ड्रॉपआउट में झारखंड दूसरे नंबर पर, प्रदेश में ड्रॉप आउट 50 प्रतिशत तक पहुंचा, शिक्षकों की कमी सबसे बड़ी समस्या
Ranchi : झारखंड में स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग ने 2022 तक शून्य ड्रॉपआउट का लक्ष्य निर्धारित किया है. वहीं प्रदेश में बच्चों को गुणवक्ता पूर्ण शिक्षा प्रदान करने और 100 प्रतिशत तक एनईआर बढ़ाने के लिए कार्य करेगा. आंकड़ों के अनुसार झारखंड में ड्रॉप आउट दर 50 प्रतिशत तक पहुंच गया है. कोरोना महामारी की वजह से सभी स्कूल बंद हैं. स्कूल कबतक खुलेंगे? इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है. ऐसे में शिक्षा विभाग बच्चों को स्कूल से जोड़े रखने के लिए योजनाओं की मॉनिटरिंग करेगा. सरकार द्वारा जिन योजनाओं का संचालन बच्चों को बेहतर शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए किया जा रहा है, उसकी अब मॉनिटरिंग होगी.
झारखंड राज्य में ड्रॉपआउट की समस्या बहुत गंभीर है. यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इन्फॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन (यू-डाइस) के आंकड़ों की मानें, तो देश में सबसे ज्यादा ड्रॉपआउट बिहार राज्य में है, जहां बच्चे दसवीं के बाद पढ़ाई छोड़ देते हैं. वहीं झारखंड का नंबर दूसरा है. वर्ष 2020 में कक्षा आठ की बोर्ड परीक्षा में 5,03,862 और इंटर की परीक्षा में 2,31,182 स्टूडेंट शामिल हुए थे. 2,72,680 स्टूडेंट्स ने बोर्ड के बाद पढ़ाई छोड़ दी, जिसमें ज्यादातर बच्चे ऐसे हैं, जो बोर्ड व 11वीं की परीक्षा में असफल होने के बाद आगे की पढ़ाई नहीं करते हैं. 2019-20 में 60,444 बच्चे 10वीं में ड्रॉपआउट के रूप में चिन्हित किये गये थे.
अभिभावक शिक्षक संघ, जीरो ड्रॉप आउट पंचायत पर जोर
शिक्षा विभाग बच्चों का ड्रॉप आउट रोकने के लिए सरकारी सभी योजनाओं की मॉनिटरिंग करेगा. बच्चों को लाभ पहुंचाने वाली योजनाओं में गड़बड़ी करने वालों पर त्वरित कार्रवाई होगी. योजनाओं की मॉनिटरिंग लगातार होगी, तो बच्चों का ड्रॉप आउट अवश्य कम होगा. प्रदेश में शिक्षा विभाग बच्चों के लिए कई योजनाओं का संचालन कर रहा है. जिसमें अभिभावक शिक्षक संघ, जीरो ड्रॉप आउट पंचायत के बेहतर संचालन पर जोर दिया गया है.
कोरोना काल समाप्त होते ही उपलब्ध कराया जाएगा यूनिफार्म व स्टेशनी
सरकारी स्कूलों में लड़कियां ज्याद से ज्यादा आए, इसके लिए कक्षा 9 से 12वीं तक की लड़कियों को यूनिफार्म दिया जाता है. कोरोना काल समाप्त होते ही छात्राओं को नया यूनिफार्म उपलब्ध कराने की योजना पर काम शुरू हो गया है. इसके साथ स्कूल ऑफ एक्सीलेंस और आदर्श विद्यालय का विकास, स्मार्ट क्लास और आईसीटी का विकास, माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक स्कूलों में व्यावसायिक शिक्षा, आरटीई के अनुसार पीटीआर, सॉफ्टवेयर आधारित शिक्षक स्थानांतरण नीति, स्कूलों में आधारभूत संरचना का विकास, पीएमयू का गठन, समग्र शिक्षा और एमडीएम योजना की निरंतरता, राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण, सतत और व्यापक मूल्यांकन. कक्षा 9 से 12की लड़कियों के लिए यूनिफार्म, पुस्तक—पाठ्य, स्टेशनरी का नि:शुल्क वितरण शामिल है.
इन योजनाओं के साथ सामान्य वर्ग के छात्रों की कक्षा 8 के लिए साइकिल, मुख्यमंत्री छात्रवृति योजना, इंस्पायर पुरस्कर, शिक्षक पुरस्कार, ई-विद्यावाहिनी, ज्ञान सेतु, अभिभावक शिक्षक संघ, जीरो ड्रॉप आउट पंचायत और 100 प्रतिशत साक्षर पंचायत का विकास, पारा टीचर को सहायता, आकांक्षा, मॉडल स्कूल, जेबीएवी, राष्ट्रीय मीन्स कम मेरिट स्कॉलरशिप, मदरसा में शिक्षा प्रदान करने के लिए योजना आदि.
शिक्षकों की कमी, ड्रॉप आउट रोकने में सबसे बड़ी बाधा
प्रदेश में आरटीई के तहत 30 स्टूडेंटस पर एक शिक्षक रखने का नियम है. यू-डायस 2019-20 के अनुसार प्रारंभिक विद्यालय क्लास 06 से 08 के बीच 45 स्टूडेंटस पर एक शिक्षक है. वहीं क्लास 01 से 06 के बीच 35 स्टूडेंटस पर 01 शिक्षक है. आरटीई के अनुसार सरकारी स्कूलों में 136045 शिक्षकों की आवश्यकता है. लेकिन हाई स्कूलों में शिक्षकों के 25,169 पदों में से मात्र 11,553 पदों पर ही शिक्षक नियुक्त है. और 13616 पद अभी खाली है. इसी प्रकार प्लस-2 स्कूली में भी 5610 स्वीकृत पदों में से मात्र 2546 पदों पर ही शिक्षक कार्यरत है. और 3064 पद अभी भी खाली हैं.
आरटीई के तहत 97412 शिक्षकों की जरूरत, 33853 पद रिक्त
फरवरी 2021 तक सरकारी स्कूलों में 74,63,906 स्टूडेंटस नामांकित हैं. इसमें क्लास 01 से 06 के बीच 24,30,601 नामांकित स्टूडेंटस हैं. वहीं क्लास 06 से 08 के बीच 13,05,612 नामांकित स्टूडेंटस हैं. इनको पढ़ाने के लिए आरटीई के तहत कुल 97,412 शिक्षक चाहिए. मगर प्रदेश में 63,559 शिक्षक कार्यरत हैं. वहीं आरटीई के तहत 33,853 शिक्षकों के पद रिक्त हैं.