Ranchi: बाबूलाल मरांडी का राजनीतिक करियर मुश्किलों के दौर से गुजर रहा है. वे अलग-थलग पड़ गये हैं. न विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का दर्जा मिल पा रहा है और न ही बीजेपी के विधायक उनके प्रतिनिधित्व को खुलकर स्वीकार कर पा रहे हैं. केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री और जेवीएम सुप्रीमो रहते बाबूलाल मरांडी आज तक कभी इतने बेबस और लाचार नहीं दिखे. विधानसभा में राज्य का पहला मुख्यमंत्री और झारखंड का एक बड़ा आदिवासी नेता आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है. उनकी यह हालत देखकर यही लग रहा है कि वे न तो घर के रहे और न घाट के.
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सदन में चुपचाप बैठे रहते हैं बाबूलाल
बाबूलाल मरांडी बीजेपी विधायक दल के नेता होते हुए बीजेपी विधायकों के साथ सदन के अंदर बैठ नहीं सकते. वे सदन की कार्यवाही में शामिल तो होते हैं, लेकिन खुद को नेता प्रतिपक्ष का दर्जा देने की मांग को लेकर कुछ नहीं कहते. बीजेपी के विधायक सरकार के खिलाफ जब किसी मुद्दे पर हंगामा करते हैं तब भी बाबूलाल चुपचाप अपने सीट पर बैठे रहते हैं. सदन की कार्यवाही खत्म होने के बाद बाबूलाल अकेले सभा से निकलते हैं. अपनी गाड़ी पर बैठकर निकल जाते हैं. सदन के अंदर उन्हें नेता प्रतिपक्ष का दर्जा देने की मांग करने वाले विधायक उनके साथ नहीं होते.
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बीजेपी ने बना दिया विधायक दल का नेता, नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी खुद लीजिए
हर बार विधानसभा में बीजेपी के विधायक बाबूलाल मरांडी को नेता प्रतिपक्ष का दर्जा देने की मांग को लेकर हंगामा करते हैं. इस बार भी उन्हें नेता प्रतिपक्ष का दर्जा देने की मांग उठी. लेकिन इस मुद्दे को लेकर बीजेपी ने सरकार पर पहले दिन कोई दबाव नहीं बनाया. विधायक दल की बैठक में भी विधानसभा सत्र में सरकार को घेरने की रणनीति बनी. नगरपालिका संशोधन, नियोजन नीति और तमाम मुद्दों पर सदन में सवाल उठाने की योजना बनी, लेकिन बाबूलाल मरांडी को नेता प्रतिपक्ष का दर्जा दिये जाने को लेकर स्पीकर और सरकार पर दबाव बनाने की कोई योजना नहीं बनी.
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सत्ता पक्ष और बीजेपी के नेता भी बाबूलाल को हल्के में लेने लगे हैं
यह तो तय है कि बीजेपी के अंदर बाबूलाल मरांडी के कद का दूसरा कोई नेता नहीं है, लेकिन उन्हें अब कोई गंभीरता से नहीं लेता. बाबूलाल के बयानों को सत्ता पक्ष के लोग हल्के में लेने लगे हैं. आखिर राजनीति करियर के इस पड़ाव पर बाबूलाल को स्ट्रगल क्यों करना पड़ रहा है. यह तो बाबूलाल मरांडी आत्मंथन करते ही होंगे कि क्या जेवीएम से बीजेपी में आने का उनका फैसला सही था.
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