Chaibasa (Sukesh Kumar) : 2022 का वर्ष प. सिंहभूम जिला के राजनीतिक घटनाक्रम के लिए इतिहास को बदलने वाला वर्ष रहा है. कोरोना जैसे वैश्विक संक्रमण से देश-दुनिया का जन-जीवन अस्त-व्यस्त हो गया था. 2022 में सरकार द्वारा लागू प्रतिबंध हटाते ही देश, राज्य सहित पश्चिमी सिंहभूम जिला में कुंद पड़ी राजनीतिक निष्क्रियता को सक्रिय करने के लिए सभी राजनीतिक दल कार्यक्रम की रूप रेखा तैयार कर सक्रिय होने लगे. इसी वर्ष त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा संपन्न कराया गया. मतगणना के बाद जिला परिषद, पंचायत समिति, ग्राम पंचायत के लिए भी नेता कवायद करते हुए दिखे. अपनी भावी राजनीतिक नफा नुकसान को ध्यान में रखते हुए राजनीतिक दल सक्रिय भूमिका निभाई. त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के बाद जिला में नए राजनीतिक समीकरण का उदय भी हुआ. खासकर सभी बड़े राजनीतिक दल चाहे झामुमो, भाजपा, कांग्रेस, टीएमसी, आजसू, जेडीयू, आम आदमी पार्टी, क्रांतिकारी आदिवासी महासभा जैसे लाल झंडा हो या अंबेडकराइट पार्टी. इसमें सबसे चौंकाने वाली पार्टी क्रांतिकारी आदिवासी महासभा का प्रदर्शन रहा है.
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पंचायत चुनाव में भी जिला का बना इतिहास, माधव को सबसे अधिक वोट
जॉन मीरन मुंडा झींकपानी, माधव चंद्र कुंकल मंझारी, मानसिंह तिरिया जगन्नाथपुर से जिला परिषद का चुनाव जीतकर सभी राजनीतिक दल के नेताओं का ध्यान आकृष्ट किया. माधव चंद्र कुंकल ने एकतरफा वोट हासिल कर पूरे राज्य में अलग पहचान बनाई. भविष्य की राजनीतिक परिस्थिति पर भी विश्लेषकों को चकित किया है. मलूका ग्राम पंचायत के चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री की बहू का चुनाव हारना भी चर्चा का विषय रहा है. काफी जोड़ तोड़ के बाद जिला परिषद के अध्यक्ष पद सत्तारूढ़ झामुमो के पाले में गई. इसी के साथ ही जिला परिषद अध्यक्ष को झामुमो में शामिल कराया गया. इसके बाद धीरे-धीरे राजनीतिक तापमान जिले में कम होने लगी.
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जिले में 1932 खतियान आधारित मामला भी पकड़ा तूल
इसी बीच झारखंड सरकार द्वारा 1932 खतियान के आधार पर नियोजन नीति, स्थानीय नीति बनाने के लिए सदन पर मुख्यमंत्री के बयान से जिला में राजनीतिक सुगबुगाहट बढ़ने लगा. इसमें मुख्यमंत्री ने कहा था कि 1932 का खतियान के आधार पर स्थानीय या नियोजन नीति बनाने से कोर्ट द्वारा रद्द कर दी जाएगी. मुख्यमंत्री के इस वक्तव्य पर सत्तारूढ़ दल के ही एक विधायक ने मुखर होकर विरोध किया. इसका असर जिला में दिखा. कई राजनीतिक दल के नेताओं द्वारा समन्वय समिति का गठन कर झारखंड बचाओ मोर्चा का सम्मेलन भी जिला में आयोजित की गई. बढ़ते असंतोष को देखते हुए झारखंड सरकार ने विशेष सत्र बुलाकर 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीय व नियोजन नीति का प्रस्ताव को पारित किया. इसके बाद भी जिला में राजनीतिक असंतोष किसी न किसी रूप में दिखाई देते रहा.
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प्रमुख राजनीतिक पार्टी के जिला अध्यक्ष पद की नियुक्ति सुर्खियां बनी
इसी क्रम में इसी साल भाजपा जिला अध्यक्ष की रिक्त पद पर सतीश बाजपाई का मनोनयन फिर से चर्चा का विषय बना. इसी साल झारखंड मुक्ति मोर्चा का जिला अध्यक्ष चक्रधरपुर के विधायक सुखराम उराव को बनाया गया. साथ ही कांग्रेस के नए जिला अध्यक्ष चंद्रशेखर दास बने. उनके जिला अध्यक्ष बनने पर जिले में कई जगह विरोध प्रदर्शन हुआ. लेकिन कुछ दिन के बाद सामान्य हो गया. इसी तरह से जदयू, आजसू का भी जिला अध्यक्ष मनोनीत किए गए. मनोनीत जिला अध्यक्षों में हो बहुल जिला में किसी भी प्रमुख राजनीतिक दल में हो आदिवासी को अध्यक्ष नहीं बनाया गया. यह अब तक का राजनीतिक इतिहास में पहली बार देखा गया है. इस राजनीतिक प्रयोग का फलाफल आगामी 2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव में ही देखने को मिलेगा.
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पूर्व सीएम बाबूलाल के नेतृत्व में राज्य सरकार के खिलाफ असंतोष रैली
जिला में पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में राज्य सरकार के खिलाफ असंतोष रैली और धरना का आयोजन किया गया. इसी तरह से आजसू, अंबेडकराईट पार्टी, टीएमसी भी छोटा छोटा कार्यक्रम के माध्यम से राज्य सरकार और जिला प्रशासन का ध्यान आकृष्ट करते रहा. जबकि अविभाजित सिंहभूम के समय की राजनीतिक इतिहास पर नजर डाला जाय तो झारखंड पार्टी, कांग्रेस, जनसंघ जो अब भाजपा, झामुमो, आजसू सहित सभी राजनीतिक दल में हो बहुल जिला होने के कारण लगभग हो उपजाति को ही प्राथमिकता दिया जाता रहा है. हालांकि आदिवासी हो उपजाति के ग्रामीणों में राजनीतिक जागरूकता की कमी दिखाई देती है. यह जाति अपने मस्तिष्क पर अधिक बोझ नहीं डालना चाहता है. इसीलिए सामाजिक संस्था चलाने वाले सामाजिक कार्यकर्ता भी सहज बोलते हुए सुनाई देता है कि हमलोग सामाजिक संस्था में ही ठीक है,राजनीतिक ठीक नहीं है. जो हो पर जिला के हो बहुल जिला में सामाजिक आंदोलन में बढ़ चढ़कर लोग भाग लेते है.
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कुजू डैम मुद्दे पर सरकार का यूटर्न रहा चर्चा का विषय
पूरे वर्ष का राजनीतिक घटनाक्रम को देखा जाय तो जिला के जनता जनार्दन को झारखंड सरकार ने फिर से निराश ही किया है. चुनाव के वक्त महागठबंधन दल ने बेरोजगारों से जो वायदा किया था,उसे पूरा करने में विफल रहे. कुजू डैम से विस्थापित होने वाले ग्रामीणों को वचन दिया था सरकार में आते ही डैम को रद्द कर दिया जाएगा,पर अब तक रद्द नहीं हुआ. झारखड़ आंदोलनकारियों को सम्मान देने की बात की थी, उसके लिए अब तक सार्थक पहल नहीं दिखा. किसानों के लिए जो घोषणा की थी. उसे अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका. जिला के हजारों मजदूरों ने रजिस्ट्रेशन किया है उन्हें रोजगार देने में सरकार विफल रही. जिला में कई महिलाओं पर निरंतर जघन्य अपराध हो रहा है,कानून का राज दिख नहीं रहा है.
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विश्वविद्यालय व कॉलेजों में विभिन्न पदों में नियुक्ति नहीं होना दुर्भाग्यपूर्ण
विश्वविद्यालय, महाविद्यालय में आदिवासी,क्षेत्रीय भाषा विभाग की स्थापना करने सहित रिक्त पदों पर नियुक्ति की मांग पिछले कई वर्षों से की जाती रही. इस साल नियुक्ति को लेकर अधिसूचना भी जारी करने की तैयारी में सरकार जुटा था लेकिन अंतिम समय में इसे भी रद्द कर दिया गया. नियुक्ति प्रक्रिया पूर्ण नहीं कर सकी. जिससे यूनिवर्सिटी,कॉलेज के स्टूडेंट्स को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पढ़ रहा है. बार बार स्थानीय व नियोजन नीति के कारण नियुक्ति कोर्ट द्वारा रद्द की जाने के कारण बेरोजगार हतोत्साहित है.