना चाहिए. आरया गांव में चल रहे इस पहल के कारण आसपास के गांव को भी प्रेरणा मिली है और आसपास के गांवों में भी ग्राम सभा का आयोजन होने लगा है. कोई भी प्रखंड किसी गांव की समस्या को तभी हल कर सकता है, जब ग्राम सभा अपनी समस्या पंचायत के समक्ष सही तरीके से रखे. अर्थात अगर गांव सशक्त होगा तभी समस्याओं का निवारण किया जा सकता है. किसी भी गांव का विकास और उन्नति तभी संभव है, जब वहां के लोगों की ग्राम सभा का पंचायत, प्रखंड या फिर सरकार के बीच आपसी तालमेल हो. यह संभव है और इसी से लोकतंत्र ग्रासरूट स्तर पर मजबूत होगा. लोकतंत्र को यदि प्रभावी समूहों और धनबल से मुक्त करना है तो आदिवासी क्षेत्र की ग्राम सभाओं के प्रयोग से बहुत कुछ सीख हासिल की जा सकती है, लेकिन इसके लिए जरूरी है कि पेसा कानून को उसकी पूरी भावना के साथ जमीन पर उतारा जाए. ग्रामसभाओं के अनुभव बताते हैं कि उनमें लोकतंत्र के समावेशीकरण की जबदस्त संभावना है. लोकतंत्र हमेशा नीचे से ही पनपता है और पूरे देश को एकसूत्र में बांधते हुए सांस्कृतिक विविधता की रक्षा भी करता है.
डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं.