Ranchi : कोल्हान में इन दिनों पंचायत चुनाव चर्चा में है. उसकी वजह शिड्यूल एरिया (अनुसूचित क्षेत्र) है. लोगों को आंशका है कि सरकार पंचायत चुनाव के बहाने झारखंड के शिड्यूल एरिया (अनुसूचित क्षेत्र) को समाप्त करने का आधार बना सकती है. कारण यह है कि झारखंड सहित देश के दस राज्यों में संविधान की पांचवीं अनुसूची और अनुसूचित क्षेत्र में यह प्रावधान लागू है. इन प्रावधानों के कारण ही अनुसूचित जनजातियों (आदिवासियों) को कई तरह के विशेष संवैधानिक अधिकार और संरक्षण प्राप्त हैं. लेकिन, शिड्यूल एरिया में लगातार कई सामान्य क्षेत्र की व्यवस्थाओं तथा कानूनों को लागू करने से शिड्यूल एरिया के विशेष प्रावधानों के अस्तित्व पर समाप्त होने का खतरा मंडराने लगा है.
एक स्थान पर दो अलग अलग व्यवस्थाएं प्रभावी नहीं हों
चूंकि एक स्थान या क्षेत्र में दो अलग-अलग कानून और व्यवस्था एक साथ प्रभावी नहीं हो सकतीं हैं. इसलिए झारखंड के शिड्यूल एरिया में आदिवासियों के गांवों में जहां उनकी अपनी पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था अस्तित्व में है, वहां सामान्य पंचायती राज व्यवस्था लागू कर देने से उस व्यवस्था के समाप्त होने का आधार मजबूत हो जाता है.
स्वशासन पर काम करने वाले एनजीओ भी चुप
सरकार और तमाम राजनीतिक दल और आदिवासी स्वशासन के नाम पर करोड़ रुपये का फंड लेकर काम करने वाले अधिकतर एनजीओ शिड्यूल एरिया में सामान्य पंचायत व्यवस्था लागू करने के परिणाम पर चुप हैं. झारखंड पंचायती राज एक्ट 2001 के प्रावधानों को देखें तो यह स्पष्ट होता है कि प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र के रूप में “गांवों को वार्ड” में बदल दिया गया है. आगे यह भी लिखा है कि वार्डों में रिजर्व कोटे की आबादी नहीं होने पर अन्य जातियों में अपवर्जित कर दिया जायेगा, यानी रिजर्व सीट को समाप्त कर दिया जायेगा.
झारखंड में पंचायत चुनाव “एक म्यान में दो तलवार”
असल में यह मामला “एक म्यान में दो तलवार” रखने की कहावत को चरितार्थ करता है. शिड्यूल एरिया के लिए नयी व्यवस्था से खतरा इसलिए है कि आज नहीं तो कल मुखिया व्यवस्था और पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था में से किसी एक व्यवस्था को हटाना ही पड़ेगा. ऐसे में जब सभी लोग नयी व्यवस्था को लगातार तीन बार सहज में ही स्वीकार कर चुके हैं तो पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था को अनुपयोगी मानते हुए उसे समाप्त करना आसान हो जाएगा. वर्तमान में जिस उत्साह के साथ समान्य पंचायती राज व्यवस्था को स्वीकार करने का सिलसिला चल रहा है, जिससे लगता है कि भविष्य में इस नयी व्यवस्था को सहर्ष स्वीकार करने में ज्यादा समय नहीं लगेगा.
एनजीओ और मुंडा मनिकी भी खामोश
टाना भगत, मांझी परगना एवं कम्पाट मुंडा 22 पड़हा के लोग त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव का विरोध लगातार कर हैं लेकिन वे कितना सफल हो पायेंगे, यह कहना मुश्किल होगा. किंतु कोल्हान के मुंडा मानकी संघ या संबंधित संस्थाओं का चुप रहना कोल्हान के मुंडा मानकी रूढ़ी जन्य पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था पर खतरा है.जबकि कोल्हान को अपने हक और अधिकार के लिए लड़ाकू क्षेत्र माना जाता है.लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि शिड्यूल एरिया से सिर्फ पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था ही समाप्त नहीं होगी, बल्कि शिड्यूल एरिया के विशेष प्रावधान के भी समाप्त होने की संभावना होगी. जिसके लिए कोई दूसरे नहीं बल्कि नयी व्यवस्था ( त्रिस्तरीय पंचायत) को स्वीकार करने वाले आदिवासी और अन्य लोग तथा संस्थाएं ही स्वयं जिम्मेवार होंगी.