Dhanbad : भगवान कृष्ण की नगरी वृंदावन से आए कथावाचक श्रीहित प्रताप चंद्र गोस्वामी ने 19 अगस्त को भागवत कथा के तीसरे दिन कथा का शुभारंभ भजन के साथ किया. कथा की महिमा का वर्णन करते हुए व्यासजी ने कहा कि भागवत कथा हमें जीवन जीना सीखाती है. श्रीमद भागवत कथा श्रवण से जन्म-जन्मांतर के विकार नष्ट होकर प्राणी मात्र का लौकिक व आध्यात्मिक विकास होता है. जहां अन्य युगों में धर्म लाभ एवं मोक्ष प्राप्ति के लिए कड़े प्रयास करने पड़ते हैं, कलियुग में कथा सुनने मात्र से व्यक्ति भवसागर से पार हो जाता है. सोया हुआ ज्ञान वैराग्य कथा श्रवण से जागृत हो जाता है. भागवत कथा से मन का शुद्धिकरण होता है. इससे संशय दूर होता है और शांति व मुक्ति मिलती है.
उन्होंने कहा कि भगवान के विग्रह के दर्शन करते समय आँखे बंद न करें. उनकी अलौकिक छवि का नेत्रों के माध्यम से अधिक से अधिक रसपान करना चाहिए. उनके वस्त्रों व सज्जा की मन ही मन प्रसंशा करें. साथ ही जो सम्भव हो फल, फूल, दीप इत्यादि पूरे भक्ति भाव से अर्पित करें. याद रखें कि वे ईश्वर हैं, उन्हें किसी चीज की आवश्यकता नहीं है. लेकिन, जिस प्रकार एक बच्चा अपने पिता से पैसे लेकर उससे चॉकलेट इत्यादि खरीद कर उन्हें ही दें, तो पिता को प्रसन्नता का अनुभव होगा. उसी प्रकार जब हम ईश्वर को कुछ अर्पित करते हैं, तो वे हमारे भाव को देखकर ही गदगद हो जाते हैं.
भगवान के पास केवल मांगने ही न जाएं , कभी- कभी उनसे मिलने भी जाएं. उनका कुशल क्षेम पूछने भी जाएं. कथा में मधुर भजनों का गायन श्रीहित प्रताप चंद्र गोस्वामी के मुखारविंद से किया गया. श्रीहित प्रताप चंद्र गोस्वामी ने कई ज्ञानमयी और भक्ति पूर्ण प्रसंग सुनाए. कथा में भक्त प्रह्लाद चरित्र दर्शाया गया और जम्माष्टमी का अवसर होने के कारण लड्डू गोपाल का अभिषेक भी करवाया गया. कथा के अंत में भजनों पर श्रद्धालु खूब झूमे और श्रीमद्भागवत पुराण कथा आरती के बाद तृतीय दिवस की कथा को विश्राम दिया गया.
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