Pramod Upadhyay
Hazaribagh: शहर में कई प्राइवेट स्कूलों द्वारा रजिस्ट्रेशन के नाम पर वसूली का खेल खेला जा रहा है. इसका पता न तो विद्यार्थियों को होता है और न ही अभिभावकों को होता है. जब तक पता चलता है तब तक काफी देर हो चुकी होती है. दरअसल ऐसे स्कूल संचालक यू-डैस कोड लेकर सरकार से मान्यता तो ले लेते हैं, बाद में उसका गलत फायदा उठाते हैं. यू-डैस कोड लेकर उन्हें सिर्फ पहली से आठवीं कक्षा तक ही स्कूल संचालन की मान्यता दी जाती है. लेकिन अपनी मर्जी से आठवीं पास बच्चों का भी नामांकन अपने ही स्कूल में कर लेते हैं. इस बात का अंदेशा न तो विद्यार्थियों को हो पाता है और न ही अभिभावकों को. फिर स्कूल संचालकों का फीस और रजिस्ट्रेशन के नाम पर वसूली का खेल शुरू हो जाता है.
दरअसल बच्चे या उनके अभिभावक तो जान रहे हैं कि स्कूल में नौनिहालों का नामांकन है. लेकिन जागरुकता के अभाव में उन्हें यह नहीं पता होता है कि उस स्कूल से उनके बच्चे का नौवीं कक्षा का रजिस्ट्रेशन नहीं हो सकता. वक्त भी इतना गुजर चुका होता है कि फिर सही स्कूलों में जाना उनके लिए संभव नहीं हो पाता है. ऐसे में बच्चों का करियर व भविष्य दांव पर लगा जाता है. अब या तो समझौते की बात आती है या फिर स्कूल प्रशासन की बात माननी होती है. उनका कहना मानने के सिवाय उनके पास कोई विकल्प नहीं बचता है. इसी बात का फायदा उठाकर स्कूल संचालक अभिभावकों से रजिस्ट्रेशन के नाम पर मनमाफिक वसूली करते हैं.
जानिए क्या करते हैं ऐसे प्राइवेट स्कूल
जिन स्कूलों के पास नौवीं कक्षा संचालन की मान्यता नहीं है और फिर भी बच्चों का नामांकन कर चुके हैं, ऐसे प्राइवेट स्कूल दूसरे मान्यता प्राप्त स्कूलों से बच्चों का नामांकन और रजिस्ट्रेशन कराते हैं. फिर मान्यता प्राप्त स्कूलों को इस एवज में मोटी रकम देते हैं. यह रकम प्राइवेट स्कूल बच्चों के अभिभावकों से ही वसूली जाती है. पैसा देने के सिवाय अभिभावकों के पास कोई विकल्प नहीं रहता है.
एक ही बच्चे का दो स्कूलों में नामांकन
एक ही बच्चे का दो-दो स्कूलों में नामांकन सीधा राइट टू एजुकेशन अधिनियम का उल्लंघन है. एक तो गैर मान्यता प्राप्त प्राइवेट स्कूल में पहले से ही बच्चे का नामांकन होता है, जहां नौवीं कक्षा में वह पढ़ाई कर रहे होते हैं. फिर उसी बच्चे का मान्यता प्राप्त स्कूलों में नामांकन और रजिस्ट्रेशन कराया जाता है, जिस स्कूल के नाम से वह परीक्षा में बैठते और सर्टिफिकेट हासिल करते हैं. रिजल्ट आने पर दोनों स्कूल अपनी-अपनी उपलब्धियां गिनाते हैं. बीच में कोई पिसता है, तो वह होता है विद्यार्थी और अभिभावक.
यू-डैस कोड हासिल करनेवाले आठवीं तक की शिक्षा की मान्यता लेने वाले प्राइवेट स्कूल पहले तो नि:शुल्क या कम फीस में नामांकन लेने की बड़ी-बड़ी घोषणा करते हैं. यह सब्जबाग देख ऐसे स्कूलों में नामांकन के लिए मारामारी होने लगती है. जब इन स्कूल संचालकों के चंगुल में विद्यार्थी फंस जाते हैं, तब गोरखधंधा शुरू होता है. मौखिक आदेश निकाले जाते हैं कि इसी स्कूल से टाई-बेल्ट, स्कूल यूनिफॉर्म, जूते-मौजे और किताब-कॉपी से लेकर पानी की बोतल तक की खरीदारी करनी है. इसके अलावा डेवलपमेंट और ट्यूशन फीस भी अनाप-शनाप लिया जाता है. इसकी रसीद तक नहीं दी जाती है. अगर अभिभावक बाहर जाकर खरीदारी की बात करते हैं, तो संचालक उन्हें बाजार का भी पता देते हैं. ऐसा इसलिए कि उन दुकानों में स्कूल संचालकों का कमीशन बंधा रहता है.
प्राइवेट स्कूल संचालन के लिए यू-डैश कोड लेने में भी बड़ा गोरखधंधा है. यू-डैश कोड के लिए सरकार की ओर से मानक निर्धारित है. इन मानकों का कहीं अनुपालन नहीं किया जाता है. झारखंड शिक्षा परियोजना द्वारा भी बिना भौतिक सत्यापन के ही स्कूलों को यू-डैश कोड दे दिया जाता है. झारखंड शिक्षा परियोजना से रेवड़ियों की तरह यू-डैश कोड बांटे गए हैं. इसका जीवंत प्रमाण है गली-गली और चौक-चौराहों में जहां-तहां किराए के मकानों में नर्सरी से दसवीं कक्षा तक के खुले प्राइवेट स्कूल. कई संचालक तो इससे भी आगे बढ़कर प्लस टू स्कूल भी खोल दिए हैं.
नि:शुल्क सर्टिफिकेट के लिए भी ली जाती है रकम
दसवीं पास विद्यार्थियों को सरकार की ओर से नि:शुल्क सर्टिफिकेट दिए जाने का प्रावधान है. लेकिन प्राइवेट स्कूल सर्टिफिकेट के लिए भी पैसे वसूल रहे हैं. वे चरित्र प्रमाण पत्र और स्कूल लिविंग सर्टिफिकेट के नाम पर पैसे लेते हैं. सर्टिफिकेट छपाई में स्कूलों को 500 रुपए तक लगते हैं, जबकि विद्यार्थियों से 1500 रुपए तक लेते हैं. इस संबंध में आईजीएम पब्लिक स्कूल के संचालक और प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष विपिन सिन्हा ने कहा कि अभिभावकों से पैसा नहीं लिया जाता है. लेकिन कई प्राइवेट स्कूल यह काम करते हैं. साथ ही कई सरकारी स्कूल इन प्राइवेट स्कूलों को सहयोग भी करते हैं. इस वजह से यह गोरखधंधा चल रहा है. इस पर ध्यान देने की जरूरत है.
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