Faisal Anurag
क्या संसद में विशेषाधिकार हनन का सवाल उठा कर विपक्ष के सांसदों को डराने का प्रयास किया जा रहा है ? यह सवाल इसलिए अहम है कि लोकसभा में कृषि कानून के खिलाफ तल्ख बातें बोलने वाले दो सांसदों के खिलाफ विशेषाधिकार हनन के इस्तेमाल के लिए भारतीय जनता पार्टी के सांसद अभियान चला रहे हैं.
तृणमूल कांग्रेस की नेता महुआ मोइत्रा के बाद अब कांग्रेस के नेता राहुल गांधी के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव लाने की मांग की जा रही है. महुआ मोइत्रा के खिलाफ तो इस आशय का नोटिस भी दे दिया गया है.
राष्ट्रपति के धन्यवाद प्रस्ताव के खिलाफ बोलते हुए महुआ मोइत्रा के भाषण को लेकर भाजपा बेचैन है. भाजपा के सांसदों का एक तबका चाहता है कि महुआ मोइत्रा की सदस्यता समाप्त की जानी चाहिए.
राहुल गांधी तो भारतीय जनता पार्टी के निशाने पर पहले से ही है. सदन या उसके बाहर वह कुछ भी बोलते हैं तो भाजपा के अनेक मंत्री और प्रवक्ता मैदान में उतर आते हैं.
लोकसभा के भाषण ने तो भाजपा की नींद हराम कर दिया है. राहुल गांधी ने जिस तरह हम दो हमारे दो की व्याख्या कर भाजपा को निशाने पर लिया है. जब से राहुल ने यह बात कही है किसान आंदालन के नेताओं की जुबान पर भी वह आ गया है. हम दो हमारे दो से मतलब नरेंद्र मोदी और अमित शाह के साथ मुकेश अंबानी और गौतम अडानी हैं.
जब से कृषि कानूनों का किसान विरोध कर रहे हैं. अंबानी और अडानी के उत्पाद भी उनके निशाने पर हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने भाषण में मोबाइल टॉवर को गिराए जाने और टोलब्रिज पर हमले का सवाल उठाया.
पंजाब और हरियाणा में जिओ के अनेक टॉवरों को निशाना बनाया गया है. यही नहीं जिओ से दूसरे मोबाइल कंपनी में पोर्ट कराए गए. जिओं को इससे नुकसान होना स्वाभाविक है. राहुल गांधी ने तो पंजाब में कुछ महीने पहले जो ट्रेक्टर यात्रा किया था. उसमें खुल कर अंबानी और अडानी को निशाने पर लिया था.
लोकसभा में राहुल गांधी ने जिस तरह आंदोलन के दौरान मरे किसानों के लिए एक मिनट का मौन लोकसभा में रखा और तमाम विपक्ष ने साथ दिया उससे भी भाजपा परेशान है. भाजपा कहती रही है कि वह किसानों की हितैषी है और तीनों कृषि कानून उनके हितों के लिए अमल में लाए गए हैं.
लेकिन इस एक मौन ने किसानों को लेकर भाजपा के रूख पर संदेह खड़ा किया है. राहुल गांधी के खिलाफ भाजपा के तीन सांसदों ने विशेषाधिकार हनन लाने की मांग करते हुए इस मौन के सवाल भी उठाया है. राहुल गांधी का यह कदम उनकी राजनीति के खिलाफ है. अब तक किसान नेता राकेश टिकैत भी राहुल गांधी हम दो हमारे दो का इस्तेमाल करने लगे हैं.
विपक्ष के लोकसभा मौन ने किसानों को यह संदेश दिया है कि वे आंदोलन के साथ है. राहुल गांधी की हरियाणा के किसान पंचायतों में भी भीड आ रही है और भाजपा के लिए यह संभव नहीं है कि वह इसे नजरअंदाज कर दे.
लोकसभा में अकाली दल की हरसिमरत कोर और आम आदमी पार्टी के भगवत मान ने भी सरकार के लिए परेशान कर देने वाले भाषण दिए. मान तो यहां तक कह दिया कि आप भले मुझे सदन से निकाल दें मैं अपने लोगों का साथ नहीं छोडूंगा. जैसे-जैसे किसान महापंचायतों में भीड बढ़ रही है वैसे वैसे विपक्षी दल भी खुल कर मैदान में उतरने लगे हैं. विपक्ष अब तक खुलकर मैदान में आने से परहेज करता रहा है.
किसान संगठनों ने अभी भी किसी नेता के लिए अपने मंच के दरवाजे बंद रखे हैं. लेकिन राष्ट्रीय लोकदल के जयंत चौधरी ने किसान महापंचायतों में भाषण दे कर उस दीवार में दरार डाल दिया है.
केंद्र के लिए यह संतोष का विषय रहा है कि किसान नेता राजनीतिक दलों से दूरी रख रहे हैं. हालांकि भाजपा और उसकी सरकार किसानों को भडकाने के लिए विपक्ष पर हमले करती रही है.
साफ दिख रहा है कि अब किसान आंदोलन में मजदूर, संगठित क्षेत्र के कर्मचारी और विपक्ष की भागीदारी एक राजनीतिक सैलाब की पृष्ठभूमि बना रहा है. जनांदोलन से निपटने के तरीका चाहे इंदिरा गांधी का रहा हो या डॉ. मनमोहन सिंह का उन्हें उपेक्षा की कीमत चुकानी पडी है. नरेंद्र मोदी भी अपने पूर्ववर्तियों से भिन्न नहीं है.
राजनीतिक जानकारों का भी मानना है कि आंदोलनों को निरंकुश तरीके से निपटना खतरनाक नतीजे देता है. ब्रिटेन के संसद में भी एक बार फिर किसानों कें आंदोलन की चर्चा हुई और वहां के प्रधानमंत्री को इसका जबाव देना पडा.
अमेरिका के अनेक शहरो में किसानों के आंदोलन को लेकर समर्थन देखा जा रहा है.आस्ट्रेलिया के सिडनी में भारतीय मूल के लोग किसानों के पक्ष में लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं. दुनिया में भारत को लेकर यह संदेश जाने लगा है कि भारत की सरकार किसानों के आंदोलन के साथ लोकतांत्रिक व्यवहार नहीं कर रही है.
राज्यसभा और लोकसभा में तो नरेंद्र मोदी ने लंबे भाषणों में कृषि कानूनों का बचाव किया और आंदोलनकारियों के आंदोलनजीवी परजीवी शब्द का इस्तेमाल किया. लेकिन लोकसभा में उनका सुर बदला और किसान आंदोलन के लिए पवित्र शब्द का इस्तेमाल किया. बावजूद किसान संगठनों से बातचीत बंद है और सरकार की कोई दिलचस्पी भी इसमें नहीं दिख रही है. ऐसे में विशेषाधिकार हनन की मांगों के पीछे की हकीकत को समझा जा सकता है.