
भारत एक सनातन राष्ट्र है, क्योंकि यह मानव सभ्यता का पहला राष्ट्र है. परंपरा से भारतवर्ष को हिंदुस्तान, इंडिया आदि नाम से उद्यृत किया गया, इसके बावजूद भारत के लोगों ने इन नामों को कभी भी अंगीकार नहीं किया. उनके लिए देश का नाम भारत शब्द ही प्रचलन में रहा. श्री मदभागवत के पंचम स्कन्ध के चर्तुथ अध्याय के श्लोक नौ में भारत राष्ट्र की स्थापना का वर्णन आता है.
जिस भूमि को प्यार किया..
भारतवर्ष के राष्ट्र स्थापना का इतिहास भारत नाम से जुड़ा है. भारत नाम को लेकर कई भ्रम फैलाए गए. इस संबंध में महाभारत के भीष्म पर्व के नौंवे अध्याय में धृतराष्ट्र से संवाद के दौरान उनका सारथी व मंत्री संजय कहते हैं, जिसका वर्णन भारतीय भुवनकोष की भूमिका में है- हे महाराज धृतराष्ट्र! अब मैं आपसे उस भारतवर्ष का बखान करता हूं जो भारत देवराज इंद्र को प्यारा था. जिस भारत की विवस्वान के पुत्र मनु ने अपना प्रिय जगह बनाया था. ययाति हो या अम्बरीष, मान्धाता रहे हो या नहुष, मुचुकुन्द, शिवि, ऋषभ या महाराज नग रहे हों, इन सभी राजाओं को तथा इनके अलावा जितने भी महान और बलवान राजा हुए उन सबको भारत देश प्रिय रहा है. महाराज कुशिक और महाराज गाधि, प्रतापी सोमक और व्रती दिलीप जिस भारत के प्रति भक्ति रखते थे, उसे मैं तुमसे कहता हूं. हे महाराज! अनेक बलशाली क्षत्रियों ने जिस भूमि को प्यार किया है तथा और भी समस्त जनता जिस भारत को चाहती है. हे भरतवंशी राजन, उस भारत देश का मैं तुमसे बयान करता हूं.
महाभारत काल से पहले भी प्रचलित यह नाम
भारत के वंदना में जिन चक्रवर्ती राजाओं के नाम हैं, वे स्वयं देश की एकता और अखंडता, उसकी सभ्यता और संस्कृति के निर्माण, धर्म और परंपरा के वाहक थे. इन पुण्यात्माओं के चरित्रों से यह भारत भूमि धन्य हुई. इन महान राजाओं के जीवन में स्थापित मानदंड व आदर्श ही परवर्ती काल में राजाओं और आम भारतीयों के लिए मानक स्तम्भ के रूप में बने रहे. इस श्लोक से यह पता चलता है कि महाभारत काल से पहले भी भारत नाम प्रचलित था. इस श्लोक में गाधि का वर्णन आता है, लेकिन उसके पुत्र विश्वामित्र, विश्वामित्र की पुत्री शकुंतला के पति दुष्यंत और उसके पुत्र अर्थात् भरत का वर्णन नहीं आता. ब्रह्मवैवर्त पुराण में उल्लेख है- चक्रवर्ती सुतो जज्ञे दुष्यन्तस्य महात्मनः शकुन्तलायां भरतो यस्य नाम्तु भारताः अर्थात् महात्मा दुष्यंत का शंकुतला से चक्रवर्ती पुत्र उत्पन्न हुआ जिसकी उपाधि भारत हुई. इस भरत वंश के लोग भारत कहलाए. यहां भारताः से इस भारत की धारणा बनी, जबकि यह भरत के वंशजों से जुड़ी उपाधि है. जिसकी शुरूआत ब्रह्मा से अत्रि, अत्रि से चंद्र, चंद्र से बुध, बुध से इला पुत्र पुरुरवा हुए. बाद में इसी वंश परंपरा में आयु, नहुष, ययाति, पुरू तथा भरत हुए. इस भरत के बाद कुरू का जन्म हुआ.
ऋग्वेद में वर्णन
ऋग्वेद में कई बार भरत जन का वर्णन आया है. कदाचित इसी वंश परंपरा में आगे चलकर दुष्यंत, भरत और शांतनु हुए. इसी कारण पांडव को कुरुवंशी तथा भरतवंशी कहा गया. अगर ऐसा नहीं होता तो श्रीमदभागवत में भगवान श्रीकृष्ण नहीं कहते – यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारतः. भगवान श्रीकृष्ण बार-बार अर्जुन को भारतः के संबोधन से उसके वंश की बारंबार याद कराते हैं. हालांकि शकुंतला पुत्र भरत के कारण भारत नाम को और प्रसिद्धि मिली और कालानंतर में भारतवर्ष के नाम और कीर्ति पताका के साथ उनका भी नाम जुड़ गया.
श्रीमदभागवत व जैन ग्रंथों में उल्लेख
महाभारत रूपी महाकाव्य को भारत नाम से भी जाना जाता है. वेद व्यास ने सबसे पहले एक लाख श्लोकों के साथ भारत नामक ग्रंथ की रचना की थी, जिसमें उन्होंने भारतवंशियों के चरित्रों के सथ अन्य कई महान ऋषियों यथा चंद्रवंशी और सूर्यवंशी राजाओं के कथाओं सहित कई धार्मिक उपाख्यान भी दिए. बाद में व्यासदेव ने 24 हजार श्लोकों को बिना किसी अन्य ऋषियों, चंद्रवंशी और सूर्यवंशी राजाओं के उपाख्यानों का केवल भारतवंशियों को केंद्रित करके भारत काव्य बनाया. इसके अलावा भी भारतीय इतिहास में दो भरत का और वर्णन है. उनमें से एक अयोध्या के राजा राम के भाई भरत और दूसरे नाट्यशास्त्र के प्रेणता गुरु भरत कहलाए. बावजूद इसके भारत नाम की उत्पति का संबंध प्राचीन भारत के चक्रवर्ती सम्राट मनु के वंशज भगवान ऋषभदेव के पुत्र भरत से है. भरत एक प्रतापी राजा थे. श्रीमदभागवत के पंचम स्कन्ध एवं जैन ग्रंथों में उनके बारे में वर्णन मिलता है. इन्हीं भरत के बारे में स्मरण करते हुए वेद व्यास अपनी कृति श्रीमदभागवत में लिखा है – येषां खलु महायोगी भरतो ज्येष्ठः श्रेष्ठगुणाश्रयः. अर्थात् श्रेष्ठगुणों के आश्रयभूत, महायोगी भरत अपने सौ भाइयों में ज्येष्ठ थे. उनके नाम पर ही इस देश का नाम भारतवर्ष पड़ा.
लिंग पुराण में चर्चा
लिंग पुराण के 47-21-24 में कहा गया है कि इंद्रिय रूपी सांपों पर विजय पाकर ऋषभ ने हिमालय के दक्षिण में जो राज्य भरत को दिया तो इस देश का नाम तब से भारतवर्ष पड़ गया. इसी बात को वायु और ब्रह्मांड पुराण में दोहराया गया है. विष्णु पुराण के 2-3-1 तथा अग्नि पुराण के 10-10 एवं मार्कण्डेय पुराण में भी इसी बात का उल्लेख किया गया है. इसी ऋषभदेव को देश की ऋषि एवं मुनि परंपरा में समान रूप से आदरणीय माना है. इन्हें जैन परंपरा में आदिनाथ के रूप में तो कश्मीर के शैवदर्शन में शिवरूप में सम्मान दिया गया है. एकनाथी परंपरा में एक जगह यहां तक लिखा है कि ऋषभ के पुत्र भरत ऐसे थे, जिनकी कीर्ति सारे संसार में आश्चर्यजनक रूप से फैली हुई थी. भरत सर्वपूज्य है और इस कारण कार्य प्रारंभ करने के पूर्व भरतजी का नाम स्मरण किया जाता है.
अनादिकाल से ही राष्ट्र की अवधारणा से हम परिचित थे, लेकिन यह परिचय माता-पुत्र के रूप में था और भारतीय परंपरा में मां के नाम को बुलाना अभद्रता एवं अशिष्टता माना जाता है. अतएव मातृभाव को परम श्रेष्ठ प्रजावत्सल भरत के साथ जोड़कर भारत यानी भरत की मां कहा गया. उस समय से इस भूमि के साथ एक आत्मीय संबंध बन गया. विविध पूजा पद्धति, विचार, एवं मत होने के बावजूद भी एक सर्वमान्य नाम भारतवर्ष के धार्मिक समूह के लिए नहीं था. इस राष्ट्र का नाम ही यहां के लोगों की पहचान थी और यही नाम यानी भारत एवं भारतीय मौटे तौर पर विविध विचारों एवं संप्रदायों के लिए उपयोग में आता रहा.