Jamshedpur (Vishwajeet Bhatt) : गरीब और ग्रामीण महिलाओं को लकड़ी के धुंए से होने वाली परेशानियों और बीमारियों से बचाने के लिए केंद्र सरकार के अति महत्वाकांक्षी उज्ज्वला योजना का सिलिंडर अब सीधे ठेले-खोमचे वालों के पास जा रहा है. इस योजना के लगभग 80 प्रतिशत ग्रामीण लाभुक मुफ्त में मिले सिलिंडर को दोबारा भरा ही नहीं रहे हैं और जो लोग भरा रहे हैं उन तक सिलिंडर पहुंच ही नहीं रहा है. सिलिंडर दोबारा नहीं भराने का कारण यह है कि 14 किलो 200 ग्राम का घरेलू गैस सिलिंडर अब 1092.50 रुपये का हो गया है.
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उज्ज्वला के उपभोक्ताओं को मिल रही है 220 रुपये की सब्सिडी
वहीं, सामान्य श्रेणी के उपभोक्ताओं की सब्सिडी का तो काई माई-बाप ही नहीं है, लेकिन उज्ज्वला के उपभोक्ताओं को अब भी 220 रुपये सब्सिडी मिल रही है. इसी में सारा खेल समाहित है. एजेंसी के मालिक, गांव के कुछ तथाकथित पढ़े-लिखे बिचौलिए लोग और गैस सिलिंडर पहुंचाने वाले वेंडर का गठजोड़ सिलिंडर को ठेले-खोमचे वालों तक पहुंचा रहा है. इस खेल को बहुत ही संगठित तरीके से खेला जा रहा है. जानकार बताते हैं कि इसमें शासन और प्रशासन के लोग भी पूरी तरह से शामिल हैं, तभी तो सब कुछ आंखों के सामने होने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हो रही है.
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ऐसे हो रहा है खेल
गैस एजेंसी के संचालक उज्ज्वला योजना के कुछ लाभुकों का पासबुक अपने पास ही रखे हुए हैं, चूंकि कनेक्शन से लाभुक का आधार कार्ड और मोबाइल नंबर जुड़ा हुआ है. इसलिए गांव के कुछ तथाकथित पढ़े-लिखे व बिचौलिए जैसे लोग नादान लाभुकों को 220 रुपये सब्सिडी का लालच देकर लाभुक के ही मोबाइल से सिलिंडर बुक करा दे रहे हैं. लाभुक के खाते में तो उसकी सब्सिडी चली जा रही है, इसलिए वो भी बमबम. इधर, गैस ऐजेंसी का संचालक सिलिंडर बुक कराने वाले गांव के युवकों को कुछ दे दे रहा है, इसलिए वो भी बमबम. अब यही सिलिंडर 12 से 13 सौ रुपये में ठेले-खोमचे वालों के पास पहुंच जा रहा है.
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जिले में उज्ज्वला योजना के कुल 1,51,685 लाभुक
इस योजना के नोडल अधिकारी बताते हैं कि पूर्वी सिंहभूम जिले में उज्ज्वला योजना के कुल 1,51,685 लाभुक हैं. अब इस हिसाब से यदि इस खेल में 15 प्रतिशत लाभुकों को ही शामिल करते हैं तो हर महीने ठेले-खोमचे वालों के पास 22 से 23 हजार उज्ज्वला योजना का सिलिंडर पहुंच रहा है और गैस ऐजेंसी के संचालक व बिचौलिए मोटा माल भी पीट रहे हैं. इस समय 19 किलो के व्यावसायिक सिलिंडर का दाम 2,149 रुपये है. जब 12-13 सौ रुपये में ही काम चल जा रहा है, तो ठेले-खोमचे वाले यह सिलिंडर क्यों खरीदें और सरकार को राजस्व का फायदा क्यों हो. यह भी एक स्याह पहलू है.
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सिलिंडरों का एक खेल और भी
नाम न छापने की शर्त पर गैस एजेंसी के एक संचालक ने बताया कि उज्ज्वला योजना के सिलिंडरों में तो जो खेल चल रहा है वो चल ही रहा है. प्लांट से 324 सिलिंडर लेकर निकलने वाले वाहन भी खूब खेल खेल रहे हैं. हाईवे पर जगह-जगह लाइन होटलों में इनका अड्डा बना हुआ है. यहां पहले से ही अंडर वेट सिलिंडर रखे रहते हैं. गाड़ी वाले 10-12 करके अपने अड्डों पर पूरा भरा सिलिंडर उतार देते हैं और अंडर वेट सिलिंडर लाद लेते हैं. गैस एजेंसी तक पहुंचते-पहुंचते गाड़ी के एक चौथाई सिलिंडर अंडर वेट हो जाते हैं. इस खेल में गाड़ी के ड्राइवर, लाइन होटल वाले और गैस एजेंसी के संचालक सभी शामिल हैं. इस खेल के सिलिंडर भी ठेले-खोमचे वालों के पास ही पहुंच रहे हैं. इस खेल को इसलिए भी पूरा बल मिल रहा है, क्योंकि अधिकतर उपभोक्ता डिलिवरी लेते समय सिलिंडर का वजन कराते ही नहीं हैं.
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आखिर कहां से हो रही 10 हजार ठेले-खोमचे वालों को घरेलू गैस की आपूर्ति
एक अनुमान के मुताबिक पूर्वी सिंहभूम जिले में 10 हजार से अधिक ठेले-खोमचे वाले हैं. इनको हर चार-पांच दिन पर एक सिलिंडर की जरूरत पड़ती है. इन सभी ठेले-खोमचे वालों में से कुछ चुनिंदा ही व्यावसायिक सिलिंडर का उपयोग करते हैं. बाकी सभी घरेलू गैस के भरोसे ही अपनी दुकान चला रहे हैं. अब सबसे बड़ा सवाल ये उठता है कि आखिर कहां से इनको घरेलू गैस सिलिंडरों की आपूर्ति की जा रही है. उत्तर साफ है कि इनकी जरूरतों का कुछ हिस्सा उज्ज्वला योजना के सिलिंडरों से पूरा हो रहा है तो कुछ गैस कटिंग करने वाले लोग पूरा कर रहे हैं.
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गैस कटिंग के खेल की ये है कुछ बानगी
- एक सप्ताह पूर्व जमशेदपुर के बारीडीह क्षेत्र में हुई छापामारी में 159 गैस सिलिंडर समेत कई सामान जब्त किये गए.
- इसी महीने सरायकेला पुलिस ने चौका के पास से 300 से ज्यादा अवैध एलपीजी सिलिंडर बरामद किए.
- गम्हरिया बॉटलिंग प्लांट से निकले सिलिंडर से गैस कटिंग की जा रही थी.
- पिछले मार्च महीने में ही ओल्ड पुरुलिया रोड मानगो में हुई छापेमारी में 70 सिलिंडर जब्त किए गए.
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मॉनीटरिंग का मजबूत सिस्टम बनाया जाएगा : नोडल अधिकारी
इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन के नोडल अधिकारी उज्ज्वला योजना सह क्षेत्रीय अधिकारी सनत कुमार पात्रा कहते हैं कि अब सबकुछ ऑनलाइन हो गया है. उपभोक्ता खुद अपने सिलिंडर की रीफिल बुक करते हैं. इसके बाद एक कोड जेनेरेट होता है तब गैस की डिलिवरी होती है. इसके बावजूद भी सिलिंडरों की कालाबाजारी हो रही है, तो मॉनीटरिंग का मजबूत सिस्टम बनाया जाएगा.
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