Kaushal Anand
Ranchi : सरकारी पैसे का दुरूपयोग कहें या फिर जनता के पैसों की बर्बादी. झारखंड के बिजली क्षेत्र की सबसे अहम न्यायिक संस्था झारखंड विद्युत नियामक आयोग में मामला कुछ तरह का सामने आया है. सरकार द्वारा आयोग को अपनी जमीन मुहैया करा दिए जाने के बाद भी अब तक आयोग का अपना भवन तैयार नहीं हो पाया है. सिर्फ जमीन की चाहरदिवारी और दो रूम बना दिया गया है. जिसमें दो केयर टेकर रहते हैं. मगर 12 साल बीत ने बाद भी भवन निर्माण का कार्य शुरू नहीं हो सका है. इन 12 सालों में आयोग या फिर कहें सरकार का करीब 10 करोड़ से अधिक राशि केवल किराए के ऑफिस के रूप में खर्च चुका है. कम से कम से इतनी राशि में तो आयोग का अपना भवन खड़ा हो ही जाता. मगर इस सरकारी उदासीनता कहें या फिर आयोग की लापरवाही, इन दोनों कारणों से सरकारी पैसे की बर्बादी हो रही है.
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यह है पूरा मामला
झारखंड गठन होने के बाद बिजली बोर्ड के साथ-साथ झारखंड बिजली क्षेत्र के महत्वपूर्ण न्यायिक संस्था झारखंड राज्य विद्युत नियामक आयोग (JSERC) का भी गठन हुआ. झारखंड गठन होने के बाद सैनिक कल्याण बोर्ड द्वारा संचालित सैनिक मार्केट परिसर में 3600 वर्ग फीट का ऑफिस किराए पर लिया गया. जिसका मासिक किराया 75 हजार रूपए है. इसके बाद करीब 15 अगस्त 2010 तक इसी परिसर में आयोग का कार्यालय चला. जगह कम होने की वजह से 2020 में कांके रोड में बने नये उत्पाद भवन में सरकार ने आयोग के लिए 3 हजार वर्ग फीट का 10 कमरों का कार्यालय उपलब्ध कराया. इसके बाद करीब एक डेढ़ साल चलने के बाद उत्पाद विभाग द्वारा आयोग को नोटिस भेजा गया, जिसमें कहा गया कि अब आप यह कार्यालय खाली कर दें, क्योंकि अब पूरे परिसर और भवन का इस्तेमाल उत्पाद विभाग ही करेगा. मामला जब मीडिया में प्रकाश में आया तो कुछ महीनों के लिए राहत दिया गया. मगर अंतत: 1 फरवरी 2022 को आयोग का कार्यालय सरकार के आदेश से हरमू स्थित आवास बोर्ड मुख्यालय परिसर में शिफ्ट हो गया. जिसका मासिक किराया करीब 82 हजार रूपए है. इसके बाद से आयोग का कार्यालय वहीं से संचालित हो रहा है.
2009 में सरकार ने हिनू में उपलब्ध कराया जमीन
आयोग के कार्यालय की समस्या को देखते हुए तत्कालीन अर्जुन मुंडा सरकार ने 2009-2010 में हिनू पीएचईडी कॉलानी में 78 डिसमिल जमीन उपलब्ध कराया. जमीन मिलने के बाद आयोग ने भवन निर्माण की अनुमति से चाहरदिवारी और दो कमरा देखरेख के लिए बनाया.
हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद नहीं बन पाया जमीन में भवन
विद्युत नियामक आयोग का अपना भवन हो. इसको लेकर झारखंड हाईकोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस वीरेंद्र सिंह और जस्टिस चंद्रशेखर ने भी 11 मई को 2016 को निर्देश दिया था कि, आयोग का अपना नया भवन जल्द बनाया जाना चाहिए. इसके बाद भी आज छह साल से अधिक समय गुजर जाने के बाद भी भवन निर्माण का काम शुरू नहीं हो सका.
महज एक एनओसी के कारण नहीं हो सका निर्माण
इसे सरकारी लाल फीताशाही ही कही जाएगी. दअरसल आयोग का भवन निर्माण की परमिशन के बाद ही निर्माण कार्यशुरू कराएगा. आयोग इसको लेकर 2017 से ही उर्जा विभाग को पत्र लिख रहा है. उर्जा विभाग भी परमिशन के लिए भवन निर्माण विभाग को पत्र लिखता रहा है. मगर अब तक एनओसी नहीं मिली. इस वजह से काम शुरू नहीं हो पा रहा है.
आयोग को सरकार देती है अनुदान, यानि की सरकारी पैसा ही बर्बाद हो रहा है किराए में
हालांकि आयोग का अपना इनकम भी विभिन्न श्रोतों से होता है. मगर विद्युत नियामक आयोग को सरकार अनुदान देती है. जिससे आयोग का स्थापना मद और अन्य मद में खर्च किए जाते हैं. आयोग को सरकार अनुदान पर सालाना करीब 3 करोड़ रूपए देती है. मतलब साफ है कि चाहे वह आयोग का पैसा हो या सरकार का, जिसकी खुलेआम बर्बादी किराया के पैसों में हो रही है. जबकि 2010 के बाद अरबों रूपए कई नए-नए भवन निर्माण में खर्च कर दिए, मगर आयोग का अपन भवन निर्माण कार्य सरकारी तानाशाही के कारण शुरू नहीं हो पा रहा है.
टेक्निकल मेंबर ने ऐसे दी सफाई
इस बारे में जब नियामक आयोग के टेक्निकल मेंबर अतुल कुमार से बात की गयी, तो उन्होंने कहा कि आयोग का अपना भवन हो. इसका प्रयास पूर्व में क्या हुआ. इस पर कुछ नहीं कह सकते हैं. अभी मुझे लेकर एक विधि सदस्य की नियुक्ति हुई है. साथ ही कहा कि आयोग का अपना भवन निर्माण उनलोगों की प्राथमिकता होगी. कई कार्य और एक साल से आयोग डिफंक्ट होने के कारण लंबित हैं. उसे भी अब तेजी से आगे बढ़ाया जाएगा.
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