Adityapur : सरायकेला-खरसावां जिले के गम्हरिया प्रखंड अंतर्गत छोटे से कस्बे नामोपाड़ा के रहने वाले बांसुरी वादक कुश कुमार कारवा ने अपनी लगन से अंतरराष्ट्रीय पहचान बनाई है. बांसुरी और शहनाई वादन में उस्ताद कुश जर्मनी, फ्रांस, न्यूजीलैंड समेत 11 देशों में अपनी कला का प्रदर्शन दिखा चुके हैं. इन देशों में उन्हें उत्कृष्ट कलाकार का सम्मान मिल चुका है. साथ ही वे संगीत के माहिर उस्ताद बिस्मिल्लाह खान के साथ राष्ट्रपति भवन दिल्ली में भी दो बार संगत दे चुके हैं. इस कामयाबी को पाने के लिए उन्होंने वर्षों साधना किया है, तब जाकर उन्हें यह उपलब्धि हासिल हुई है. कुश आज देश के जाने माने बांसुरी और शहनाई वादक के उस्ताद हैं. बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि उनके दादा स्व. नदिया कारवा और स्व. पिता शिवचंद कारवा की गिनती भी अच्छे कलाकारों में होती थी. सरायकेला के कला प्रिय राजा सुधेंद्र नारायण सिंहदेव के दरबारी कलाकार थे.
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संघर्ष से मिला मुकाम
मालूम हो कि कुश एक आंख से दृष्टिहीन हैं, लेकिन उन्होंने इसे अपनी कमजोरी नहीं बनने दी. कुश को संगीत विरासत में मिली थी, लिहाजा घर में ही दादा और पिता के साथ उन्होंने कठिन साधना की. कुश का कहना है कि संगीत से मन और तन स्वस्थ होते हैं. इससे जीवन में खुशहाली आती है, लिहाजा स्वस्थ रहने के लिए लोगों को संगीत से जुड़ना चाहिए.
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रांची में दे रहे हैं संगीत की शिक्षा
कला के उस्ताद कुश को झारखंड सरकार के युवा खेल संस्कृति विभाग ने अनुबंध पर रखा है. जहां सैकड़ों युवाओं को कुश बांसुरी और शहनाई वादन की शिक्षा दे रहे हैं. साथ ही वे स्व. रामदयाल मुंडा कला भवन रांची में भी कला के शौकीन बच्चों को बांसुरी और शहनाई वादन की बारिकियां सिखा रहे हैं. इतना ही नहीं सरायकेला के केदार आर्ट सेंटर से जुड़कर वे आसपास के छऊ अखाड़े के कलाकारों को संगीत की शिक्षा दे रहे हैं.
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भारत सरकार से उचित सम्मान पाने की लालसा
11 देशों में अपनी कला को लेकर वाहवाही बटौरने वाले कुश के दिल में झारखंड और भारत सरकार से उचित सम्मान पाने की लालसा है. कुश कहते हैं कि मेरे दादा और पिता राजघराने से जुड़े रहे और उन्होंने एक कलाकार के रूप में सम्मान पाया. हालांकि, मुझे विदेश में तो कई सम्मान मिले लेकिन अपने राज्य और देश में खुद को उपेक्षित महसूस कर रहा हूं.
कला और कलाकार को दें सम्मान – कुश
कुश का कहना है कि वे संगीत के प्रति आज के युवाओं में निराशा का भाव देख रहे हैं. आज के युवा इसमें सुनहरा भविष्य नहीं देख पा रहे हैं. वे इंजीनियर और डॉक्टर तो बनना चाहते हैं लेकिन कलाकार नहीं. उन्होंने कहा कि देश के हुक्मरानों से मेरी गुजारिश है कि कला और कलाकार को सम्मान दें, ताकि भारतीय कला और संस्कृति जिंदा रह सके.
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इन संस्थाओं ने किया है सम्मानित
1993 : मुंबई छाया फिल्म एकेडमी
1996 : बांग्लादेश – उत्सव इंडिया सम्मेलन
1997 : सरायकेला पद्मश्री सुधेन्द्र नारायण सिंहदेव द्वारा क्लापीठ छऊ कला केंद्र अवार्ड
1998 : बिहार सरकार की कला संस्कृति खेलकूद युवा विभाग द्वारा सम्मानित
1999 : वियना-ऑस्ट्रिया द्वारा नाट्य मंदिर अवार्ड
1999 : बर्लिन जर्मनी द्वारा इंडियन कल्चर सेंटर अवार्ड
2001 : सरायकेला पद्मश्री केदार नाथ साहू आर्ट छऊ सेंटर अवार्ड
2005 : भारत सरकार द्वारा लोक तरंग युवा कला संस्कृति अवार्ड
2008 : झारखंड सरकार द्वारा कला संस्कृति मंत्रालय अवार्ड
इन देशों में मिला है सम्मान
- जर्मनी
- फ्रांस
- ऑस्ट्रिया
- नीदरलैंड
- डेनमार्क
- न्यूजीलैंड
- बांग्लादेश
- ऑस्ट्रेलिया
- थाईलैंड
- श्रीलंका
- जापान
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