Dhanbad : आईआईटी-आईएसएम धनबाद (Dhanbad) के वैज्ञानिकों ने इस्पात कारखानों से निकलने वाला कचरा ग्राउंड ग्रेनुलेटेड ब्लास्ट फर्नेस स्लैग (जीजीबीएस) और फ्लाई ऐश से सीमेंट मुक्त कंक्रीट बनाने की तकनीक विकसित की है. सिविल इंजीनियरिंग के क्षेत्र में प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कम करने और साधारण पोर्टलैंड सीमेंट (ओपीसी) व सामान्य सीमेंट के उत्पादन में ऊर्जा की बर्बादी को कम करने की दिशा में यह बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है. हालांकि अभी इस पर शोध जारी है.
शोधकर्ताओं ने बताया कि फिलहाल पूरे विश्व में कंक्रीट विकसित करने के लिए प्राथमिक बाइंडर सामग्री के रूप में सीमेंट का उपयोग किया जाता है. सीमेंट उत्पादन में पर्यावरण को नुकसान होने के साथ ही प्राकृतिक संसाधनों में भी कमी आती है. शोधकर्ताओं की टीम में आईआईटी आईएसएम के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. सतद्रु दास और देबजीत मित्रा रॉय शामिल हैं. डॉ. सतद्रु दास ने बताया कि उनका शोध लौह और इस्पात संयंत्रों से प्राप्त जीजीबीएस और फ्लाई ऐश पर आधारित है.
ऐसे तैयार किया बिना सीमेंट का कंक्रीट बाइंडर
डॉ. सतद्रु दास ने बताया कि शोध के दौरान 50% जीजीबीएस, अल्कली एक्टिवेटर सॉल्यूशन (एएसएस) का 0.45-0.55 बाइंडर अनुपात, सोडियम हाइड्रोऑक्साइड का सेवेन मोलर सॉल्यूशन और सोडियम सिलीकेट और सोडियम हाइड्रोऑक्साइड 1.5 : 2.0 अनुपात का मिश्रण बनाया. इस एएसएस मिश्रण को कंक्रीट की तरह जमने में 3-6 घंटे का समय लगा. इससे बना कंक्रीट काफी मजबूत है. इस कंक्रीट की मजबूती का विश्लेषण राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कोड मानकों के साथ भी किया, जिसमें यह खरा उतरा.
शोध को टाटा स्टील ने भी सराहा
डॉ दास ने बताया कि कंक्रीट बनाने की यह तकनीक हाल के दिनों में विश्व में नवीनतम जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए भविष्य में बड़े पैमाने पर टिकाऊ संरचना के विकास में मददगार साबित होगी. उ इसे आईआईटी के तकनीक शिक्षा गुणवत्ता सुधार कार्यक्रम टेक्निकल एजुकेशन क्वालिटी इंप्रूवमेंट प्रोग्राम (टेक्विप-3) में विकसित किया गया है. इस शोध को टाटा स्टील ने भी स्वीकार किया है. यह शोध क्यू 1 (वेब ऑफ साइंस) जर्नल में भी प्रकाशित हो चुका है.
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