Pramod Upadhyay
Hazaribagh : हजारीबाग के सदर अस्पताल में बने मुर्दाघर की भी अजीब कहानी है. यहां पोस्टमार्टम के नाम पर खूब मनमानी चलती है. हर जगह रकम का खेल चलता है और जानकर भी सब अनजान बने रहते हैं. यहां तक कि परिजनों के फर्द बयान तक बदल दिए जाते हैं.
अगर जहर खाकर किसी ने आत्महत्या की, तो परिजनों को मनचाहे फर्द बयान के लिए वहां बहाल एजेंट काफी कुछ जानकारी उपलब्ध कराते हैं. यह गोरखधंधा जीवन बीमा की राशि के भुगतान के लिए किया जाता है.
जैसे ही मुर्दाघर में शव आते हैं, वैसे ही कागज-कलम लेकर तैनात कर्मी परिजनों को ढूंढना शुरू कर देते हैं. फिर परिजनों को समझाया जाता है कि आत्महत्या के मामले में क्या बयान देना है. अगर मृतक का जीवन बीमा हुआ है, तो राशि निकालने के लिए बयान में क्या कुछ कहना है.
इधर एंबुलेंस वाले भी अपनी चांदी काटने की फिराक में रहते हैं. वह अपने हिसाब से रेट तय करते हैं, जबकि सरकार का निर्देश है कि किलोमीटर के हिसाब से एंबुलेंस वाले को पैसा लेना है.
इन दोनों मामलों में अगर बात नहीं बनी, तो मृतक के परिजनों से नाश्ता-पानी और कुछ खर्च के नाम पर कुछ रकम ऐंठ लेते हैं. मानवीय संवेदनाओं को ताक पर रखकर मृतक के परिजनों को डराते-धमकाते तक हैं.
केस-1 : 17 जनवरी को बरही निवासी नुसरत परवीन की मौत फांसी लगाने से हुई थी. उनके परिजनों को इसकी कीमत चुकानी पड़ी. पैसे लेकर फर्द बयान लिखा गया.
केस-2 : 20 जनवरी को पुराना इचाक निवासी राहुल कुमार की मौत मारपीट के दौरान हो गई थी. उनके परिजनों के साथ इंज्यूरी रिपोर्ट से लेकर पोस्टमार्टम तक उनसे रकम लेकर फर्द बयान लिखा गया.
केस-3 : 21 जनवरी को गोविंदपुर निवासी मनीषा देवी की जहर खाने से मौत हो गई थी. मृतका को सदर अस्पताल पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया. फिर परिजनों पर दबाव बनाया गया कि जहर खिलाकर मार दिया गया है या फिर आत्महत्या की है. इसमें मनचाहा फर्द बयान के लिए उन्हें पैसे खर्च करने होंगे. फिर परिजनों ने एजेंट को 500 रुपए देकर अपना मनचाहा बयान दर्ज कराया.
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