Amit Singh
Ranchi : झारखंड में 1100 से 1400 एमएम बारिश होती है. मगर जल प्रबंधन के अभाव में 80% पानी बेकार बह जाता है. परिणाम गर्मियों में राज्य का 80% भूभाग सूखे की चपेट में आ जाता है. पूरे प्रदेश में जल संकट की स्थिति उत्पन्न हो जाती है. रांची सहित कई जिलों में डैम सूखने के कगार पर आ जाता है.
प्रदेश में 25876 एमसीएम सरफेस वाटर की उपलब्धता है. 23800 मिलियन क्यूबिक मीटर (एमसीएम) सरफेस वाटर व 500 एमसीएम ग्राउंड वाटर बारिश से मिलता है. जिसमें 80% सरफेस वाटर और 74 प्रतिशत ग्राउंड वाटर बहकर बेकार चला जाता है.
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ऐसे में पेयजल विभाग स्टेट प्लान, वैलफेयर डिपार्टमेंट, एनआरडब्ल्यूपी और डीएमएफटी की 172 सरफेस वाटर आधारित जलापूर्ति योजनाओं पर काम शुरू कर दिया गया है. जिसमें से मार्च 2021 तक 46 योजनाओं को पूरा करने का लक्ष्य है. 2020 दिसंबर के अंत तक 20 योजनाएं पूरी होंगी.
बडा सवाल : क्या ऐसे में 44.45 लाख लोगों को मिल पाएगा पर्याप्त पानी
पेयजल एवं स्वच्छता विभाग द्वारा सरफेस वाटर आधारित 172 जलापूर्ति योजना पर काम किया जा रहा है. इन योजनाओं पर 4 हजार 706 करोड़ रूपए खर्च होंगे. योजनाओं से राज्यभर में 44 लाख 45 हजार लोगों को शुद्ध पीने का पानी उपलब्ध कराने का लक्ष्य है. एक ओर प्रदेश में सरफेस वाटर की कमी है, ऐसे में इन योजनाओं से लोगों को पर्याप्त पानी मिल पाएगा, इस सवाल का जबाब जिम्मेदारों के पास नही है. जबकि सरफेस वाटर की कमी की वजह से पेयजल विभाग की 150 से ज्यादा जलापूर्ति योजनाओं को पहले ही डेड घोषित कर दिया गया है.
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जल विशेषज्ञ और पूर्व निदेशक, ग्राउंड वाटर एसएलएस जागेश्वर के अनुसार प्रदेश की प्रक्रितिक बनावट की वजह से सरफेस और ग्राउंड वाटर का संचयन नहीं हो पाता है. ऐसे में सरफेस वाटर पर आधारित जलापूर्ति योजनाओं का सफल संचालन होना, बडी चुनौती है.
शहरी क्षेत्र की जरूरत है 1616.3 लाख गैलन पानी, उपलब्धता मात 734.53 एमसीएम
प्रदेश में 1616.3 लाख गलन पानी की जरूरत है. जिसमें से मात्र 734.53 पानी ही उपलब्ध हैं. पानी की वार्षिक प्रति व्यक्ति उपलब्धता 1951 में 5177 क्यूबिक मीटर थी, जो 2019 में घटकर 1720 क्यूबिक मीटर रह गई है. एशियाई विकास बैंक की रिपोर्ट के अनुसार 2030 तक 50% पानी की कमी हो जाएगी. नीति आयोग के अनुसार देश अभी ही सबसे खराब जल संकट से गुजर रहा है. 2030 तक दिल्ली, बेंगलुरु, चेन्नई, हैदराबाद, जमशेदपुर, धनबाद जैसे शहरों में 30 से 70% तक का अंतर पानी की मांग और आपूर्ति में आ जाएगा.
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रांची में तेजी से गायब हो रहा ग्राउंड व सरफेस वाटर
सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड की वार्षिक रिपोर्ट की मानें तो रांची में बड़ी ही तेजी से भूमिगत जल का दोहन हो रहा है. जिसका असर आने वाले 10 सालों में साफ तौर से देखने को मिलेगा.अभी ही गर्मी में रांची के हटिया,रूक्का व कांके डैम में जलसंकट की स्थिति उत्पन्न हो जाती है. कई छोटी नदियां सूख जाती हैं.
रिपोर्ट के अनुसार, हर साल जल स्तर औसतन छह फीट कम होता जा रहा है. बेहतर बारिश के बाद भी राजधानी में पानी के दोहन के प्रतिशत के हिसाब से महज 4.46 प्रतिशत पानी ही रिचार्ज हो पाता है. 80 प्रतिशत से भी अधिक बारिश का पानी सड़कों पर बह जाता है.