Ranchi : क्या मोतबर वो आन थी, जो नजरें सुल्तानी हुईं, क्या-क्या न किस्से बन गए, कैसी पशेमानी हुई. ऐसी ही गजलों और शेरों-शायरी की महफिल रविवार को रांची के हेसाग में सजी थी. यहां उर्दू के प्रतिष्ठित शायर, आलोचक व बिहार सरकार में पूर्व ब्यूरोक्रेट ‘खुर्शीद अकबर के नाम एक शाम’ का आयोजन किया गया. इसमें झारखंड के अलावा बिहार के कई नामी-गिरामी शायर और साहित्यकार शामिल हुए. इस अवसर पर बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर, पसमांदा आंदोलन के जनक आसीन बिहारी और बाबरी मस्जिद की घटनाओं को भी याद किया गया. दोस्त सत्र में आयोजित आदबी महफिल के एक सत्र की अध्यक्षता करते हुए जनवादी लेखक संघ के प्रांतीय सचिव एमजेड खान ने कहा कि देश में जो उठा पटक हो रही है, उससे गरीब और गरीब होते जा रहे हैं. पूंजीवादी व्यवस्था और मजबूत होती जा रही है. प्रो. रिजवान अली अंसारी ने कहा कि बाबरी मस्जिद की घटना को भुलाया नहीं जा सकता.
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घंटों चला शायरी और गजलों का दौर
आदबी महफिल के दूसरे सत्र में उर्दू शायरों ने शायरी और गजल पेश किए. खुर्शीद अकबर ने अपनी मशहूर गजलों की प्रस्तुति देकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया. पेश है उनकी एक गजल-
क्या मोतबर वो आन थी, जो नजरें सुल्तानी हुईं, क्या-क्या न किस्से बन गए, कैसी पशेमानी हुई
वो शाम क्या हमदर्द थी, अंदर से कितनी सर्दी थी, क्या क्या भरोसा कर लिया सूरत थी पहचानी हुई
महकुमियत जंजीर थी, मजलूमियत तस्वीर थी, किस को बिठाया तख्त पर कैसी ये नादानी हुई
इस खूबसूरत शहर में, जिंदादिली की लहर में, ताबीर उंची हो गई, ख्वाबों की अरजानी हुई
नारे लगे जलसे हुए एक शाह के फरमान पर, नजरे हिसाब ए खुश दिलां ज़र की फरावानी हुई.
रांची के शायर दिलशाद नजमी ने अपनी शायरी प्रस्तुत करते हुए कहा-
वक्त की शोला बयानी से निकल जाएंगे, हम भी एक रोज कहानी से निकल जाएंगे
डूबने वालों का देखेगा तमाशा साहिल, तैरने वाले तो पानी से निकल जाएंगे