Ranchi: देश में बढ़ती हिंसा को लेकर रांची के आलिमों ने आपसी भाईचारे और मोहब्बत का पैगाम दिया है. उन्होंने कहा है कि मजहबी होना बुरा नहीं है, ये आपको सज्जन और सभ्य बनाता है. कोई भी मजहब आपस में बैर करना नहीं सिखाता है. जबकि धर्मांद्धता बुरी चीज है, इसमें मजहब-धर्म नहीं होता, केवल उसके नाम पर प्रदर्शन होता है. यही हिंसा को जन्म देता है. इस खबर में जानिए कि आलिमों ने क्या कहा है.
सूफी-संतों की शिक्षा को प्रचारित करने की जरूरत: मौलाना कुतुबुद्दीन रिजवी
झारखंड एदारा शरीया के नाजिम आला मौलाना कुतुबुद्दीन रिजवी ने कहा कि मुल्क में सूफी-संतों की शिक्षा को प्रचारित करने की जरूरत है. अजमेरशरीफ के ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती हों या रांची के रिसालदार बाबा. इनकी समूची जिन्दगी इंसानियत, भाईचारे और एकेश्वरवाद पर केंद्रित रही. इन्होंने सभी मनुष्य को एक जैसा समझा, उनके बीच परस्पर प्रेम और बंधुत्व का संचार किया. हमें उनके ही रास्ते पर चलते हुए आगे बढ़ना होगा.
फिरकापरस्ती के लिए मजहब में कोई जगह ही नहीं: मौलाना तहजीबुल हसन
ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के झारखंड अध्यक्ष और मस्जिद-ए-जाफ़रिया के खतीब-इमाम मौलाना सैयद तहजीबुल हसन रिजवी ने कहा कि फिरकापरस्ती के लिए मजहब में कोई जगह ही नहीं होता. इस्लाम आपसी भाईचारे पर बल देता है. क़ुरआन के बकौल मजहब में कोई झगड़ा ही नहीं. कहता है, तुम्हारा धर्म तुम्हारे लिए, हमारा मजहब हमारे लिए. वहीं इस्लाम बताता है कि तुमने यदि बेकसूर एक इंसान की जान ली तो इसका मतलब हुआ तुमने समूची इंसानियत का कत्ल किया है.
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