– घोटालों और अनियमितताओं से जुड़े 42 मामलों की जांच खुद आरोपी कर रहे
– राज्य में निर्माण घोटाले, वित्तीय और पौधरोपण में अनियमितता के हैं 110 मामले
Amit Singh
Ranchi: प्रदेश में वन विभाग ही एक ऐसा विभाग है, जिसमें इंजीनियरिंग विंग नहीं है. इसके बावजूद विभाग हर साल निर्माण कार्य और रखरखाव के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च करता है. विभाग के अफसर खुद की देखरेख में एजेंसी का चयन करते हैं. खुद ही मॉनिटरिंग कर निर्माण कार्य कराने के साथ ही भुगतान भी कराते हैं. ऐसे में वन विभाग में हर साल करोड़ों रुपये की गड़बड़ी और घोटाले के मामले उजागर होते हैं. लेकिन किसी आरोपी पर कार्रवाई नहीं होती, क्योंकि विभाग में आरोपी ही खुद पर लगे आरोपों की जांच करते हैं. यानी जांच पदाधिकारी खुद ही आरोपी.
वन विभाग में 42 ऐसे मामलों की जांच चल रही है, जिसमें आरोपी अफसर खुद ही जांच पदाधिकारी हैं. इसके अलावा प्रदेश भर में 110 से ज्यादा ऐसे मामलों की जांच चल रही है, जो निर्माण घोटाले, वित्तीय अनियमितता और पौधरोपण में अनियमितता से संबंधित हैं. वन विभाग में रेंजर की भारी कमी है. एक-एक रेंजर के जिम्मे तीन-तीन क्षेत्रों का प्रभार है. ऐसे में एक रेंजर गड़बड़ी कर दूसरे प्रमंडल की जिम्मेवारी लेकर जांच पदाधिकारी बन जाता है.
अफसरों ने कराया 500 करोड़ से ज्यादा का निर्माण
झारखंड के अफसरों का सबसे ज्यादा जोर निर्माण कार्य पर होता है. चूंकि वन विभाग में इंजीनियरिंग विंग नहीं है, इसके बाद भी विभाग के अफसरों ने पांच साल में अपनी देखरेख में 500 करोड़ रुपये से ज्यादा का निर्माण और मेंटेनेंस का काम कराया है. ज्यादातर निर्माण कार्यों में गड़बड़ी और वित्तीय अनियमितता की शिकायतें मिली हैं. डीएफओ की देखरेख में सभी काम हुए हैं. उनके निर्देश पर आरएफओ और वनपाल ने काम कराया. जांच डीएफओ को सौंपी गई है.
सात बिंदुओं पर मांगी गई जांच रिपोर्ट
-श्रमिकों का भुगतान
-मस्टर रोल का सत्यापन
-सामग्री का क्रय हुआ या नहीं
– सामानों के क्रय की प्रक्रिया
-कैसे और किसे भुगतान किया
-जमीन पर योजनाएं उतरीं या नहीं
-वर्तमान में कार्य की क्या स्थिति है
ऐसे समझें, कैसे हो रही जांच की खानापूर्ति
1.पौधरोपण में अनियमितता : जिसकी देखरेख में पौधे लगे, उन्हें ही बनाया जांच पदाधिकारी
रांची रिंग रोड के दोनों किनारे वित्तीय वर्ष 2020-21 में पौधरोपण किया गया था. 10 किलोमीटर पौधरोपण करने पर करोड़ों रुपये खर्च किए गए. पौधों की देखरेख के नाम पर भी करोड़ों रुपये खर्च हुए. मगर ज्यादातर पौधे सूख गए. जिम्मेवारों ने योजना राशि की हेराफेरी में कोई कसर नहीं छोड़ी. इसकी शिकायत मुख्यालय तक पहुंची. विभाग ने पूरे मामले की जांच उसी पदाधिकारी को सौंप दी, जिनकी देखरेख में पौधरोपण हुआ था. जांच ठंडे बस्ते में चली गई.
2. गैबियन के नाम पर लाखों की निकासी, गड़बड़ी करने वाले चिह्नित तक नहीं हुए
वन विभाग में अभी सबसे ज्यादा घोटाले पौधरोपण और गैबियन लगाने से संबंधित योजनाओं में होते हैं. लातेहार सामाजिक वानिकी प्रक्षेत्र में बांस का गैबियन लगाया गया था, जिसमें लगभग 80 लाख रुपये की गड़बड़ी की शिकायत मुख्यालय को मिली. शिकायत मिलने के बाद वन विभाग ने लातेहार के उन्हीं अफसरों को जांच का जिम्मा सौंपा, जिनकी देखरेख में गैबियन लगाए गए थे. अब तक गड़बड़ी करने वालों को जांच पदाधिकारी द्वारा चिह्नित तक नहीं किया गया है.
3. कुंआ-तालाब खोदवाने में जिन पर लगे गड़बड़ी के आरोप, वही देंगे जांच रिपोर्ट
झारखंड में वन विभाग के जिम्मेवार ज्यादा से ज्यादा राशि खर्च करने के लिए निर्माण कार्य के साथ कुंआ और तालाब खोदवाने का भी काम करते हैं. जामताड़ा वन प्रमंडल में गत वर्ष कुंआ- तालाब खोदवाने के मामले में 4 करोड़ रुपये की वित्तीय अनियमितता का मामला सामने आया है. मामले की जांच कर गड़बड़ी करने वाले अफसर को ही रिपोर्ट सौंपनी है.