Ranchi : झारखंड की पंचम विधानसभा का 8वां सत्र भी बिना नेता प्रतिपक्ष के चलेगा. हेमंत सोरेन की सरकार के बनने के बाद विधानसभा के 7 सत्र आहूत किये गये. इनमें दो बजट सत्र, दो मॉनसून सत्र, एक शीतकालीन और दो विशेष सत्र शामिल हैं. इन सभी सत्रों में विधानसभा को नेता प्रतिपक्ष नहीं मिला. 25 फरवरी से बजट सत्र शुरू होने वाला है. यह करीब एक महीने का लंबा सत्र होगा, लेकिन इस बार भी सदन के अंदर नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी खाली रहेगी. विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी का नाम बीजेपी ने नेता प्रतिपक्ष के लिए दिया है. दलबदल के तहत उनका मामला स्पीकर के न्यायाधिकरण में लंबित है.
बाबूलाल को ही नेता प्रतिपक्ष बनाना चाहती है बीजेपी
सत्ता पक्ष का कहना है कि बीजेपी के पास दर्जनों नेता हैं. बीजेपी उनका नाम नेता प्रतिपक्ष के लिए आगे क्यों नहीं कर रही है. बीजेपी अपनी जिद छोड़कर दूसरे नेता का नाम नेता प्रतिपक्ष के लिए आगे करे. वहीं बीजेपी बाबूलाल को ही नेता प्रतिपक्ष बनाने के मांग पर अडिग है. बीजेपी का कहना है कि सरकार बाबूलाल से डरती है, इसलिए बाबूलाल को किसी हालत में नेता प्रतिपक्ष नहीं बनने देना चाहती है.
नेता प्रतिपक्ष बनने लायक बीजेपी के पास हैं कई विधायक
बाबूलाल मरांडी हर सत्र में सदन की कार्यवाही में शामिल होते हैं, लेकिन नेता प्रतिपक्ष का दर्जा और बीजेपी की सद्स्यता मान्य नहीं होने के कारण वे बीजेपी सद्स्यों की तरफ नहीं बैठ सकते. वहीं बीजेपी की ओर से सीपी सिंह, बिरंची नारायण, भानू प्रताप शाही, नीलकंठ सिंह मुंडा, रामचंद्र चंद्रवंशी और अमर बाउरी जैसे नेता सरकार पर हमलावर रहते हैं, लेकिन बीजेपी इनमें से किसी विधायक को नेता प्रतिपक्ष के रूप में आगे नहीं कर रही है.
कहीं पंचम विधानसभा के सभी सत्र बिना नेता प्रतिपक्ष के ही न चल जायें
झारखंड के इतिहास को देखें तो पता चलता है कि यहां स्पीकर के न्यायाधिकरण में चलने वाले दल-बदल के मामले में फैसला आते-आते बहुत देर हो जाती है. दिनेश उरांव जब स्पीकर थे, तब उनके न्यायाधिकरण में 2015 में दलबदल का मामला दर्ज किया गया था, जिसका फैसला 2019 के फरवरी महीने में आया. तबतक विधायकों का टर्म खत्म होने वाला था. इंदर सिंह नामधारी और आलमगीर आलम जब स्पीकर थे, उस वक्त भी दलबदल वाले मामले में अंतिम समय में फैसला आया था. फिलहाल बाबूलाल मामले में स्पीकर रविंद्रनाथ महतो के न्यायाधिकरण में 2 साल से सुनवाई चल रही है. कहीं ऐसा न हो कि सुनवाई पूरी होते-होते 5 साल निकल जाये और पंचम विधानसभा का पूरा सत्र बिना नेता प्रतिपक्ष के ही चल जाये.
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