Girish Malviya
क्या आप जानते हैं कि भारत में जनवरी-मार्च की आखिरी तिमाही में जब जीडीपी की ग्रोथ रेट 1.6 फीसदी दर्ज हुई है, तो उसी दौरान चीन की जनवरी-मार्च की ग्रोथ रेट में 18.3 फीसदी की आर्थिक वृद्धि दर्ज की है! जी हां, यानी भारत से 10 गुना अधिक तेज वृद्धि चीन ने जनवरी-मार्च में दर्ज की है.
दरअसल, इसमें मोदी सरकार का भी काफी योगदान रहा है. अब आप पूछेंगे कि कैसे? तो समझिये इन आंकड़ों को. पिछले साल के विदेशी व्यापार के आंकड़े बता रहे हैं कि चीन से उत्पादित सामानों का भारत में आयात उल्लेखनीय ढंग से बढ़ा है. वर्ष 2020-21 के अप्रैल से फरवरी के जो प्रोविजनल आंकड़े आए, उसके मुताबिक, भारत में चीन की ओर से आयात अब तक के सबसे ऊंचा 16.92 फीसदी तक पहुंच चुका है. जबकि इसके पहले वर्ष 2019-20 में यह 13.73% तक आ गया था. और वर्ष 2018-19 में कुल आयात में चीन का हिस्सा 13.68% तक था.
आप कहेंगे कि यह कैसे संभव है? क्योंकि पिछले साल तो भारत और चीन के बीच सैन्य तनाव की स्थिति पैदा हो गयी थी. इसकी शुरुआत लद्दाख में दोनों सेनाओं के टकराव से हुई, जिसमें सैनिकों की जानें गयीं. लेकिन यह सच है. क्योंकि भारत में तो .. हैं, तो मुमकिन है. वाला नारा चल रहा है.
आपको याद होगा कि तनाव के बाद मोदी सरकार ने ‘वोकल फॉर लोकल’ का नारा देते हुए आत्मनिर्भरता बढ़ाने का संकल्प लिया था. इसी दौरान चीनी मोबाइल ऐप्स को बैन किया गया था. और भी कई तरह के प्रतिबंध लगाए गए थे. जैसे 5G से संबंधित टेलीकॉम उपकरणों पर. लेकिन इसके बावजूद भारतीय आयात में चीन का हिस्सा बढ़ता चला गया.
हम जानते हैं कि भारत और चीन के बीच व्यापार का संतुलन चीन के पक्ष में अधिक झुका हुआ है. चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा वर्ष 2020 में 45.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा है. यानी भारत चीन से आयात अधिक करता है और निर्यात कम करता है. लेकिन 2020 एक ऐसा साल था, जब चीन-भारत के बीच सीमा विवाद अपने चरम पर था. उसके बावजूद चीन से सामानों का भारत को आयात कैसे बढ़ता रहा है.
क्या अब भी यह साफ नहीं दिख रहा है कि मोदी सरकार का विरोध बस दीवाली की चीनी झालरों तक ही सीमित है. ताकि वोटर बुरबक बनते रहें.
डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं.