Lucknow : उत्तर प्रदेश विधान परिषद (एमएलसी) चुनाव से पूर्व राजनीतिक दलों में भगदड़ की स्थिति बन गयी है. बता दें कि सपा के चार विधान परिषद सदस्य भाजपा के पाले में आ गये हैं. बता दें कि 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले राज्य में विधान परिषद की सीटों पर चुनाव होने हैं. स्थानीय निकाय के द्वारा चुने गये 36 विधान परिषद सदस्यों (एमएलसी) का कार्यकाल पांच माह के बाद सात मार्च 2022 को पूरा हो रहा है. मार्च में ही यूपी में विधानसभा चुनाव होने हैं, जिसके कारण एमएलसी के चुनाव पहले होंगे. ऐसे में नवंबर के आखिर या दिसंबर के पहले सप्ताह में यूपी के एमएलसी चुनाव का ऐलान हो सकता है.
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भाजपा ने रणनीतिक योजना के तहत सपा को बड़ा झटका दिया
कहा जा रहा है कि 2022 के चुनाव से पूर्व भाजपा ने रणनीतिक योजना के तहत सपा को बड़ा झटका दिया है. सपा के चार विधान परिषद सदस्य रविशंकर सिंह पप्पू, सीपी चंद, रमा निरंजन और नरेंद्र भाटी ने बुधवार को भाजपा का दामन थाम लिया. उन्हें सत्ता में रहने का सियासी फायदा मिलने की उम्मीद है. जान लें कि चारों नेता निकाय क्षेत्रों के एमएलसी हैं. माना जा रहा है कि भाजपा इन चारों सदस्यों को निकाय क्षेत्र एमएलसी चुनाव में उतार सकती है, क्योंकि ये दिग्गज अपने-अपने इलाके के मजबूत नेता समझे जाते हैं.
पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के पौत्र एमएलसी रविशंकर सिंह उर्फू पप्पू ने भाजपा की सदस्यता ली है. चंद्रशेखर के पुत्र नीरज शेखर पहले ही सपा छोड़कर भाजपा में शामिल हो चुके हैं. वे राज्यसभा सदस्य हैं. पूर्व मंत्री मार्कण्डेय चंद के पुत्र सीपी चंद 2016 में सपा के समर्थन से गोरखपुर से एमएलसी बने थे और अब उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया है.
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एमएलसी रमा निरंजन ने सपा को अलविदा कहा
नोएडा से सपा एमएलसी नरेंद्र भाटी ने भी भाजपा में शामिल हुए हैं. वे पूर्व सीएम मुलायम सिंह यादव के करीबी माने जाते हैं. अवैध खनन मामले में नोएडा की एसडीएम दुर्गशक्ति नागपाल के द्वारा कड़ी कार्रवाई किये जाने के बाद नरेंद्र भाटी चर्चा में आये थे. भाजपा ने इसे बड़ा मुद्दा बनाते हुए अखिलेश सरकार को घेरा था. भाजपा ने अब उसी नरेंद्र भाटी को पार्टी में शामिल करा लिया. इसी क्रम में झांसी-जालौन-ललितपुर सीट से एमएलसी रमा निरंजन भी सपा को अलविदा कहकर भाजपाई हो गयी हैं.
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तो भाजपा उच्च सदन में भी बहुमत हासिल कर लेगी
स्थानीय निकाय से होने वाले विधान परिषद चुनाव में जीत मिलने के साथ ही भाजपा उच्च सदन में भी बहुमत हासिल कर लेगी. वर्तमान में स्थानीय निकाय क्षेत्र से अधिकांश एमएलसी सपा के हैं, जिनका कार्यकाल पूरा हो रहा है. विधान परिषद की स्थानीय निकाय कोटे की 36 सीटों पर होने वाले चुनाव में जिला पंचायत सदस्य, क्षेत्र पंचायत के सदस्य, ग्राम प्रधान, नगर निगम, नगर पालिका व नगर पंचायत के सदस्यों के साथ ही कैंट बोर्ड के निर्वाचित सदस्य भी वोटर होते हैं. इसके अलावा स्थानीय विधायक और स्थानीय सांसद भी वोटर होते हैं. ऐसे में सूबे की सत्ता में रहने वाली पार्टी के लिए एमएलसी चुनावों का फायदा मिलता रहा है.
यूपी में 2016 में विधान परिषद चुनाव हुए थे, उस समय सूबे की सत्ता में सपा थी. 2016 में स्थानीय निकाय की 36 विधान परिषद सीटों में सपा ने 31 सीटें जीतकर उच्च सदन में बहुमत हासिल किया था. आठ एमएलसी सीटों पर सपा ने निर्विरोध जीत दर्ज की थी. वहीं, महज दो एमएलसी सीटों पर बसपा चुनाव जीती थी.
विधान परिषद में अभी सपा के 48, भाजपा के 33, बसपा के छह, कांग्रेस के एक, अपना दल के एक, शिक्षक दल के दो, निर्दलीय समूह के 2, निर्दलीय तीन और पांच रिक्त पद हैं. उच्च सदन में बहुमत के लिए 51 सदस्य चाहिए. ऐसे में विधान परिषद में बहुमत के लिए भाजपा को निकाय क्षेत्र की 36 सीटों में से कम से कम 15 सीटों पर जीत जरूरी है.