Ranchi : झारखंड पुलिस की गोली से मारे गये 15 लोगों के मौत मामले की जांच पूरी नहीं हुई है. हाल के वर्षों में कई ऐसे मुठभेड़ हुए जिनमें पुलिस के ऊपर निर्दोष ग्रामीण को मारने का आरोप लगा है. ऐसे मामले की अबतक जांच पूरी नहीं हो पाई है ना पता चल पाया है कि मारे गए लोग निर्दोष थे या नक्सली थे. ना ही दोषी पुलिसकर्मी के ऊपर कोई कार्रवाई हुई है.
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पुलिस की गोली का शिकार बने ब्रह्मदेव सिंह
लातेहार जिले के गारू थाना क्षेत्र के कुकू-पीरी जंगल में बीते 12 जून की सुबह मुठभेड़ हुई थी. जिसमें एक व्यक्ति मौत हो गयी थी. जिसकी पहचान ग्रामीण ब्रह्मदेव सिंह के रूप में हुई थी. इस मामले की जांच सीआईडी ने किया है. गौरतलब है कि कुकू-पीरी जंगल में यह मुठभेड़ पुलिस और माओवादियों के बीच नहीं हुई थी, बल्कि यह मुठभेड़ शिकार करने निकले युवकों के एक ग्रुप और पुलिस के बीच हुई थी. इसमें पुलिस की गोली से एक ग्रामीण युवक की मौके पर ही मौत हो गई और एक अन्य व्यक्ति घायल हो गया था. मृतक युवक की पहचान ब्रह्मदेव सिंह (24) के रूप में की गई थी. मृतक पीरी गांव का ही रहने वाला था, जबकि एक गोलीबारी में घायल हुए युवक की पहचान दीनानाथ सिंह (25) वर्ष के रूप में की गई है. उसकी बांह में गोली लगी थी. इस मामले की जांच अबतक पूरी नहीं हो पाई है.
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सरायकेला में रघुनाथ मुंडा की मौत
सरायकेला-खरसावां जिले के कुचाई थाना क्षेत्र की रायसिंदरी पहाड़ी पर 28 नवंबर 2019 को पुलिस व नक्सलियों के बीच हुई मुठभेड़ में रघुनाथ मुंडा नामक शख्स का शव मिला था. रघुनाथ मुंडा नक्सली था या आम ग्रामीण, इस मुद्दे पर विवाद शुरू हो गया है.
पुलिस ने रघुनाथ मुंडा को पहले नक्सली करार दिया था. इस मामले में पुलिस 30 नवंबर को अपने बयान से पलट गयी. अब पुलिस का कहना था कि मृतक नक्सली है या गांव का रहनेवाला है. इसकी जांच की जा रही है. लेकिन अबतक जांच पूरी नहीं हो पाई है.
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गिरिडीह में मोतीलाल बास्के की मौत
गिरिडीह जिले के ढोलकट्टा के निकट 9 जून 2017 को माओवादियों से हुए कथित पुलिस मुठभेड़ में मोतीलाल बास्के मारे गये गए थे. इसको लेकर बास्के के परिजनों ने घटना के बाद तत्कालीन नेता-प्रतिपक्ष हेमंत सोरेन से बात की थी. इसके बाद हेमंत ने मीडिया से बात की और तत्कालीन सरकार पर ग्रामीण इलाकों में निर्दोष आदिवासियों की हत्या करने का आरोप लगाया था. इस हत्या कांड को लेकर 17 जून 2017 को गिरिडीह व मुधबन बंद बुलाया गया था. इसके साथ ही चरणबद्ध आंदोलन की रूपरेखा बनायी गयी थी. इस मामले में माओवादी संगठन ने भी एक प्रेसबयान जारी कर कहा था कि मोतीलाल बास्के उसके संगठन से जुड़े नहीं थे. और पुलिस ने निर्दोष की हत्या की है. उल्लेखनीय है कि नौ जून 2017 को नक्सलियों से हुई मुठभेड़ के बाद पुलिस ने एक शव बरामद किया था. मृतक के शरीर पर नक्सली वर्दी नहीं थी. बास्के उस दौरान लुंगी व सामान्य घरेलू कपड़े पहने हुए थे. अब जब प्रदेश में हेमंत सोरेन की नई सरकार बनी उसके बाद इस मामले की जांच शुरू हुई है.
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छह साल बीत जाने के बाद भी बकोरिया कांड की जांच पूरी नहीं
पलामू के सतबरवा थाना क्षेत्र के बकोरिया में 8 जून 2015 को हुई कथित पुलिस नक्सली मुठभेड़ में 12 लोग मारे गए थे. इस मामले में सीबीआई दिल्ली ने प्राथमिकी दर्ज की थी. यह प्राथमिकी झारखंड हाइकोर्ट के 22 अक्टूबर 2018 को दिए आदेश पर दर्ज की गयी थी. इस घटना में पुलिस ने 12 लोगों को मुठभेड़ में मारने का दावा किया था. मृतकों के परिजनों ने इसे फर्जी मुठभेड़ बताते हुए हाइकोर्ट में सीआईडी की जांच पर सवाल उठाते हुए सीबीआई जांच की मांग की थी. सीबीआई ने पलामू के सदर थाना कांड संख्या 349/2015, दिनांक 09 जून 2015 के केस को टेकओवर करते हुए प्राथमिकी दर्ज की थी. छह साल बीत जाने के बाद भी जांच पूरी नहीं हो पाई है.
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