Faisal Anurag
श्वेत श्रेष्ठता जैसी संकीर्ण सोच के लिए नये अमेरिका में कोई जगह नहीं है. साथ ही असभ्य जंगों से दुनिया को बचाने का वक्त आ गया है. जोसेफ बाइडेन ने उम्मीद जगाते हुए ट्रंप के बाद के अमेरिका की दिशा स्प्ष्ट किया है. उनका पहला भाषण न केवल ओबामा के दौर के एस वी कैन की भावनाओं को दुहराता है. बल्कि अमेरिका में बदलाव की आकांक्षा को भी प्रकट करता है. बाइडेन ने कमला हैरिस को प्रभुत्ववाद के खिलाफ समान अवसर का प्रतीक बताया है.
बाइडेन का सारगर्भित भाषण बताता है कि बाइडेन हैरिस का अमेरिका नई सोच का संकल्प है. यह नई सोच वैश्विक और आंतरिक दोनों ही फ्रंट पर देखने को मिल सकता है. बाइडेन ने यह भी कहा कि शांति, प्रगति और सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय साझेदार की भूमिका निभाएंगे. इसका मतलब साफ है कि अमेरिका का नया नेतृत्व न केवल ट्रंप की नीतियों से अलग रूख लेने जा रहा है. बल्कि एक अवसर के तौर पर अमेरिका की वैश्विक छवि को भी बदलने की कोशिश की जा सकती है.
हालांकि भाषणों में यह जितना आसान दिख रहा है वास्तविकता में इस पर अमल करना मुश्किल है.
बाइडेन ने अमेरिका की विविधताओं की एकता पर जोर दिया है. लोकतंत्र में असहमित के अधिकार का भी उल्लेख किया है. बाइडेन का भाषण अनेक भावुक क्षणों के दौर से भी गुजरा. बाइडेन ने गहरी संवेदना का परिचय भी दिया है. उन्होंने कहा देशवासियों हमें बेहतर बनना होगा. अपने चारों ओर देखें, आज हम कैपिटल के गुंबद के साये में खड़े हैं, जो गृह युद्ध के समय बना.
108 साल पहले महिलाओं को मतदान के अधिकार के लिए खड़े होने पर रोका गया. लेकिन आज हम एक अश्वेत महिला को उपराष्ट्रपति बनते देख रहे हैं. आज हम उस पवित्र स्थल पर खड़े हैं. जिसे दो हफ्ते पहले दक्षिणपंथियों की भीड़ ने बिगाड़ने का प्रयास किया था. लेकिन हमने ऐसा नहीं होने दिया, न कभी होने देंगे.
बाइडेन ने को घरेलू फ्रंट पर अनेक चुनौतियों का सामना करना है. अपने भाषण में उन्होंने कुछ चुनौतियों का उल्लेख करते हुए कहा कि श्वेत प्रभुत्ववाद और घरेलू हिंसावादियों से हमें देश को बचाना है. यह देश के लिए खतरा है. इसके खिलाफ हमें एकता चाहिए. मैं सभी अमेरिकियों को साथ आने के लिए आमंत्रित करता हूं.
एकता से ही अब तक हुई गलतियां सुधार सकते हैं, अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा दे सकते हैं. नौकरियां बढ़ा सकते हैं, नस्लवादी भेदभाव में न्याय दे सकते हैं, हिंसा खत्म कर सकते हैं. मध्यमवर्ग को फिर से मजबूत बना सकते हैं.
बाइडेन के दौर में चीन,ईरान और उत्तर कोरिया के सवाल बने ही रहेंगे. बाइडेन के रक्षा मंत्री आटिन ने क्वाड समूह को संक्रिय करने का संकेत दिया है. इस समूह में जापान,ऑस्ट्रेलिया,अमेरिका और भारत है. क्वाड को मूल रूप से चीन विरोधी एक मंच माना जाता है. हालांकि भारत की कोशिश रही है कि क्वाड में रहते हुए भी वह किसी सैन्य गठबंधन का हिस्सा नहीं बने.
लेकिन चीन को लेकर बाइडेन प्रशासन का नजरिया भी सख्त रहने का ही अनुमान लगाया जा रहा है. यदि ऐसा होगा तो एक नये शीत टकराव के वैश्विक दौर की संभावना पुख्त होगी. अमेरिका के रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन,जो अमेरिका के सेना के प्रमुख पदों पर भी रहे हैं. उन्होंने संकेत दिया है कि ट्रंप से अलग नीति पर अब अमेरिका चलेगा. भारत के साथ जहां बेहतर संबंध की वे बात कर रहे हैं. वही पाकिस्तान को भी एक महत्वपूर्ण देश के रूप में रेखांकित कर रहे हैं.
ऑस्टिन ने कहा है कि भारत के साथ सहयोग के नए दौर की वे शुरूआत करेंगे. उन्होंने पाकिस्तान को अफगानिस्तान में शांति के लिए बड़े सहयोगी के बतौर देख रहे हैं.
इसका अर्थ यह है कि पाकिस्तान और ईरान को लेकर ट्रंप की नीतियों से अमेरिका भिन्न रूख अपनाएगा. लेकिन ईरान के परमाणु काय्रक्रम को लेकर अमेरिका की चिंता अब भी बनी हुई है. लेकिन बाइडेन ने अपने कार्यकाल में भारत के साथ परमाणु डील को कारगर बनाने में बड़ी भूमिका निभाया था. जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में ट्रंप के रूख से दुनियाभर के पर्यावरणवादी निराश थे. बाइडेन ने जलवायु परिवर्तन में विश्व सहयोग की नीति को प्राथमिकता बताया है.
अमेरिका को एकजुट रखने और लोकतांत्रिक मूल्यों को पुनर्स्थापित करने पर ही बाइडेन ने ज्यादा जोर दिया. दरअसल ये बड़ी चुनौतियां हैं, जो अगले चार सालों तक बाइडेन के लिए परेशानी के सबब बने रहेंगे. ट्रंप ने न केवल अमेरिकी सद्भाव के लोकतांत्रिक तानेबाने को विघटन के कगार पर पहुंचा दिया है. बल्कि एक ऐसा समूह भी बनाया है, जो अंधराष्ट्रवादी और श्वेत श्रेष्ठता की ग्रंथि का शिकार है.
लातिनी अमेरिका, अफ्रीका,अरब और एशिया के अनेक देशों के भीतर अमेरिका को लेकर एक रोष भी है. यह रोष प्राकृतिक संसाधनों की लूट के खिलाफ है. प्राकृतिक संसाधनों के साथ कृषि,शिक्षा और स्वास्थ्य सेक्टर कॉरपोरेट के निशाने पर है. अब तक अमेरिका कॉरपोरेट ताकतों के हिमयाती के रूप में ही कार्य करता रहा है. बाइडेन हैरिस के दौर में इस निजाम में बदलाव की संभावना बेमानी है. यह ऐसी बड़ी चुनौती है, जिसमें दुनिया भर में तानाशाही के खिलाफ लोकतंत्र के लिए आवाज बुलंद हो रही है. लेकिन इन लोकतांत्रिक जनसंघर्षों को इंसाफ दिलाने के वैश्विक सहयोग के किसी दौर की अपेक्षा तो नहीं ही की जा सकती है.
हालांकि ट्रंप की तुलना में अमेरिका थोड़ा उदार दिख सकता है.सारी दुनिया में जिस तरह दक्षिणपंथियों की चुनौती लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए उभरी है. उसमें बाइडेन के लोकतंत्र प्रेम की वास्तविक परीक्षा होगी. बाइडेन की एक बड़ी चुनौती दुनियाभर में वे नस्ली धार्मिक श्रेष्ठतावादी भी हैं. प्रभुत्व और श्रेष्ठता के नस्ली धार्मिक विचार लोकतंत्र के साथ विश्वशांति के लिए भी खतरनाक हैं.