Kiriburu (Shailesh Singh) : सारंडा के घने जंगल के सबसे ऊंची चोटी पर बसा किरीबुरु-मेघाहातुबुरु शहर में भी गर्मी ने अब तांडव मचाना प्रारम्भ कर दिया है. आज किरीबुरु का न्यूनतम तापमान 23 डिग्री व अधिकतम 38 डिग्री देखा गया. आने वाले दो दिन में यह तापमान 40 डिग्री तक पहुंचने की उम्मीद है. एक समय ऐसा भी आयेगा जब सारंडा को बिना पेड़ का जंगल कहा जायेगा. पेड़ नहीं रहने से सूर्य की गर्म किरणें सीधे जमीन पर स्थित लौह अयस्क की पत्थरों पर पड़कर उसे इतना गर्म करेगी की यह पत्थर देर रात तक ठंडा नहीं होगी. जिस कारण गर्मी एवं पानी की समस्या से लोगों को सारंडा जंगल छोड़ पलायन करना होगा.
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पहले जब सारंडा तमाम प्रकार के पेड़-पौधों से हरा भरा था, तब थोडी़ तापमान बढ़ते हीं आसमान में काले बादल छा कर मुसलाधार वर्षा होती थी एवं पूरा वातावरण ठंडा हो जाता था. लेकिन अब यह इतिहास की बातें होते जा रही है. सारंडा जंगल में लगने वाली आग से छोटे छोटे पेड़-पौधे, पत्ते, घांस आदि जलकर बिना बाल के सर जैसा हाल हो जाता है. इसका सबसे बडा़ नुकसान यह होता है कि वर्षा का पानी बिना किसी रूकावट के बह नीचे चला जाता है. पहले यह पानी सडे़ पत्तों, झाडि़यों आदि के सहारे पहाड़ों में प्रवेश कर भूमिगत जल स्रोत को बढा़ता था. लेकिन अब वह स्थिति नहीं रहा. आज गर्मी से परेशान लोग घर से बाहर भाग पेड़ की छांव तले जाना चाह रहे हैं ताकि ठंडी हवा से राहत मिल सके. लेकिन जब पेड़ हीं नहीं रहेंगे तो राहत कहाँ से मिलेगी. आज बच्चे दिन भर गर्मी से राहत हेतु नदी-नालों की पानी में पडे़ देखे जा सकते हैं. आखिर गर्मी से कैसे मिलेगी मुक्ति एवं इसके लिये जिम्मेदार कौन हैं !
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निरंतर बढ़ते तापमान एंव घटते जलस्तर से सारंडा में रहने वाले लोग एंव वन्यप्राणियों का अस्तित्व खतरे में हैं. हम जानबूझ कर प्रकृति का दिया हुआ यह अनमोल उपहार के साथ छेड़छाड़ व दोहन कर उस रास्ते की तरफ कदम बढा़ रहे हैं जहां हमारी और मौत की दूरी समाप्त हो जायेगी. न चाहते हुए भी हम वातावरण में आने वाले हर उस परिवर्तन का सामना कर रहे हैं जो आने वाले विनाश की चेतावनी मात्र है. जब लोग अचरज से कहते हैं कि इतनी गर्मी पहले कभी नहीं पडी़, तो हम लोगों की बात मखौल में उडा़ देते हैं, किन्तु उनका अनुमान शत प्रतिशत सही है.
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वैज्ञानिक स्वयं मान रहे हैं कि भूमिगत जल का स्तर घट रहा है, ग्लेशियर सिकुड़ रहे हैं, वातावरण में तापमान की निरंतर वृद्धि हो रही है. पृथ्वी पर पर्याप्त मात्रा में वृक्ष नहीं होने के कारण ऐसी गैसें बढ़ रही है जो पृथ्वी को गरम कर रही है. इस हालात से बचने हेतु जनमानस में चेतना का संचार आवश्यक है ताकि वृक्षों की अंधाधुंध कटाई को रोका जा सके, अधिक से अधिक वृक्ष लगाना मनुष्य का लक्ष्य होना चाहिए न की काटना. अपनी धरती को अपमानित करने वाला मानव तमाम मूर्खताओं व कुकृत्यों के बावजूद प्रकृति को माँ कह कर संबोधित करता है. यदि प्रकृति माँ है तो माँ के साथ पुत्र का यह पशुजनित व्यवहार कहाँ तक उचित है ! ऐसी परिस्थिति में हम सब का कर्तव्य बनता है कि पर्यावरण रूपी पृथ्वी को बचाने का प्रयत्न करें. सारंडा में भू-गर्व जल एवं लाईफ लाईन कहा जाने वाली कारो एंव कोयना नदी की स्थिति अत्यन्त हीं दयनीय है. उक्त दोनों नदियों के जल स्तर में भारी गिरावट देखी जा रही है जो निश्चित हीं चौकाने वाली बात है. सारंडा की दोनों प्रमुख नदियों का हाल यहीं रहा तो गर्मी के मौसम में सारंडा के तमाम ग्रामीण एंव वन्यप्राणियों के लिये पेयजल संकट काफी गहरा होगा, जिससे निपटना आसान नहीं होगा.
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