”हमारी सियासत कभी न खत्म होने वाली जंग नहीं है. हमारा मकसद मतभेदों को हवा देना नहीं, बल्कि मसलों का हल निकालना और इंसाफ़ की गारंटी देना है .” चुनाव परिणामों में जीत के करीब पहुंचे जो बाइडेन ने एक ताजा हवा की तरह यह बयान दिया है. कि पिछले चार सालों से अमेरिकी समाज विघटन की प्रवृत्तियों का शिकार है. अमेरिकी ड्रीम के बरखिलाफ पिछले सालों में अमेरिकी समाज के हर तबके में न केवल असमानता और दूरी बढी है बल्कि समाजिक हिंसा ने भी तानेबाने को तार-तार किया है. अमेरिका फस्ट की नीति के कारण उन लोगों को भी अमेरिका में भारी मुश्किलों का सामना करना पडा है जो दुनिया के अनेक देशों से कुछ नया करने और बेहतर जीवन का सपना ले कर पहुंचते हैं. बाइडेन ने अभी कुर्सी संभाली नहीं, पर वे न्याय, लोकतंत्र की बात कर रहे हैं.
अमेरिका के जानकारों की राय में अमेरिका के प्रभावी लोग ये समझते हैं ट्रंप सिर्फ़ राष्ट्रपति नहीं हैं. वो हर औसत अमेरिकी का Dream come true है. बिज़नेस करो और साम दाम दंड भेद से करोड़ों कमाओ. यही सपना है हर अमेरिकी का. लेकिन पिछले चार सालों के घटनाक्रमों ने अमेरिका में असंतोष को भी इतना बढाया है कि इस चुनाव में एक नया अमेरिका विचार भी उभरा है जो वंचितों के हक की बात कर रहा है. अमेरिका के अब तक के इतिहास में जॉन कनेडी के बाद यह दूसरी बार हो रहा है कि राष्ट्रपति का बदलना केवल एक राजनीतिक घटना मात्र नहीं है बल्कि उसके सांस्कृतिक और आर्थिक भी संदेश हैं. खास कर ब्लेक लाइब्स मूववेंट के बाद के हालात ने लंबे समय से चली आ रही विषमताओं को ले कर नयी चेतना पैदा किया है. बर्नी सैडर्स के विचारों की इसमें बडी भूमिका है. यूनान में Yanis Varoufakis ने वित्त मंत्री रहते हुए जिस तरह पूरे यूरोप में समांतर अर्थतंत्र की वकालत किया उसे ब्रिटेन में जर्मी कॉर्बिन ने आंदोलन में बदल दिया. यह तो ब्रेक्जिट का असर था कि जॉनसन ने कोब्रिन को पराजित कर दिया लेकिन उनके राष्ट्रीयकरण के विचारों ने पूरे ब्रिटेन यूरोप के कुछ देशों की राजनीति को प्रभावित किया है.
बर्नी सेंडर्स प्रेसिडेंट उम्मीदवार की होड में थे. बाद में उन्होने अपना नाम वापस ले लिया. लेकिन बर्नी सेंडर्स् के विचारों का ही यह असर था कि ट्रंप ने डेमोक्रेटिक पर समाजवादी होने का मुहावरा गढा. 2020 के राष्ट्रपति चुनाव में जिस तरह की प्रतिक्रिय ट्रंप ने दिया है वह अमेरिकी लोकतंत्र के दावे को लेकर दुनिया के लोकतंत्रवादियों की चिंता को बढा दिया है. इस का एक बडा कारण दुनिया के अनेक देशों में दक्षिणपंथी ताकतों का उभार और सत्ता केंद्रीकरण की होड है. इन उभारों ने लोकतंत्र के मजबूती की प्रवृत्तियों को कमजोर किया है. ट्रंप के लिए यह संतोष का विषय हो सकता है कि 2016 के चुनाव में जिन लोगों ने उन्हें वोट किया था उसका 90 प्रतिशत हिस्सा इस बार भी साथ है. अमेरिका के ग्रामीण इलाकों की चर्चा मीडिया में कम होती है लेकिन अमेरिकी वोट के नजरिए से उसका महत्व है. इस बार के चुनाव में अमेरिकी के ग्रामीण इलाकों में भी विभाजन साफ दिखायी दिया है. अमेरिकी के एक तबके के लिए ट्रंप मिडिल क्लास अमेरिका के पूरे हो गए सपने का नाम है. उन सभी अमेरिकियों का जो सैकड़ों साल तक पूरी दुनिया का शोषण करते रहे हैं और अपनी लफ़्फ़ाज़ी से प्रोग्रेसिव लिबरल बुद्धिजीवियों को समझाते रहे कि यही असली लोकतंत्र है. इस चुनाव ने भी इस धारणा को मजबूत किया है.
भारतीय और अन्य एशियायी मूल के अमेरिकियों ने इस चुनाव में बाइडेन को जबरदस्त समर्थन दिया है. भारत के वर्तमान राजनीति के लिए भी यह एक बडा संकेत है. इतिहास में पहली बार ऐसा देखने को मिला है भारत के शासकों का समर्थन ट्रंप के साथ दिखा है. हालांकि अमेरिका का इतिहास है कि चुनाव में हार जीत के बावजूद अमेरिका की वैश्विक नीति में ज्यादा बदलाव नहीं आता लेकिन एशिया में ट्रंप की नीति में बडे बदलाव आ सकते हैं ऐसा विशेषज्ञ मान रहे हैं. खास कर पाकिस्तान और अफगानिस्तान को लेकर नीति बदल सकती है. लेकिन अमेरिका के लिए भारत का रणनीतिक महत्व है और उसमें बदलाव नहीं आयेगा. चीन को ले कर भी बाइडेन और ट्रंप की नीतियों का अंतर दिखा है. यदि संभावनाओं और बढ़त के अनुसार बाइडेन चुनाव जीत जाते हैं तो चीन अमेरिका संबंधों में तनाव के बावजूद बदलाव आ सकता है. एशिया इस समय अमेरिका के लिए अहम है और खास कर दक्षिण एशिया पर उसकी नजर है.
ट्रंप के आचरण पर भी निगाह बनी रहनी चाहिए. क्या वे आसानी से व्हाइट हाउस से विदा ले लेंगे या अंतिम परिणामों के बाद एक नये तमाशें का गवाह अमेरिका बनेगा. अनेक रिपब्लिकन सांसदों ने भी ट्रप के आचरण की निंछा की है और 1000 से कुछ अधिक दिनों में ट्रप में 22,347 झूठ को ले कर अमेरिकी मीडिया चर्चा कर रही है. ऐसे माहौल में बाइडेन भिन्न दिख रहे हैं. बराक ओबामा ने जिस तरह अमेरिकी राजनीति में एक नया माइल स्टोन बनाया था . बाइडेन आठ सालों तक ओबामा के साथ उपराष्ट्रपति रहे हैं. लेकिन वे खुद को एक ट्राजिशन का नेता बता रहे है. बाइडेन हैरिस की जोडी अमेरिका को फिर से कितना जोडती है और विश्व राजनीति के माहौल को आश्वासत करती है यह तो नतिजों के बाद ही पता चलेगा लेकिन ट्रंप ने अमेरिका को जिस तरह बदला है उसका असर कम करना भी किसी के लिए आसान साबित नहीं होगा.