– पैसे की कमी के कारण 95 हजार मकान निर्माण के विभिन्न स्टेज में रुके
– फंड की कमी की वजह से दो साल में 1.20 लाख घर बनाना चुनौती
– 7 साल में 2.31 लाख में से सिर्फ 94000 आवास ही बने
– निर्माण सामग्री का दाम बढ़ने से 25000 आवास नन स्टार्टर स्टेज पर
– बीएलसी कंपोनेंट के लाभुक का अंशदान 1.5 लाख से बढ़कर 2.5 लाख रुपये हुआ
– एएचपी कंपोनेंट में लाभुक का अंशदान 4.5 लाख से बढ़कर 8 लाख तक पहुंचा
Satya Sharan Mishra
Ranchi: झारखंड में प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) का फंड खत्म हो गया है. पिछले छह माह से केंद्र सरकार (केंद्रांश) से फंड नहीं मिला है. इस कारण 95 हजार घरों का निर्माण रुक गया है. फंड मिलने में देरी की वजह से 1.20 लाख घरों काे समय पर बनाना एक बड़ी चुनौती होगी. राज्य सरकार से रिलीज हुई राशि (राज्यांश) से लाभुकों को अब तक किस्त की राशि दी जा रही थी. नगरीय प्रशासन निदेशालय ने योजना को सही तरीके से चलाने के लिए केंद्र सरकार से 508 करोड़ रुपये मांगे हैं. नवंबर में आवंटन मांगा गया है लेकिन अब तक पैसा नहीं मिला है. इसके लिए निदेशालय की एक टीम दिल्ली जाने वाली है. फंड की कमी से बीएलसी कंपोनेंट के मकानों का निर्माण कार्य सबसे अधिक प्रभावित हुआ है. लाभुकों को देने के लिए विभाग के पास पैसा ही नहीं है. इस कारण जल्द मकान बनाने का दबाव डालने का काम रुक गया है. विभागीय आंकड़ों के मुताबिक, पैसा नहीं होने के कारण राज्य में 95,000 मकानों का निर्माण रुक गया है.
लाभुक परेशान- करें तो क्या करें
प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) के तहत पहले 2022 तक सभी शहरी बेघर लोगों को पक्का मकान देने की योजना थी. हाल ही में केंद्र सरकार ने इसे 2 साल का और एक्सटेंशन दे दिया है. अब 31 दिसंबर 2024 तक मकानों को कंप्लीट करना है. झारखंड में अभी भी कुल आवंटित 2,31,059 मकानों में से सिर्फ 94,000 ही बन पाए हैं. ऐसे में अगले 2 साल में 1 लाख 20 हजार मकानों का निर्माण पूरा कराना विभाग के लिए बड़ी चुनौती है. वह भी तब जब समय पर राशि नहीं मिल रही है. एक तरफ योजना में फंड को लेकर दिक्कतें आ रही हैं, वहीं दूसरी तरफ लाभुक भी अब अधिक खर्च और बैंक लोन मिलने में आ रही दिक्कतों के कारण आवास बनाने में दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं. यही वजह है कि अभी भी राज्य में 25,000 आवास नॉन स्टार्टर स्टेज (जिनका निर्माण शुरू नहीं हो सका है) पर हैं. लाभुक तय नहीं कर पा रहे हैं कि इतना पैसा खर्च करके आवास बनाएं या नहीं.
दोगुना हुआ लाभुकों का अंशदान
प्रधानमंत्री आवास योजना (अर्बन) का डीपीआर वर्ष 2016-17 में बना था. उसी समय आवास का केंद्रांश, राज्यांश और लाभुकों की लागत तय की गयी थी. बीएलसी कंपोनेंट के आवास के लिए 1.50 लाख रुपये केंद्र और 75 हजार रुपये राज्य सरकार देती है. बाकी लागत लाभुक को देनी पड़ती है. पहले लाभुक खुद एक से डेढ़ लाख रुपये लगाकर 3.50 से 4.00 लाख रुपये का मकान बना लेते थे. सात साल बाद भी केंद्रांश और राज्यांश में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है, लेकिन मकान बनाने की सामग्रियों की कीमत दो से तीन गुनी बढ़ गयी है. लाभुकों को अब दो से ढाई लाख रुपये अतिरक्त खर्च करने पड़ रहे हैं. इसी तरह अफोर्डेबल हाउसिंग इन पार्टनरशिप (एएचपी) के निर्माण का कॉस्ट (लागत) पहले करीब सात लाख रुपये आ रही थी. अब वह 10 से 11 लाख रुपये तक पहुंच गई है. इसमें केंद्र 1.5 और राज्य सरकार एक लाख की मदद लाभुक को देती है.
अधिकारी मौन, वेबसाइट बंद
नगरीय प्रशासन निदेशालय के अधिकारी योजना को लेकर किसी भी तरह की जानकारी देने से इनकार करते हैं. निदेशक आदित्य आनंद ने खुद को आउट ऑफ स्टेशन बताकर कुछ भी बताने से मना कर दिया. वहीं, पीएमएवाई (यू) के स्टेट टीम लीडर राजन कुमार ने केंद्रांश नहीं मिलने और योजना में आ रही दिक्कतों पर पूछे गए सवालों पर कोई जवाब नहीं दिया. अब तो प्रधानमंत्री आवास योजना की प्रगति की साप्ताहिक रिपोर्ट देने वाला पोर्टल भी बंद हो गया है. एक दिसंबर से वेबसाइट बंद है.