Lagatar Desk: नौ दिनों की चैत्र नवरात्रि का आज नौवां दिन है, इसे नवमी तिथि कहा जाता है. इस दिन माता सिद्धिदात्री का पूजन किया जाता है, यज्ञ और कन्या पूजन किया जाता है. इसी के साथ नवरात्रि का समापन हो जाता है. मां सिद्धिदात्री अपने भक्तों को रोग, शोक और भय से मुक्त करती हैं और उन्हें मनोकामना पूर्ति का आशीर्वाद देती हैं. शास्त्रों में बताया गया है कि मां सिद्धिदात्री से ही सभी देवी देवताओं ने सिद्धियां प्राप्त की है. शास्त्रों में माता का स्वरूप बताते हुए कहा गया है कि मां सिद्धिदात्री कमल के आसन पर विराजमान हैं, चार भुजाधारी हैं और अपने हाथों में गदा, चक्र, डमरू और कमल का फूल धारण करती हैं. मां सिद्धिदात्री का वाहन सिंह है. मान्यता है कि नवमी के दिन यदि नौ फूल मातारानी को चढ़ाए जाएं तो वे अत्यंत प्रसन्न होती हैं.
मां सिद्धिदात्री पूजा विधि
नवमी के दिन सुबह जल्दी उठकर रोज की तरह कलश पूजन और अन्य देवी देवताओं का पूजन करने के बाद माता सिद्धिदात्री की पूजा करें. माता को रोली, कुमकुम, अक्षत, पान, सुपारी, लौंग का जोड़ा, इलायची, बताशा, धूप, दीप, पुष्प, वस्त्र और दक्षिणा अर्पित करें. धूप और दीप जलाएं. हलवा, पूड़ी व चने का भोग लगाएं. माता के मंत्रों का जाप करें, दुर्गा चालीसा, दुर्गा सप्तशती आदि पढ़ते हों तो इनका पाठ करें. मां सिद्धिदात्री की कथा पढ़ें या सुनें. इसके बाद हवन करें, आरती करें और कन्या भोज कराएं. इसके बाद माता से अपनी भूल चूक की क्षमा मांगकर मां को ससम्मान विदाई दें. इसके बाद मां का प्रसाद खाकर अपना व्रत खोलें.
मां सिद्धिदात्री के मंत्र
सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि, सेव्यमाना सदा भूयात सिद्धिदा सिद्धिदायिनी
ॐ सिद्धिदात्र्यै नम:
विद्या: समस्तास्तव देवि भेदा: स्त्रिय: समस्ता: सकला जगत्सु, त्वयैकया पूरकिम्बयैतत् का ते स्तुति: स्तव्यपरा परोक्ति:
सर्वभूता यदा देवी स्वर्गमुक्ति प्रदायिनी, त्वं स्तुता स्तुतये का वा भवन्तु परमोक्तय:
नन्दगोप गृहे जाता योशोदा-गर्भ-सम्भवा, ततस्तौ नाशयिष्यामि, विन्ध्याचल निवासिनी
या देवी सर्वभूतेषु मां सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:
मां सिद्धिदात्री की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव ने मां सिद्धिदात्री की तपस्या करके उनसे सिद्धियां प्राप्त की. माता की कृपा से उनका आधा शरीर नारी का और आधा पुरुष का हो गया, जिससे वे अर्द्धनारीश्वर कहलाए. मां दुर्गा का ये अत्यंत शक्तिशाली स्वरूप है. शास्त्रों के अनुसार, देवी दुर्गा का यह स्वरूप सभी देवी-देवताओं के तेज से प्रकट हुआ है. माता की पूजा करने वाले को अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व नामक सिद्धियों की प्राप्ति हो सकती है. गंन्धर्व, देवता, यक्ष और असुर सभी मां की आराधना करते हैं. इन सिद्धियों को प्राप्त करने वाले में पूरे ब्रह्मांड पर विजय प्राप्त करने की शक्ति आ जाती है. सृष्टि में उसके लिए कुछ भी शेष नहीं रह जाता.
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