NewDelhi : भारत की न्याय व्यवस्था का भारतीयकरण किये जाने की जरूरत है. अब तक जो अंग्रेजों के जमाने की व्यवस्था चली आ रही है, वह भारत की जनसंख्या के हिसाब से काम नहीं कर पायेगी. कई बार आम आदमी को न्याय के लिए कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है. भारत की परिस्थितियों के हिसाब से अदालतों की कार्य शैली मेल नहीं खाती है. यह विचार चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एनवी रमना के हैं. CJI ने कहा कि समय की मांग है कि कानून व्यवस्था का भारतीयकरण किया जाये.
गांव के लोगों को कार्यवाही समझ नहीं आती है
बता दें कि CJI कर्नाटक बार काउंसिल के एक कार्यक्रम में बीते शुक्रवार को बोल रहे थे. जस्टिस रमना ने समझाते हुए कहा कि भारतीयकरण से मेरा तात्पर्य है न्याय व्यवस्था को प्रैक्टिकल रियलिटी के साथ बदलना चाहिए और इसे स्थानीय बनाना चाहिए. दिया कि गांवों में पारिवारिक झगड़े में उलझे लोग कोर्ट जाने में परेशानी महसूस करते हैं. वे इसे ठीक से समझ भी नहीं पाते हैं.
जस्टिस रमना ने कहा कि गांव के लोगों को कार्यवाही समझ नहीं आती है और अंग्रेजी की वजह से और भी समस्या का सामना करना पड़ता है. आज के समय में न्याय प्रणाली बहुत लंबी हो गयी है.लोगों को बहुत पैसे खर्च करने पड़ते हैं.
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न्याय को और पारदर्शी और सुलभ बनाना जरूरी
कहा कि हमारी प्राथमिकता है कि न्याय का सरलीकरण होना चाहिए. जस्टिस रमना ने न्याय को और पारदर्शी और सुलभ बनाना जरूरी करार दिया. कहा कि कई बार कार्यवाही में आने वाली दिक्कतों की वजह से न्याय मिल ही नहीं पाता है. ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि आम आदमी को कोर्ट के चक्कर न लगाने पड़ें. उसे जज और कोर्ट से भय न महसूस हो. वह कम से कम सच बोल सके.
जस्टिस रमना के अनुसार वकील और जज को मिलकर ऐसा माहौल बनाना चाहिए कि मामले से जुड़े लोगों को आसानी महसूस हो. अगर व्यवस्था में बदलाव होता है और इसका भारतीयकरण किया जाता है तो न केवल लोग लंबी चौड़ी कार्यवाही से बचेंगे बल्कि इसमें खर्च भी कम आयेगा. CJI ने कहा कि इससे पेंडिंग केसों से भी निजात मिल सकती है.